हत्यारिन मां-मजबूरी या क्रूरता- गृहलक्ष्मी की कहानियां
hatyarin maa story in hindi

Hindi Crime Story: हंसने खेलने की उम्र में उस छोटी सी बच्ची ने अपना बचपन अस्पताल में बिताया। लखनऊ के एक छोटे से गांव में पैदा हुई रिद्धि बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और समझदार थी। आस पड़ोस और परिवार में लोग उसकी वाहवाही करते नहीं थकते थे। 8 साल की उम्र में एक दिन अचानक से रिद्धि की तबीयत बहुत खराब होने लगी। लखनऊ के पीजीआई हॉस्पिटल में चेकअप कराने के बाद पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है। उम्र छोटी थी तो कैंसर सेल्स कम होने के कारण इलाज भी संभव था। कई महीनो के उपचार के बाद डॉक्टरों ने शुभ समाचार दिया कि रिद्धि को अब कैंसर से बहुत कम खतरा है लेकिन भविष्य में फिर से तबीयत खराब होने की संभावनाएं जारी थी।

धीरे-धीरे सब कुछ पटरी पर आने लगा। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहने के साथ-साथ खेलकूद और अन्य क्रियाकलापों में भी उसका कोई जवाब न था। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी में मेडिकल डिपार्टमेंट में उसका दाखिला हुआ। वहीं कॉलेज में रिद्धि की मुलाकात राकेश से हुई। राकेश उसकी दूर की बुआ का लड़का था। घर वालों के कहने पर ही दोनों ने मुलाकात की और धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदलने लगी। राकेश के घर वालों को दोस्ती तो मंजूर थी लेकिन उससे ज्यादा और कुछ नहीं। रिद्धि की बचपन की बीमारी उसके प्यार में अड़चन डाल रही था। राकेश के घर वाले रिद्धि को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें यह डर था कि कहीं शादी के बाद रिद्धि की बीमारी फिर से न उभर जाए लेकिन राकेश ने जैसे तैसे अपने घर वालों को मना लिया।

दोनों की खुशी के लिए घर वालों ने उनकी शादी कर दी। रिद्धि और राकेश एक आइडियल कपल की तरह कैरियर और गृहस्थ जीवन दोनों में एक दूसरे का भरपूर साथ देते थे। शादी के 1 साल बाद ही उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बच्चे का नाम वंश रखा गया। घर परिवार के सभी सदस्यों की खुशी का ठिकाना ना था। एक दिन अचानक किचन में काम कर रही रिद्धि को शरीर में अकड़न और बेचैनी महसूस हुई और वह बेहोश हो गई। हॉस्पिटल जाने के बाद डॉक्टर की बातें सुनकर सभी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। रिद्धि का कैंसर धीरे-धीरे भयानक रूप ले चुका था। डॉक्टर ने बताया कि रिद्धि कैंसर के चौथी स्टेज पर है। दुख की बात यह थी कि रिद्धि के पास अब ज्यादा समय नहीं बचा था।

रिद्धि अब हमेशा बिस्तर पर ही लेटी रहती थी, ना ही उसके अंदर इतनी शक्ति थी कि वह कुछ कर पाए। रिद्धि और वंश की देखभाल करने के लिए उसकी बहन नैना कुछ दिनों के लिए उसके घर पर आई। दुखी रहने के साथ-साथ राकेश भी काफी अकेला हो गया था। घर परिवार को नैना ने बखूबी संभाल लिया था। सभी उससे बहुत खुश थे लेकिन रिद्धि को इस बात से थोड़ी बहुत तकलीफ भी होती थी पर किस्मत के हाथों मजबूर बेचारी कुछ कर भी नहीं सकती थी। वंश अब 4 साल का हो चुका था।
मां-बाप दोनों को ही वंश की चिंता सताए जा रही थी। हमेशा खुश रहने वाले पति पत्नी अब दुख और चिंता में जीवन गुजार रहे थे।

एक रात हिम्मत करके रिद्धि अपने बिस्तर से उठकर खुद के लिए पानी लेने गई तो उसने देखा कि राकेश उसके साथ नहीं था। उसे ढूंढने के लिए वह अपने कमरे से बाहर निकली और फिर उसने जो देखा तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। नैना और राकेश एक दूसरे की बाहों में थे। इस नजारे ने रिद्धि को जीते जी मार दिया। उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला और वह अपने कमरे में वापस आ गई। जीने के लिए उसके पास लम्हे बहुत कम थे और अपने प्यार को खुद से दूर जाता देख वह बर्दाश्त नहीं कर पाई। राकेश से जितना ज्यादा उसे प्यार था अब उससे कहीं अधिक नफरत हो गई थी। उसके मन में अलग-अलग ख्याल आ रहे थे।

अपनी नाराजगी के कारण उसने अपने पति से बदला लेने का सोचा और ऐसा कदम उठाया जिसे सुनकर और देखकर सभी के होश उड़ गए। दरअसल, बिस्तर पर सो रहे अपने बेटे वंश को उसने खुद ही गला घोट कर मार दिया। प्यार तो उसके जीवन से जा ही चुका था और अपने बच्चे से लगाव को खत्म कर उसने वंश को मार दिया। भावुक होकर एक मां ने अपने खुद के बच्चे को मौत के घाट पहुंचा दिया। क्या अपने पति राकेश से अपनी भावनाओं और प्यार का बदला लेने के लिए रिद्धि के द्वारा उठाया गया यह कदम मजबूरी थी या क्रूरता?

प्रतिमा 'गृहलक्ष्मी’ टीम में लेखक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं। डिजिटल मीडिया में 10 सालों से अधिक का अनुभव है, जिसने 2013 में काशी विद्यापीठ, वाराणसी से MJMC (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की। बीते वर्षों...