Hindi Love Story: “अबे सुन।” मैंने चौंकने की तरक़ीब करते हुए उसकी ओर देखा। उसकी दहकती ज़बान से मैं समझ चुका था कि मेरी चोरी पकड़ी गई है।
“354 में अंदर करा दूंगी, तीन साल के लिए।” उसने याद दिला दिया, मुझे यह नहीं भूलना चाहिए कि आज मैं लॉ की एक स्टूडेन्ट के साथ ड्राइव पर हूँ।
“मैंने क्या गुनाह किया है भाई?” मैं अब भी भोलापन ओढ़ने की कोशिश में था।
“उस लड़की की मिनी स्कर्ट में घुसने का शौक़ बहुत ज़ोर मार रहा है ना?”
“अरे यार।” मैंने अपना माथा ठोंका और मुस्कुरा कर गाते हुए कहा-
“तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ।
नज़र आख़िर नज़र है, बे-इरादा उठ गई होगी…”
शायद मुझे लगा होगा यह शेर गुनगुना कर मैं अपने गुनाह को आसान माफ़ी के लायक़ बनाने में कामयाब हो सकूंगा।
पर वह ऐसी तो नाक़ाबिल वकील नहीं, जो जिरह में पीछे रह जाए-“अच्छा बेट्टा, मत्ला मुझसे सुन लो-
‘नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी, किसी की दिल-लगी होगी…”
उसने अपनी दो उँगलियाँ से पिस्टल के नैन-नक्श बनाते हुए मेरे माथे पर रखकर ‘ढिचकाएं… ढिचकाएं…’ की आवाज़ निकाली और आगे कहा-
“तुम जैसे लोगों के कारण लड़कियों के कपड़ों पर फ़तवे जारी होते हैं। तुम्हें फिर से याद दिला दूँ, तुम्हारी हवस ज़दा नज़रों के कमाल से तुम ऑलरेडी तीन साल के लिए अन्दर जाने का गुनाह कर चुके हो।” उसने आँखें तरेरी।
“माता जी, माफ़ कर दीजिए। मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि, वह क्या पहने क्या नहीं। पर भारतीय सेक्स अपील के कोई मायने हैं या नहीं?” मैं अब भी मुस्कुरा ही रहा था।
“तो महोदय, अब आप डिसाइड करेंगे कि हम क्या पहनें, जिससे आपका सोता हुआ जानवर डिस्टर्ब ना हो?”
“अबे चुप। लड़की होने का फ़ायदा उठाना बंद करो। लड़की हो इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी बकवास करो। मैं कम कपड़ों में घूमूँ तो तुम लोग नहीं देखोगी क्या। नज़रें हैं चली जाती हैं। मैंने कोई ज़बरदस्ती थोड़ी की है उसके साथ। यस! आई एम अ मैन। इंसानी फ़ितरत और हिन्दुस्तानी तड़के ने मुझे ऐसे ही बनाया है कि, मैं लड़कियों की टांगो में रस लूँ। तुम्हें किन्ही पाक आदमियों के देश की तलाश करनी चाहिए या नापाक आदमियों को जन्म देना बंद कर देना चाहिए।” अब भी मुस्कुराते रह पाना मुमकिन ना हो सका।
“तुम्हारे कहने का मतलब है, बाहर तो अपराधी घूम ही रहें हैं तो हम अपने-अपने गले लेकर घर में रहें; बाहर तो वे काट ही डालेंगे।” नज़रअंदाज़ी की मुस्कान उसके होठों पर खेल रही थी।
“मैडम, गुनाह और सेक्स अपील में फ़र्क है। इंसानी फ़ितरत को गुनाह कहकर तुम कोई बहुत अच्छी तर्क शक्ति का परिचय नहीं दे रही, बल्कि समाज में जानबूझ कर दुर्भावना पैदा करने की साज़िश रच रही हो। सेक्स लुप्त हो जाए तो प्रेम का क्या होगा? होमो सेक्सुअल जैसे शब्द का क्या होगा? दुनिया में बहुत जगह न्यूडिस्ट क्लब और सी-बीच हैं। हो सकता है वे उस स्तर की सनसनी से बाहर निकल गए हों; और छोटे-बड़े कपड़े उनके लिए मायने ना रखते हों; और उनके लिए भी नहीं जो इनके आदी हैं। पर अगर इसे तुम सभी के लिए और सभी जगह जबरन लागू करना चाहोगी तो यह तुम्हारा ज़ालिमपना और बलात्कार ही कहा जाएगा। माना की दुनिया के बहुत से सच नाक़ाबिले बर्दाश्त हैं, लेकिन मैं भी उन्हीं से जूझता हुआ एक आदमी हूँ और उस दुनिया का हिमायती भी, जो कम से कम नाक़ाबिले बर्दाश्त हो।”
“तो हमें क्या करना चाहिए आप ही बता दीजिए।” उसने मज़ाक उड़ाने और मुझे बैकवर्ड साबित करने की नाकाम कोशिश करते हुए अपने एकतरफ़ा औरत परस्त चेहरे का बोझ अपनी दाईं हथेली पर रख दिया।
“पहले तो अपनी बेहूदी बेचारगी और कमज़ोरी का चोला उतारो। तुम लड़कियों को इसकी आड़ में दुनिया की आधी आबादी को शर्मिंदा करने का शॉर्टकट मिला हुआ है। तुम करती हो क़द्र, पुरुष के प्राकृतिक गुणों-अवगुणों का? या सिर्फ़ अपने लिए यह आस रखती हो?”
ज़िंदगीनामें में दर्ज हुई एक और डेट, जो मस्ती से बहस में बदल गई। ‘बहस’ हम दोनों की वह साथी, जो हमें मोहब्बत की ही तरह पसंद है। इन बहसों के बीच बस खो जाता है कभी-कभी, तो कुछ दिनों और अनींदीं रातों के लिए सुकून।
मीठे और नमक की दिव्य मिलावट मोहब्बत का स्वाद बासी भी तो होने नहीं देती।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
