mittee se seekhie samarpan
mittee se seekhie samarpan

समर्पण ही सफलता की पहली सीढ़ी हैं। समर्पण में अपना अस्तित्व मिटाना पड़ता है। यह एक अनोखा सूत्र है और इसे हर युग स्वीकार करता है। जो अपने को मिटाता है, दुनिया उसे बनाने में जुट जाती है। आपने मिट्टी के लोंदे को मनचाहा आकार लेते हुए देखा होगा। इस मिट्टी की खदान से लेकर श्रद्धालु के मस्तक पर प्रतिष्ठित मंगल कलश तक की यात्र का इतिहास पढ़ें। मिट्टी के मिटने और दुनिया द्वारा उसके पूजे जाने की कथा यात्र हमें खुद समझ में आ जाएगी।

मिट्टी जब अपने को मिटाती है, तभी कहीं गागर, कहीं सुराही, कहीं घड़ा तो कहीं मंगलं कलश बनकर अपने वजूद के दर्शन कराती है। मिट्टी कुम्हार खदान से लाता है। उपेक्षित चौपाये गधे पर इसकी बोरी लादता है। गधे पर बैठने का अपमान भी वह चुपचाप सह जाता है। कुम्हार के घर पहुँचने पर भी मिट्टी को सफलता नहीं मिलती। मिट्टी का महीन चूर्ण बनाकर उसे पानी डालकर फिर फेंटा जाता है। फिर कुम्हार उसे चक्के पर मनचाहा आकार देने लगता है। चॉक पर घूमती मिट्टी जो निराकार लोंदा मात्र थी, आकार लेने लगती है। देखते ही देखते वह कलश बन जाती है।
अभी भी उसका समर्पण पूरा नहीं हुआ। फिर उसे आग में तपना पड़ता है। आग की लपेटों में तपने के बाद कुम्हार उसे ठोंककर देखता है। उसका इस कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही वह कलश बिकने के लिए बाजार में दाखिल होता है। खदान की मिट्टी कई तरह के उपसर्ग- सहकर माथे पर आसीन होने का गौरव पाती है। कलश जहां भी जाएगा उच्चासन को प्राप्त करेगा। वजह साफ है। मिट्टी घुटी है, पिंटी है, मिटी है, तपी है तब जाकर सिर पर चढ़ी है। बस यह मिटना ही उसे उच्चासन का गौरव देता है।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)