Hitopadesh ki Kahani : उत्तर दिशा में गृधकूट पर्वत पर एक बहुत बड़ा पीपल का वृक्ष था । उस वृक्ष पर अनेक बगुलों का निवास था। उसी वृक्ष के तने में बने कोटर में रहने वाला सर्प उन बगुलों के बच्चों को खा जाया करता था ।
एक दिन सब बगुले इसका कोई उपाय सोचने लगे। एक वृद्ध और बुद्धिमान बगुले ने कहा, “इसका सबसे सरल उपाय यही है कि निकट के सरोवर से बहुत सी छोटी- छोटी मछलियां पकड़ कर लाई जायें और उसको सांप के बिल से लेकर नेवले के बिल तक बिछा दिया जाये ।
“नेवले अपने बिल से मछलियां खाते-खाते सांप के बिल तक पहुंच जायेंगे। सांप और नेवले का तो स्वाभाविक बैर है। मछलियों के साथ-साथ नेवले सांप को भी मार कर खा जायेंगे।”
यह उपाय सबको ठीक लगा तो उन्होंने वैसा ही किया। उसका परिणाम यह हुआ कि नेवलों ने सांप को मार दिया । किन्तु जब नेवलों ने बगुलों के बच्चों की चूं चूं सुनी तो वे वृक्ष पर चढ़ गये और उन्होंने उन बच्चों को भी खा डाला।
हंस कहने लगे, “इसीलिए हम कहते हैं कि उपाय सोचते समय अपने विनाश के मार्ग के विषय पर विचार कर लेना अच्छा होता है ।
“जिस समय हम तुमको ले जायेंगे तो तुम्हें देख कर नीचे के लोग कुछ न कुछ अवश्य कहेंगे। वे तुम्हारी खिल्ली भी उड़ायेंगे। तुम उनको उत्तर दिये बिना मानोगे नहीं और फिर मुख खुलते ही गिर कर धरती पर जा पड़ोगे । इससे यही अच्छा है कि तुम यहीं रहो।”
यह सुन कर कछुआ बोला, “क्या आप लोगों ने मुझे इतना मूर्ख समझ लिया है कि मैं अपने प्राणों को यों ही गंवा दूंगा ? चाहे कोई कुछ भी क्यों न कहता रहे मैं कुछ नहीं बोलूंगा।”
इस प्रकार कछुए ने हंसों को अनेक विधि से आश्वस्त किया तो वे उसको ले जाने के लिये उद्यत हो गये। आखिर जब वे उसको ले जा रहे थे तो गांव के ग्वाले उसको देख कर भांति-भांति की बातें करने लगे ।
किसी प्रकार एक गांव तो निकल गया किन्तु दूसरे गांव में भी जब उसी प्रकार की बातें होने लगीं तो कुछ का धैर्य टूट गया। उसको उनके ताने सुन-सुन कर क्रोध आने लगा था। वह उनको कहना चाहता था कि वे उसको नहीं अपितु राख खायेंगे। किन्तु कुछ कह भी तो नहीं पाया। ज्यों ही उसने कुछ कहने के लिये मुख खोला कि धड़ाम से धरती पर जा गिरा ।
बस फिर क्या था । मर तो वह गया ही था । ग्वालों ने उसको उठा लिया।
यह कथा सुना कर उसने कहा, “इसीलिए मैं कहता हूं कि हितचिन्तकों की बात पर जो ध्यान नहीं देता उसकी ऐसी ही गति होती है।”
उसी समय राजहंस के दूत बगुले ने आकर कहा, “महाराज ! मैंने उसी समय कहा था कि दुर्ग की भली भांति देखभाल होनी चाहिये । किन्तु उस विषय पर असावधानी रही
गृद्ध द्वारा नियुक्त मेघवर्ण कौए ने दुर्ग को आग लगा दी । “
और राजहंस कहने लगा, “उस कौवे ने तो ऐसा अपनापन दिखाया कि मेरी मति ही भ्रष्ट कर दी।”
उसी समय दूत ने आकर सूचना दी कि मेघवर्ण के कृत्य से प्रसन्न होकर चित्रवर्ण ने उसको कर्पूरद्वीप का राजा बनाने का प्रस्ताव किया । किन्तु उसके प्रधान मंत्री गीध ने इसका विरोध किया और कहा कि उसको कोई अन्य पुरस्कार दे दीजिए।
चित्रवर्ण को समझाते हुए गीध ने कहा, “बड़ों के स्थान पर नीच को कभी भी नियुक्त नहीं करना चाहिए। नीच जब किसी उच्च पद पर पहुंच जाता है तो वह अपने स्वामी को ही मारने के लिए उद्यत हो जाता है जिस प्रकार कि महातपा मुनि द्वारा बाघ बनाया हुआ चूहा एक दिन उन्हीं को खाने के लिए चल पड़ा था । “
चित्रवर्ण ने पूछा, “यह किस प्रकार ? ” गीध ने कहा, “सुनाता हूं, सुनिये ।”
