kahan hai chori ka samaan
kahan hai chori ka samaan

निक्का ने सुबोधकांत के मस्तिष्क को उस जगह फोकस किया, जहाँ उसके शातिरपने के सारे किस्से उसकी मैमोरी में थे!

आश्चर्य, अखबार में जो किस्से-कहानियाँ निक्का को पढ़ने को मिली थीं, या लोगों से उसने सुबोध के बारे में जो कुछ सुना था, सुबोध का चोरी का ढंग और उसके किस्से कहीं अधिक सनसनीखेज और रोमांचक थे।…

फिर निक्का ने सूई को थोड़ा लक्ष्य की ओर खिसकाकर सुबोधकांत के अवचेतन मस्तिष्क को निशाना बनाते हुए पूछा, “हाँ सुबोधकांत सक्सेना, अब बताओ चोरी किया हुआ सामान कहाँ है?”

और आश्चर्य! सुबोध का दिमाग झटपट वही पहुँच गया, जहाँ निक्का उसे ले जाना चाहता था। सुपर हाईटेक चोर के सोचने के साथ-साथ स्क्रीन पर एक-एक कर वे स्थान और उनके नाम-पते आने लगे, जहाँ वह सामान छिपाया गया था। साथ ही सुबोधकांत की चोरी की अजीबो-गरीब दास्तानें भी! अब सबकुछ साफ था, कुछ भी छिपा नहीं रह गया था।

“ठीक है, अब सो जाओ!” निक्का ने कहा तो सुबोध पहले की तरह गहरी नींद में चला गया और सपने देखने लगा।

इधर निक्का ने झटपट सुबोध से जो-जो जानकारियाँ इकट्ठी की थीं, उनके प्रिंट तैयार कर लिए। फिर उसने टेलीफोन घुमाकर पुलिस को सूचना दी, “दुनिया का सबसे शातिर कंप्यूटर विज्ञानी चोर मेरे कब्जे में है। वह आसानी से पकड़ा जा सकता है, अगर आप अभी इसी समय आ जाएँ तो…!”

“क्या…? क्या यह वही हाईटेक चोर है, जिसने चोरी करने के नायाब तरीके खोज निकाले हैं और पिछले कुछ महीनों में अखबारों में उसके चोरी के हैरतअंगेज कारनामे और खबरें छपती रही हैं!” पुलिस अधिकारी की आवाज में उत्तेजना थी।

“हाँ-हाँ, वही!” निक्का ने अपनी उत्तेजना को भरसक शांत करते हुए कहा। और सचमुच निक्का ने जो पता दिया था, पंद्रह मिनट के भीतर पुलिस वहाँ जा पहुँची। सोते हुए सुबोधकांत सक्सेना को जगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था।

सुबोध ने सामने खड़े निक्का की ओर देखा तो उसे क्रोध तो बहुत आया, पर वह क्या कहता! लाचार था।

अचानक निक्का के हाथ में अपना सुपर कंप्यूटर देखकर सुबोधकांत फिर से आपा खो बैठा। चीखकर बोला, “मेरा मिनी सुपर कंप्यूटर निक्का के हाथ में कैसे? दिलवाइए…मुझे दिलवाइए—अभी!”

“नहीं अंकल!” निक्का ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट डी.पी. खोसला से कहा, “अगर यह यंत्र इसके हाथ में आ गया तो यह अभी हम लोगों के मस्तिष्क को ‘टेम’ करके छूट निकलेगा। फिर इसे पकड़ा नहीं जा सकता।…यह हाईटेक चोर है, लोगों के दिमागों को अपने कंप्यूटर के अनोखे माइंड कंट्रोलर से कंट्रोल करके बड़ी-बड़ी चोरियाँ करता है। इसी कंप्यूटर के बल पर इसने अपनी सारी चोरियाँ की हैं और अभी तक कानून के फंदे से बच निकलता रहा है।”

यह सुनते ही पुलिस सुपरिंटेंडेंट मि. खोसला ने कड़ी निगाहों से सुबोधकांत सक्सेना की ओर देखा, कहा, “तुम्हारा कंप्यूटर अब हमारे कब्जे में है। चलो, जल्दी चलो!”

अगले दिन पुलिस कमिश्नर आशीषदत्त कपूर ने एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी इस बड़ी और आश्चर्यजनक सफलता के बारे में पत्रकारों को बताया। साथ ही पूरी ईमानदारी और साफगोई से यह भी कहा—

“इसका सेहरा हमारे छोटे-से, उभरते हुए कंप्यूटर विज्ञानी निक्का के सिर पर बँधना चाहिए, जिसने अपने से कई गुना बड़े प्रतिभाशाली एक घाघ कंप्यूटर विज्ञानी को चतुराई से पकड़ लिया।”

सुनते ही वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने तालियाँ बजाकर निक्का के लिए प्यार और सम्मान प्रकट किया।

