भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
‘चाहिए थोड़ी-सी हिम्मत, थोड़ी-सी समझ,
उम्र तो है कच्ची उसकी, अभी है नासमझ।’
देवांगी एक मिनट रुकी, मम्मी की ओर देखा! पर मम्मी। मनीषा बहन तो बातों में व्यस्त हो गई थी, रंजू आए तब थोड़ी पूछताछ तो करे ही।
‘रंजु, तुम तो देवांगी से एक ही वर्ष छोटी हो। तुम्हें तो पढ़ना चाहिए। काम तो जिंदगी भर चलता ही रहनेवाला है।’
रंजु के बदले उसकी माँ कांता ने जवाब दिया। ‘बहन, हमारे यहाँ तो ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता। नहाने के बाद तो उसे स्कूल भी जाने नहीं दिया जाता।’
देवांगी ट्यूशन के लिए निकल गई थी।
देवांगी दसवीं कक्षा में थी, इसलिए वह तो बोर्ड की परीक्षा की तैयारी में ही व्यस्त रहती थी। वह भली और उसका बैग और उसकी किताबें भली! उसे पढ़ने का शौक था, इसलिए किताबों में ही खोयी रहती थी। उसे बातें करना ज्यादा पसंद नहीं था। उसकी मम्मी बात को कहाँ से कहाँ ले जाती थी! रंजु देवांगी को स्कूटी पर दौड-धूप करती हुई देखती रहती थी। कांता बहन देवांगी से कहती भी;
‘किताबों में खोये रहने में तुम्हारा माथा नहीं दर्द करता?’
वह मुस्कुराकर चल देती थी।
कांता बहन जब अकेली काम करने के लिए आयी तब मनीषा बहन से रहा नहीं गया, ‘क्यों? रंजु कहाँ गई?’ उन्होंने धीरे से कुछ कहा। वह और दो दिन नहीं आयी। देवांगी को भी आश्चर्य हुआ।
पर, वह किसी से ज्यादा बात करती ही नहीं थी। पढ़ने के लिए उसे वक्त की बड़ी किल्लत रहती थी! ठेठ चौथे दिन रंजु आयी। देवांगी ने उसकी ओर देखा, उसने नजरें झुका ली। उसका चेहरा फीका पड़ गया था।
वह ट्यूशन से वापस लौटी तब, क्या मरियल की भांति काम करती है? जरा हाथ चला। कामचोरी मत कर।
कांता बहन रंजु को डांटती थी, मनीषा बहन ने तुरंत कहा; क्यों उसे इस प्रकार डांट रही हो? बेचारी एक तो…’
रंजु की आँख में आँसू आ गए। देवांगी ने यह देखा, ‘क्या हुआ है? क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है?’ उसने कोई जवाब नहीं दिया, कांता बहन शुरू हो गई, चार दिन हुए, बस ऐसे ही पड़ी हुई है। क्या हमें वह पुसाए? मैं अकेली घर का काम करूँ या बाहर का काम करूँ?’ देवांगी उसे अपने रूम में ले गई। ‘क्या है? चल बता।’ रंजु ने रो दिया। उसे पानी का ग्लास दिया। ‘मुझे अच्छा नहीं लगता, पेट और कमर में बहुत दर्द होता है। खाने में भी अरुचि हो गई है, मुझे बेचैनी होती है। ऊब का अनुभव होता है।’ वह अपने माथे पर हाथ धरकर बैठी।
देवांगी उसकी बगल में बैठी। ‘पहलीबार है न…पर यह तो हर एक लड़की की प्रोब्लेम है। मैं तो आठवीं कक्षा में थी तब से स्कूल, ट्यूशन आदि को कैसे छोड़ा जा सकता है? उसमें रोने या डरने जैसा है ही नहीं। स्त्री के शरीर की रचना ही ऐसी है। क्या यह तुम्हें मालूम नहीं?’ मुझे तो माँ ने डरा ही…अब तुम बड़ी हो गई हो…खबरदार रहना। उस पेड़ के पास नहीं जाना…उसे नहीं छूना।’ देवांगी हँसी, अब? यह तो हर महीने होगा। जरूरत लगे तो आराम कर लेना। रंजु का हँसता-मुस्कुराता चेहरा देखकर दोनों की माँ को शांति हुई।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
