ईसा मसीह के दिल में सभी के लिए प्यार और हमदर्दी थी। जो लोग दुखी और पीड़ित होते, मुसीबतें झेल रहे होते, उनकी वे मदद करते। सबको सहारा देते।
पर बहुत से अमीर और धन-संपत्ति वाले लोग सोचते, ‘ईसा मसीह इन दीन-दुखी, फटेहाल लोगों की मदद करते हैं, तो क्या भला हमारे लिए कुछ न करेंगे?’
ऐसे लोग अपने को कुछ खास और दूसरों से ऊपर समझते थे। पर ईसा मसीह जानते थे कि इन घमंडी लोगों के मन में इनसानियत नाम मात्र की नहीं है। वे उन्हें इसका अहसास भी करा देते थे।
एक दिन की बात, एक धनी आदमी ईसा मसीह के पास आया। बोला, ”प्रभु, मुझे आपकी मदद चाहिए। मैं स्वर्ग जाना चाहता हूँ।”
उस आदमी के पास बेशुमार धन-दौलत थी। ईसा मसीह थोड़ी देर तक उसे गौर से देखते रहे। फिर कहा, ”तुम स्वर्ग जा सकते हो, पर पहले ऐसा करो कि तुम्हारे पास जितनी संपत्ति है, उसे बेचकर सारा धन गरीबों में बाँट दो।”
सुनकर वह व्यक्ति हक्का-बक्का रह गया। बोला, ”यह काम तो मुझे मुश्किल लग रहा है।”
ईसा मसीह मुसकराए। बोले, ”अगर यह काम मुश्किल है, तब स्वर्ग जाना तुम्हें इतना आसान क्यों लग रहा है? जिसके पास धन-दौलत, ऐश्वर्य है, वह और चाहे कुछ भी पा ले, पर ईश्वर को हरगिज नहीं पा सकता।”
सुनते ही उस धनी आदमी की गरदन झुक गई। उसी तरह गरदन झुकाए हुए वह उठकर वहाँ से चला गया।
