एक था तोता, एक थी तोती। दोनों बड़े प्रेम से रहते थे। एक दिन तोता बोला, ”चलो तोती, कहीं घूमकर आएँ।”
तोती बोली, ”चलो।”
उड़ते-उड़ते दोनों पहुँच गए कौओं के देश में। वहाँ एक बड़ा बाग था। बाग में ढेरों आम के पेड़ थे। एक पके आम को देखकर तोती के मुँह में पानी आ गया। उसने आम में चोंच मारी ही थी कि कौओं का सरदार बल्लू बाघा आ गया। बोला, ”तुमने चोरी-चोरी आम खाए हैं। अब तुम कभी यहाँ से नहीं जा सकते।”
तोते-तोती ने हाथ-पैर जोड़े। पर बल्लू बाघा जरा भी नहीं पसीजा। बोला, ”अरे तोते, अपनी तोती को यहीं छोड़ जा। तभी तेरी जान छूट सकती है।”
सुनकर तोते को गुस्सा आ गया। वह जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगा, ”हम तो घूमते-घामते यहाँ आ गए। हमें क्या पता था, यह ऐसा बुरा देश है। यहाँ ऐसा अन्यायी राजा है।”
तोती भी जोर-जोर से रोने लगी।
तभी और पक्षी भी आ जुटे। पूछने लगे, ”बताओ भई, क्या बात है!”
इस पर कौओं का सरदार बल्लू बाघा दुष्टता से हँसकर बोला, ”यह बदमाश तोता मेरी कौवी को लेकर जा रहा था। इसे अपनी तोती बताता था। देखो तो, ऊपर की डाल पर कौवी ही बैठी है ना?”
कौओं के सरदार से सब पक्षी डरते थे। सबने देखा, वहाँ तोती बैठी है। पर सभी बात बनाकर बोले, ”हाँ भई, हाँ! यह तो बिल्कुल कौवी है। तोती होती तो क्या हरे रंग की न होती?”
सुनकर तोती और भी जोर-जोर से रोने लगी। तोते का भी रंग उड़ गया। उन्हें न्याय की बिल्कुल उम्मीद न रही।
इतने में कहीं से उड़ती-उड़ती आई एक मैना। उसने पूरा किस्सा सुन लिया था। तीखी आवाज में जोर से ललकारती हुई बोली, ”थू है तुम सब पर! तोती को कौवी बता रहे हो? तुम लोगों को अपने झूठ और नीचता पर शर्म नहीं आती?”
सुनकर सभी पक्षियों के सिर झुक गए। कौओं का सरदार बल्लू बाघा भी चुपके से खिसक लिया। तोता-तोती मैना को धन्यवाद देकर उसी समय अपने देश की ओर लौट पड़े।
