अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर ‘दुनिया के सबसे अनोखे चोर’ की ‘स्टोरी’ छपी थी, तो उसमें निक्का की बातों को कोट करते हुए यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन भी था कि निक्का ने कैसे उस सुपर चोर को मात दी और उसी की चाल से उसे अपने जाल में फँसाया।
पूरी खबर एक रोमांचक किस्से से कम नहीं थी। एक जादूनगरी के जादू जैसा किस्सा…
असल में हुआ यह कि हमारे कंप्यूटर उस्ताद और जासूस निक्का को उस शातिर ‘महाचोर’ का पता मालूम पड़ा, तो एक दिन वह पता हाथ में लेकर घूमते-घूमते किसी बहाने से दरियागंज के सुबोध के घर जा पहुँचा। उसने अड़ोसी-पड़ोसियों से सब पता कर लिया कि वह कब घर आता है, कब जाता है और उसकी क्या-क्या आदतें हैं। उसका अनुमान सही था कि वह चतुर चोर अकेला ही रहता था और शायद दुनिया में एकदम अकेला था या हो गया था। इसी वजह से उसका कमरा एकदम बंद रहता था।…
एक-दो बार तो निक्का को खाली हाथ ही लौटना पड़ा, लेकिन शायद तीसरी बार सुबोधकांत सक्सेना से उसकी मुलाकात हुई। निक्का ने थोड़ा बहाना बनाते हुए कहा—
“कंप्यूटर में मेरी रुचि है अंकल, तो चेन्नई के आपके एक मित्र मि. मेहरा ने सुझाया कि सुबोधकांत सक्सेना से बड़ा कंप्यूटर विशेषज्ञ तो दिल्ली में ढूँढ़े से न मिलेगा। वह तो सुपर कंप्यूटर उस्ताद है। मि. मेहरा ने ही आपका पता दिया। चेन्नई कंप्यूटर संस्थान से आपने प्रशिक्षण ही नहीं लिया, आप तो गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे हैं। उन्होंने मुझे सब कुछ बताया है।”
सुनकर सुबोध हँसा। कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें सिखाऊँगा। तुम मेरे शिष्य बन जाओ। बनोगे ना?…मैं तुम्हें कंप्यूटर की दुनिया के नए-नए ऐसे आविष्कारों के बारे में बताऊँगा, जिनका भारत में अभी किसी और को नहीं पता। तुम उनके आधार पर इतना पैसा और नाम कमा सकते हो कि लोग दाँतों तले उँगली दबा लेंगे।…”
“बस अंकल, फिर तो मेरी साध पूरी हो गई। मैं सीखने में बिल्कुल कोताही नहीं करूँगा।” निक्का ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा।
अब तो निक्का बार-बार कुछ न कुछ सीखने और पूछने के बहाने सुबोध के घर जा पहुँचता। सुबोधकांत सक्सेना से उसने ऐसी दोस्ती कर ली कि वह हाईटेक चोर जो सारी दुनिया का मस्तिष्क कंट्रोल करके चोरी करता था, उसका मस्तिष्क खुद निक्का से कंट्रोल हो रहा था। अगर निक्का दो-चार रोज मिलने न जाता तो सुबोधकांत उदास हो जाता। फोन करके उसे बुला लेता, “आओ निक्का, तुमसे कुछ बातें करनी हैं।…”
निक्का सुबोधकांत से कंप्यूटर की दुनिया से नए-नए आविष्कारों की जानकारी तो हासिल करता था, उन्हें खुद भी करके देखने लगा। एक दिन उसने कहा, “अंकल, मैंने कभी पत्रिका में पढ़ा था कि ऐसे कंप्यूटर भी बनने लगे हैं, जो आदमी के मस्तिष्क को कंट्रोल करने लगे हैं।…क्या यह बात सच है?”
सुबोधकांत ने हँसकर कहा, “हाँ, ऐसा कंप्यूटर बना लिया गया है और तुम्हें हैरानी होगी कि ऐसा कंप्यूटर बनाने वाला देश दुनिया का कोई और देश नहीं, बल्कि भारत है। और भारत के जिस वैज्ञानिक ने उस कंप्यूटर को ईजाद किया है, उसका नाम भी मैं जानता हूँ। उसका नाम है…”
कहते-कहते सुबोधकांत रुका, तो निक्का बोला, “मैं बताऊँ अंकल, उसका नाम क्या है?”
