Hitopadesh ki Kahani : बहुत पुराने समय की बात है कि विक्रमपुर नामक नगर में समुद्रदत्त नाम का एक बनिया रहता था । उसकी पत्नी का नाम रत्न प्रभा था। अपने नौकर के साथ उसके अवैध सम्बन्ध थे। वह उसके साथ आनन्द विहार करती थी ।
एक दिन समुद्रदत्त ने अपनी पत्नी को उसे चुम्बन देते देख लिया। तब उस कुलटा ने तुरन्त अपने पति के पास जा कर कहा, “देखो तो यह नौकर कितना दुष्ट है। नित्य ही कपूर चुरा कर खा जाया करता है। आज मैंने इसका मुख सूंघ कर देख लिया है।” कहा भी गया है कि स्त्रियों का आहार पुरूषों से दुगुना होता है, बुद्धि चौगुनी, व्यवसाय छः गुणा और काम का वेग आठ गुणा होता है।
नौकर ने जब यह सुना तो उसने झल्ला कर कहा, “मलिक ! जिस घर में ऐसी स्त्री हो वहां भला सेवक किस प्रकार रह सकता है? यहां तो प्रतिक्षण मालकिन सेवक का मुख सूंघा करती है।”
यह कह कर वह रूठता हुआ चल पड़ा। बनिये ने बड़े यत्न से उसको समझा-बुझा कर रोका।
यह कथा सुना कर उसने कहा कि इसलिए मैं कहता हूं कि आपत्ति उपस्थित होने पर जो धैर्यपूर्वक उसका प्रतिकार कर लेता है वही बुद्धिमान है।
यह सुन कर यद्भविष्य कहने लगा, “जो नहीं होना है वह नहीं होगा। जो होना है वह हो कर ही रहेगा। आप चिन्ता रूपी विष को दूर करने वाली इस औषधि को क्यों नहीं पीते ?”
जैसा कि मछुआरों का निश्चय था । उसके अनुसार उन्होंने उस सरोवर में अपना जाल तान दिया। प्रत्युत्पन्नमति भी उसमें फंस गया। उस समय उसको एक उपाय सूझा। वह तुरन्त मुर्दे के समान हो गया। मछुआरों ने समझा कि वह तो मरा हुआ है इस लिए उसे जाल से निकाल कर बाहर फेंक दिया। अवसर मिलते ही वह पानी में खिसक गया। इस प्रकार उसने अपने प्राण बचा लिये।
यह सुना कर कछुआ बोला, “कुछ ऐसा उपाय कीजिये कि जिससे मैं दूसरे सरोवर में पहुंच जाऊं । “
हंस बोले, “पानी में पहुंच जाने पर तो बच जाओगे। किन्तु जब यहां से वहां तक भूमि पर चलोगे उस समय किस प्रकार बच पाओगे?”
“कोई ऐसा यत्न करो कि जिससे मैं आप लोगों के साथ आकाश मार्ग से जा सकूं।” “यह कैसे सम्भव है?
” सम्भव है। आप एक लकड़ी के दोनों छोरों को दो ओर से अपनी-अपनी चोंच से पकड़ लो। मैं उस लकड़ी को अपने मुख से बीच में से पकड़ कर लटकता हुआ आप लोगों की सहायता से आनन्द से यहां से निकल जाऊंगा।”
हंस बोले, “उपाय तो ठीक है । किन्तु समझदार प्राणी को चाहिये कि वह उपाय के साथ- साथ विनाश से बचने का मार्ग भी विचार कर ले। अन्यथा उस बगुले जैसी दशा होगी जिसके देखते-देखते ही नेवले उसकी सब सन्तानों को खा गये थे।”
कछुए ने पूछा, “वह किस प्रकार ?”
हंसों ने कहा, “सुनो, सुनाते हैं । “
