Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “सुनो! आज तक मैंने तुमसे कुछ नहीं छिपाया। आज मेरी लाइफ़ की एक और काली सच्चाई बताना चाहती हूँ।” आज वह उदास सी लगी और अपना पहला पैग ख़त्म करते हुए उसने कहा।

“हाँ, बोलो ना।”

“हो सकता है इन सब का फ़र्क हमारे रिलेशन पर भी पड़े, पर मैं छिपाना नहीं चाहती।”

“बोलो ना,मुझे भी तो सच ही पसंद है; चाहे वह कैसा भी हो।”

“जब मैं नाइन्थ में थी, मेरे एक पड़ोसी ने मुझसे ज़बरदस्ती की थी। हम उसे चाचा कहते थे।” उसने शंकित नज़रों से मेरी ओर देखा। पता नहीं उसने मेरे चेहरे पर क्या पढ़ा और आगे कहा -“उस समय तो मुझे ठीक से पता भी नहीं था, इन सब चीजों के बारे में।”

“तुमने बताया नहीं किसी को?”

“माँ को बताया था; उन्होनें चुप रहने और उसकी तरफ़ कभी ना जाने को कहा।”

“ऐसे ही तो बलात्कारी पैदा होते हैं।” मुझे चिढ़ भी हुई; पर एक मिनट के ठहराव में ही सोचा तो सामाजिक मजबूरियों पर दिल थर्रा उठा।

थोड़ी देर की हमारी शांत ड्राइव के बाद उसने कहा- “कुछ कहोगे नहीं?”

“किस बारे में?” हाँलाकि मैं जानता था वह क्या पूछ रही है, उस खौफ़नाक ख़याल से इतनी सी देर में, मैं ख़ुद नहीं निकल पाया था।

“यही बात जो मैंने बताई।”

“इसमें और क्या कहूँ?” मैं चाहता था कि मुस्कुरा कर यह कहूँ; पर मुस्कुराना हो नहीं सका।

“अब तुम मेरे साथ रहना चाहोगे या नहीं?” उसकी आवाज़ वहम के बोझ से भारी थी।

“पागल हो गई हो क्या तुम? तुम्हारा कोई दोष नहीं था इसमें और होता, तो भी वह बीत चुका। तुम अब तक उस बात को मन से लगाए कुढ़ रही हो; किसी मोहब्बत से कुढ़न हो या सेक्स से? किसी और के गुनाह की वजह से अपनी ज़िंदगी क्यों ख़राब करती हो। निकालो फ़ालतू बातें मन से और एक-एक पैग बनाओ।” मैंने उसके चेहरे की तरफ़ देखते हुए वापस सड़क पर ध्यान लगाया। वैसे भी उसकी आँखों की शीतलता मैं ज़्यादा देर तक नहीं देख सकता था। मैंने कहा- “मेरा भी सुन लो, दो से मेरे भी संबंध रहे हैं पर मैंने बलात्कार नहीं किया, क़सम से…”

“वह तो मुझे पता है। तुम कर भी नहीं सकते। पर इन दो में, मैं शामिल हूँ या इनसे अलग?” मेरे घूँसे के एक्शन से हम दोनों हँस दिए और अपने-अपने पैग ज़िंदगी की तरह सम्भाले।