सुबोध ने सवालिया आँखों से निक्का की ओर देखा तो निक्का बोला, “अंकल, उसका नाम है सुबोधकांत सक्सेना।…क्यों ठीक है न!”
सुनकर सुबोध ने निक्का की पीठ थपथपाते हुए कहा, “अब तुम आ गए ठीक लाइन पर! लेकिन देखो निक्का, अभी मैं इस बात का खुलासा नहीं करना चाहता और तुम भी किसी से नहीं कहोगे। समझ गए न, क्योंकि खुलासा न करने के फायदे ज्यादा हैं।”
“क्या फायदे?” निक्का ने बड़ी मासूमियत से पूछा। इस पर सुबोध ने मुसकराकर कहा, “यह तुम बाद में जानोगे निक्का, धीरे-धीरे जानोगे। अभी तुम छोटे हो, बहुत छोटे!…”
निक्का और सुबोधकांत देर तक बातें करते रहे। आधी रात बीत चुकी थी और अब सुबोधकांत की आँखों में नींद थी। निक्का बोला, “अंकल, आज मैं यहीं रुक जाता हूँ। आपको कोई परेशानी तो नहीं…?”
“अरे, परेशानी किस बात की? वैसे भी इतनी रात हो गई है। आज तुम यहीं रुको, कल सुबह चले जाना।” कहकर सुबोधकांत वहीं पास में ही बैड पर पसर गया।
पर निक्का जागता रहा। उसे तो जागना ही था।…सुबोध ने सोने से पहले अपनी कलाई से उतारकर मिनी कंप्यूटर को बड़ी सावधानी से तकिए के नीचे रख दिया था और अब खर्राटे भर रहा था।
जब सुबोधकांत गहरी नीद में था, निक्का ने चुपके से उसके तकिए के नीचे से सुपर कंप्यूटर निकाल लिया। उसने जल्दी से कंप्यूटर को ऑन करना चाहा, पर एक मुश्किल आ गई और यह एक बड़ी मुश्किल थी पासवर्ड…! पासवर्ड तो उसे पता ही नहीं था।
निक्का ने बहुत दिमाग दौड़ाया। पर आखिर पासवर्ड वह कैसे पता करे? उस हाईटेक कंप्यूटर विज्ञानी ने अपने सुपर कंप्यूटर का पासवर्ड क्या रखा है, भला निक्का कैसे जान सकता था?
पर अचानक निक्का के मन में एक शब्द आया, ‘माइंड कंट्रोलर…!’ और फिर अचानक माइंड शब्द उसके भीतर अटक गया। माइंड, माइंड…सुपर माइंड! उसे लगा, उसके भीतर ‘सुपर माइंड’ शब्द को लेकर एक गहरी गूँज बनती जा रही
है। कोई पुकार-पुकारकर कह रहा है, सुपर माइंड! उसे लगा, हो ना हो, यही उस कंप्यूटर की कुंजी है। और सचमुच जैसे ही निक्का ने पासवर्ड की जगह ‘सुपर माइंड’ शब्द टाइप किया, कंप्यूटर फौरन खुल गया।
जीत! एक बहुत बड़ी जीत…! निक्का ने जैसे अपने-आप से कहा, “अब मुझे इस जीत से कोई नहीं रोक सकता और न कोई इस महा चालाक चोर को बचा सकता है!” और फिर झटपट निक्का ने उस सॉफ्टवेयर को खोला, जिसे भारत में क्या दुनिया में पहली बार सुबोधकांत सक्सेना ने बनाया था और माइंड कंट्रोलर के रूप में उसका इस्तेमाल करता था।
यह सॉफ्टवेयर सचमुच दिलचस्प था। जैसे-जैसे निक्का आगे बढ़ता जा रहा था, उसे बेहद मजा आ रहा था। और कभी-कभी वह इतना चकित हो उठता कि उसके हाथ ‘की-बोर्ड’ पर रुक जाते। माउस उसके हाथ में थरथराने लगता।…
