maan apmaan
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Hindi Story: काफी लंबे अरसे से वीरू और जय दोनों एक ही फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। एक दिन जय ने वीरू से पूछ लिया कि सभी लोग अपने घर से खाना लेकर आते हैं। तुम अपने घर से खाना क्यूं नहीं लाते? वीरू ने कहा कि मेरी पत्नी हर समय बहुत व्यस्त रहती है। यहां तक की मैं तो छुट्टी वाले दिन भी खाना होटल में ही खाता हूं। जय ने पूछा कि तुम्हारी पत्नी ऐसा क्या काम करती है जो उसे खाना बनाने तक की फुर्सत नहीं मिलती। वीरू ने ताना मारते हुए कहा कि सोमवार से लेकर शुक्रवार तक वो सारा दिन सास-बहू के टीवी सीरियल देखती है। शनिवार और रविवार को उसे मेरी गलतियां निकाल कर गाली-गलौच और अपमान करने से ही टाइम नहीं मिलता। जय ने कहा कि हमारी प्यारी भाभी देखने में तो बिल्कुल ऐसी नहीं लगती। फिर भी मैं उनसे बात करके तुम्हारी इस समस्या का कोई न कोई हल ढूंढ ही दूंगा। वीरू ने कहा कि मैं तो कई बार उसे समझाने की नाकाम कोशिश कर चुका हूं, मुझे तो नहीं लगता कि वो औरत कभी भी सुधरेगी।

अगले दिन जब जय ने इस विषय में वीरू की पत्नी बसन्ती से बात की तो उसने कहा कि मैं तो इनकी हर समय बहुत इज्जत करती हूं, लेकिन यह ही मुझे हर समय दूसरों के सामने नीचा दिखा कर अपमान करने में लगे रहते हैं। अब कल रात को ही हम एक शादी की दावत में गये। वहां भीड़ अधिक होने के कारण प्लेटें जल्दी खत्म हो गई। इन्होंने मेरे बार-बार मना करने भी ढ़ेर सारा खाना अपने कुर्ते में डाल लिया। जब मैंने कहा कि इस तरह खाना डालने से आपका यह नया कुर्ता-पायजामा सारा खराब हो जायेगा। जानते हो सभी रिश्तेदारों के बीच यह मुझ से बोले कि मैं जानता हूं कि यह सब्जियों के दाग तो तुम किसी न किसी तरह से साफ कर ही लोगी, लेकिन इतना बढ़िया खाना फिर खाने के लिये कहां मिलेगा? मुझे तो समझ नहीं आती कि इतने लोगों के बीच मेरा इस तरह से अपमान करके इन्हें क्या सुख मिलता है? इससे पहले की जय वीरू-बसन्ती को शांत करवाता, वीरू ने कहा कि अब तो मैं इस औरत के साथ एक दिन भी नहीं रह सकता।

जय ने उससे पूछा कि अब ऐसा क्या हो गया जो तुम इतनी बुरी तरह से भड़क रहे हो। वीरू ने जय से कहा कि अब तक तो यह औरत सिर्फ मेरा अपमान करती थी, परंतु कल तो इसने मेरी मां का बहुत अनादर कर दिया है। बसन्ती ने बात साफ करते हुए कहा कि मैंने मां का कोई अपमान नहीं किया। कल करवाचौथ के मौके पर मैं जब माथा टेक कर उनसे आशीर्वाद लेने गई तो उन्होंने कहा कि सदा सुहागन रहो। मैंने मज़ाक में इतना कह दिया कि आप चाहती हो कि आपका बेटा सदा जिंदा रहे और मैं उससे पहले मर जाऊं। बस इतनी-सी बात से इनको लगा कि मैंने इनकी मां से बुरा बर्ताव कर दिया है।

वीरू-बसन्ती की बिना सिर-पैर की बहस सुन कर जय को समझ नहीं आ रहा था कि इन्हें कैसे समझाया जाये कि जब कभी कोई आपसे बुरा-भला कह रहा हो उस समय उत्तेजित होने के बजाए थोड़ा धैर्य से काम लेना चाहिये। क्योंकि किसी भी जगह बढ़-चढ़ कर बोलने से अपमान ही मिलता है जबकि कम बोलने वाले गुणवान बन कर अधिक मान पा लेते हैं। इसलिये तो शायद कहा जाता है कि अपमान को सह लेने के असली मायने होते हैं कि अपमान करने वाले के दबाव में न आकर उसे असफल बना देना। इससे जैसा वो चाहता है वैसा वो नहीं कर पाता। हमें एक बात कभी नहीं भूलनी चाहिये कि कोई भी व्यक्ति इतना श्रेष्ठ कभी नहीं होता जितना की लोग उसकी जीत पर उसको मान देते हैं। इसी के साथ कोई भी व्यक्ति इतना बुरा नहीं होता जितना कि लोग उसकी हार पर उसे अपमानित करते हैं।

जय मन ही मन सोचने लगा कि मान-अपमान को समझने के लिये यदि गहराई से इसका चिंतन किया जाये तो सबसे पहले संत कबीर दास जी की बात सामने आती है कि एक समझदार पुरुष कभी भी मान-अपमान को अपने दिल में कोई स्थान नहीं देता। ज्ञानी लोग तो हर किसी को उचित सम्मान देते हैं और जो कोई भी उनके पास किसी प्रकार की आशा-मंशा लेकर आता है वह उसका उचित तरीके से मार्गदर्शन करते हैं। संत कबीर जी तो सभी को यह समझाते हैं कि यदि इस संसार में सुखी रहना चाहते हो तो मान-अपमान दोनों ही स्थितियों में समान रहना चाहिए। कोई भी व्यक्ति चाह कर भी किसी का मान या अपमान नहीं कर सकता क्योंकि यह सब कुछ प्रभु की मर्जी से ही होता है। जब मान-अपमान भाग्य की ही देन है तो फिर किसी को भी इनके मिलने पर ज्यादा खुश या दुःखी नहीं होना चाहिए। कबीर साहब इसी बात को एक उदाहरण के माध्यम से और अधिक अच्छे से समझाते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार हाथी को देखकर जहां लोग उसे हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं वहीं गली-मुहल्ले के कुत्ते उसे देख कर भौंकने लगते हैं। परंतु हाथी अपनी मस्त-धुन में अपनी राह पर चलता रहता है वो न तो हाथ जोड़नेवालों को देखकर रुकता है और न ही भौंकते हुए कुत्तों की ओर मुड़कर देखता है।

हाथी के इस व्यवहार से तो एक जनसाधारण भी यह समझ सकता है कि जिस किसी की पूजा होती है उसे कहीं न कहीं थोड़ी-बहुत निंदा भी सहन करनी पड़ती है। जय के मन की भावनाओं से पूर्ण रूप से सहमति जताते हुए जौली अंकल इस बात को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं कि जो कोई हर समय दूसरों का अपमान करने के बारे में सोचते रहते हैं समाज में उन्हें कभी भी मान नहीं मिलता। यह दुनिया किसी भी व्यक्ति को उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मान नहीं करती बल्कि जो कोई समाज के लिए कुछ नेक काम करते हैं यह तो केवल उन लोगों को मान देती है। जो मान-अपमान दोनों ही स्थितियों को एक जैसा महसूस करता है दुनिया उन्हें महात्मा कहती है।