फिर मि. कपूर के आग्रह करने पर निक्का ने पत्रकारों को उस मिनी सुपर कंप्यूटर की जानकारी दी, जिससे यह विलक्षण हाईटेक चोर अपने अजब कारनामे कर गुजरता था—बिना किसी खास कोशिश के, बिना खून-खराबे के खेल-खेल में लाखों की चोरियाँ करता था और लोग उसकी सफलता पर दाँतों तले उँगली दबाकर रह जाते थे।

निक्का ने उस मिनी सुपर कंप्यूटर के जरिए माइंड कंट्रोल का एक ‘प्रोमो’ भी पेश किया, जिसके जरिए आदमी के मस्तिष्क को ‘टेम’ किया जा सकता था। एक आदमी से कहा गया कि वह अपने नजदीकी प्यारे दोस्तों के बारे में सोचे—उनकी आदतें, शक्ल-सूरत, उनसे जुड़े किस्से-कहानियाँ और घटनाएँ भी! उसने ऐसा ही किया। और लो, क्षण भर में ही झटपट स्क्रीन पर उसके दोस्तों के नाम और चेहरे आ गए। और इसके साथ ही उनके स्वभाव का पूरा विवरण और वे मजेदार किस्से-कहानियाँ भी, जो उनसे जुड़ी हुई थीं।

देखकर वह आदमी तो चकित था ही, भीड़ भी एकदम भौचक्की थी।

कुछ ही देर में लोगों में फुस-फुस शुरू हो गई। लोग इस छोटे मास्टर कंप्यूटर विज्ञानी यानी निक्का की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ उस हाईटेक चोर की भी, जो चोर था मगर ऐसा प्रतिभाशाली भी कि उसने ऐसा विलक्षण यंत्र ईजाद किया, जो लगभग आदमी के मस्तिष्क जैसा ही था और आदमी के मस्तिष्क के हर कोने तक जा सकता था। मस्तिष्क में उठने वाले हर विचार को पढ़ सकता था।

“कुछ भी हो भई, विलक्षण प्रतिभा है इस शख्स में!…काश, यह चोर होने के बजाय अपना जीवन आगे के आविष्कारों में लगाता तो पूरी दुनिया में भारत का नाम ऊँचा कर सकता था!” सब लोग खुस-फुस करके यही कह रहे थे।

“आप लोग ठीक कह रहे हैं। असल में हमने इसी सुपर कंप्यूटर के जरिए इसके अतीत की भी खोज की।…” निक्का ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “इसमें शक नहीं कि यह असाधारण जीनियस है। शुरू में इसने एक महान कंप्यूटर विज्ञानी ही होना चाहा था, जिसका सारी दुनिया में नाम हो। इस मिनी सुपर कंप्यूटर का आविष्कार करके यह इसे पेटेंट कराना चाहता था, ताकि दुनिया में इस तरह का आश्चर्यजनक और असाधारण ‘मस्तिष्क कंट्रोलर’ बनाने वाला यह दुनिया का पहला कंप्यूटर विज्ञानी मान लिया जाए।…पर फिर इसके जीन में जो कुछ दूसरी तरह के तत्त्व हैं, उन्होंने गड़बड़ मचानी शुरू की। इसने सोचा, ‘ठीक है, मेरा आविष्कार है। इसे आज नहीं तो कल पेटेंट करा ही लूँगा। इसमें जल्दी क्या है!…अभी थोड़ा इसका लुत्फ उठाया जाए!’

“फिर अपने शौक के लिए एक-दो लोगों पर इस मिनी सुपर कंप्यूटर की शक्तियों को आजमाया और माइंड कंट्रोल की अपनी विलक्षणता से खुश होकर सोचा, ‘अरे, ऐसे तो खूब पैसा कमाया जा सकता है।’ पहले इसने अपना जीवन-स्तर ऊँचा करने के लिए कुछ शौकिया चोरियाँ कीं। और फिर उसे इसी में मजा आने लगा और होते-होते यह पक्का, घाघ चोर बन गया। इसके मन में यह महत्त्वाकांक्षा पलने लगी कि मैं अपने इस अनोखे आविष्कार के जरिए दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अमीर आदमी बन जाऊँ! दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह!…”

निक्का की बात पूरी होते ही पुलिस कमिश्नर मि. कपूर बोले, “और जैसा कि निक्का कह रहा है, यह वाकई ऐसा ही तानाशाह बन जाता, अगर इसे चुनौती देने के लिए हमारे पास निक्का उस्ताद न होता और पूरे शहर गोपालपुर के लोगों का सहयोग हमें न मिल पाता।…अब इस वक्त तो सच पूछिए, सुबोधकांत सक्सेना नाम का यह शख्स कंप्यूटर विज्ञानी कम, कंप्यूटर चोर अधिक है। पर फिर भी हमें कोशिश तो करनी ही चाहिए, ताकि हमारे देश की यह एक बड़ी और असाधारण मेधा जाया न जाए, बर्बाद न हो। किसी तरह यह रास्ते पर आ जाए!”

पुलिस कमिश्नर मि. कपूर की यह बात सुनकर पत्रकारों ने भी एक मत से उनके इस विचार की सराहना की।

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)