Hindi Katha: एक समय की बात है, चेदि देश में उपरिचर नामक एक धार्मिक राजा राज्य करते थे। उनकी सुंदर पत्नी का नाम गिरिका था। एक बार ऋतुकाल के बाद गिरिका ने राजा उपरिचर से संतान प्राप्ति की कामना प्रकट की । लेकिन पितृों की आज्ञा से राजा को शिकार के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय उनका मन उनकी सुंदर पत्नी में ही अटका हुआ था। वे अपनी पत्नी को याद कर रहे थे, तभी उनका वीर्य स्खलित हो गया। राजा उपरिचर ने अपने अमोघ वीर्य को अभिमंत्रित करके वट पत्र के एक दोने में रखा और सोचा कि ‘इसे अपनी पत्नी के पास पहुँचा देता हूँ जिससे कि उसकी संतान पाने की इच्छा पूर्ण हो सके।’ फिर उन्होंने एक बाज पक्षी से कहा ” हे महापक्षी ! इसे अतिशीघ्र मेरी पत्नी तक पहुँचा दो। “
दोने को चोंच में दबाए बाज़ चेदि देश की ओर उड़ चला। मार्ग में एक दूसरे बाज़ की दृष्टि पहले पर पड़ी। दूसरे बाज़ ने सोचा- ‘यह मांस लिए हुए है।’ इस प्रकार दोनों बाज़ आकाश में ही एक-दूसरे पर झपटने लगे। इस मारा-मारी में वीर्य वाला दोना पहले बाज़ की चोंच से छूट गया । ठीक नीचे यमुना नदी थी, जिसमें उस समय अद्रिका नाम की एक अप्सरा स्नान कर रही थी । कुछ ही दूरी पर एक ब्राह्मण देवता संध्या-वंदन कर रहे थे। जल में क्रीड़ा करती उस सुंदर अप्सरा ने अनजाने में ब्राह्मण का पैर पकड़ लिया। उस समय ब्राह्मण देवता प्राणायाम कर रहे थे। स्वच्छंद गतिवाली उस अप्सरा को देखकर उन्होंने शाप दे दिया – “तू मछली बन जा, क्योंकि तूने मेरे ध्यान में बाधा उत्पन्न की है । “
तत्काल ही वह अप्सरा, मछली बन गई। अपनी दुर्दशा पर विलाप करती हुई वह ब्राह्मण से क्षमा-याचना करने लगी। उसका विलाप सुनकर ब्राह्मण देवता पिघल गए और बोले – “जब तुम्हारा पेट चीरा जाएगा, तब तुम मेरे शाप से मुक्त होकर पुन: स्वर्ग चली जाओगी। “
मछली मुँह खोले विलाप कर रही थी, ठीक इसी समय बाज़ की चोंच से छूटा वीर्य वाला दोना, उसके मुँह के रास्ते पेट में चला गया। समय व्यतीत होता रहा। अप्सरा को मछली बने दसवाँ महीना चल रहा था। एक दिन वह एक मछुए के जाल में फँस गई। मछुआ इतनी बड़ी मछली पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अपने साथियों के सहयोग से उसका पेट चीरा तो चकित हो उठा। उसके पेट से मनुष्याकार दो बच्चे निकल आए – एक तेजस्वी बालक और दूसरी एक सुंदर कन्या।
मछुए ने दोनों बच्चे राजा को सौंप दिए । राजा को भी अत्यंत आश्चर्य हुआ। उसने उनमें से बालक को अपने पास रख लिया। उपरिचर नामक राजा के वीर्य से उत्पन्न वही बालक आगे चलकर मत्स्य नरेश नाम से प्रसिद्ध हुआ । राजा ने वह कन्या उस मछुए को दे दी। वही कन्या काली, मत्स्योदरी (मछली के उदर से निकली) और सत्यवती नाम से प्रसिद्ध हुई । उस कन्या के शरीर से मछली की गंध आती थी। अतः उसका एक नाम ‘मत्स्यगंधा’ (मछली जैसी गंध वाली) भी पड़ गया। कुमारी अवस्था में ही पराशर ऋषि के योग से इसके गर्भ से कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास जी उत्पन्न हुए थे। बाद में सत्यवती का विवाह शांतनु से हुआ जो भीष्म के पिता थे। कहते हैं कि सत्यवती बाद में कौशिकी नदी हो गई थी।