निक्का के लिए यह ऐसी उत्तेजना का क्षण था, जिसकी उसने कभी ठीक-ठीक कल्पना तक नहीं की थी। और लो, अब इस सॉफ्टवेयर के सबसे महत्त्वपूर्ण और गोपनीय हिस्से में वह जा पहुँचा था। यहाँ दुनिया के सभी तरह के दिमागों के नक्शे थे। और इतना ही नहीं, उसमें अलग-अलग तरह के मस्तिष्कों के बारे में सांकेतिक नाम भी थे। कुछ बहिर्मुखी मस्तिष्क थे तो कुछ एकदम अंतर्मुखी। कुछ एकदम चालक और घुन्ने मस्तिष्क थे तो कुछ बेहद सीधे-सरल। कुछ चुप्पे लोगों के मस्तिष्क तो कुछ बेहद बड़बोले और नखरीले लोगों के मस्तिष्क थे। सीधे-सरल विन्रम लोगों के मस्तिष्क थे तो दुनिया के महा-घमंडियों के भी!…
निक्का जैसे-जैसे उनके बारे में पढ़ता जा रहा था, सुबोधकांत सक्सेना द्वारा खोजे गए इस सुपर कंप्यूटर और उसके असाधारण सॉफ्टवेयर का राज उसके सामने खुलता चला जा रहा था। और अब वह उन गाइडलाइंस के बारे में बखूबी जान गया था, जहाँ से होते हुए सुबोधकांत सक्सेना ने कंप्यूटर की दुनिया का यह महा आविष्कार कर डाला था।
आगे कंप्यूटर का सबसे जटिल यंत्र था, जिसमें मस्तिष्क से निकलने वाली तरंगों का कंप्यूटर के रेडिएशंस से पीछा किया जाना था। फिर उसका सही तालमेल करके मानव-मस्तिष्क की तरंगों को अपनी पकड़ में करके मोटिवेशन किया जाना था। और फिर जरूरत पड़ने पर उन्हें किसी भी दिशा में घुमा देने की कोशिश की जानी थी! इस सबके तौर-तरीके इस जटिल सॉफ्टवेयर में मौजूद थे।
निक्का ने झटपट सुपर कंप्यूटर की चमत्कारी सूई को उस किस्म के मस्तिष्क की ओर दौड़ाना शुरू किया, जो एक किस्म का सुपर माइंड था। लेकिन इतना चालाक और इतना प्रतिभावान था कि वह एक साथ दुनिया का सबसे बड़ा चोर और दुनिया का सबसे बड़ा कंप्यूटर विज्ञानी भी था। अपराध और विज्ञान दोनों क्षेत्रों का बेताज बादशाह!…
एक मिनट…दो…तीन! कोशिश…! कोशिश पर कोशिश… और लो फतह! यों दुनिया के सबसे बड़े कंप्यूटर विज्ञानी चोर का पीछा करते-करते आखिर निक्का ने उसके मस्तिष्क की जटिल तरंगों को पकड़ लिया। और अब सब कुछ उसकी मुट्ठी में था।
जो शख्स दूसरों का शिकार किया करता था और शिकार के मजे तथा दौलत हासिल करता था, जो शिकार करते-करते एक दिन दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह और अमीर आदमी बनना चाहता था, वह शिकारी आज खुद शिकार हो चुका था। और उसका शिकार किसी और ने नहीं, एक बच्चे निक्का ने किया था, जिसे कंप्यूटर की दुनिया में आए अभी कुछ ही वर्ष हुए थे। और अब तो उसने कमाल की सुपरटेक जासूसी का भी परचम लहरा दिया था।…
अब निक्का को चिंता नहीं थी। चोर फंदे में आ चुका था। अब सुबोधकांत अगर अपनी नींद से जाग भी जाता तो वह निक्का का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था, क्योंकि वह महान हाईटेक चोर यानी कंप्यूटर की दुनिया का बादशाह इस समय शस्त्ररहित था। उसका सबसे ताकतवर ब्रह्मास्त्र, उसका सुपर कंप्यूटर, इस समय निक्का के कब्जे में था।
निक्का न सिर्फ उसे पूरी तरह समझ चुका था, बल्कि उसके जरिए काम करना और दूसरों का माइंड कंट्रोल करना अब उसके लिए चुटकियों का काम था।
यह एक नया महाभारत था, जिसमें कोई रक्तपात नहीं, लेकिन लड़ाई भीषण थी।
इस महाभारत का अर्जुन निक्का था।
निक्का उस्ताद…!
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
