एक दुकान पर तोते बिक रहे थे। एक सेठ वहाँ पहुँचा तो उसने दुकानदार से तोतों के बारे में पूछताछ की। उसे एक तोता काफी पसंद आ गया, लेकिन दुकानदार का कहना था कि वह तोता अकेले नहीं बेचा जा सकता, उसके साथ एक और तोता लेना पड़ेगा वर्ना वह बीमार होकर कुछ ही दिनों में मर जाएगा।
सेठ ने दोनों तोते खरीद लिये। जब वह उन्हें लेकर घर आया तो एक तोते ने उसे रामचरितमानस सुनाई। वह बहुत खुश हुआ। लेकिन, तभी दूसरे तोते ने उसे गंदी-गंदी गालियां देना शुरू कर दिया।
सेठ बहुत क्रोधित हुआ और उसने नौकर को बुलाकर कहा कि इसकी गर्दन मरोड़कर इसे बाहर फेंक दो। पहला तोता रोने लगा और बोला कि इसे मत मारिए। यह मेरा भाई है। हम बचपन में बिछुड़ गए थे। मुझे एक साधु ने पाला और यह डाकुओं के हाथ लग गया था। इसलिए इसकी भाषा इतनी गंदी हो गई। यह सुनकर सेठ को भी अपने क्रोध पर पश्चाताप हुआ और उसने तोते की जान बख्श दी।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
