kavwa chala hanns ki chaal , hitopadesh ki kahani
kavwa chala hanns ki chaal , hitopadesh ki kahani

Hitopadesh ki Kahani : जब फिर पाठ आरंभ हुआ तो राजकुमारों ने पंडित जी से कहा, ‘गुरुजी ! हम सब राजकुमार हैं, इसलिए हमारी इच्छा विग्रह सुनने की भी है ।’

विष्णु शर्मा बोले, “आप लोगों को यदि यही रुचिकर है तो मैं आपको विग्रह भी सुनाता हूं। सुनो।

“हंसों के साथ मयूरों का समबल युद्ध हुआ था। उसमें कौओं ने हंसों के मन में विश्वास उत्पन्न कर दिया और उनके घर में जाकर डट गये. वहां रहकर उन्होंने हंसों को खूब ठगा ।”

राजपुत्रों ने पूछा, “वह किस प्रकार ?”

विष्णु शर्मा कहने लगे-

कर्पूरद्वीप में पद्मकेलि नाम का एक सरोवर है। वहां हिरण्यगर्भ नाम का राजहंस रहा करता था। वहां के सब जलचर पक्षियों ने मिलकर उसे राजा बना दिया।

क्योंकि राजा यदि योग्य नेता न हो तो उसकी प्रजा समुद्र में बिना कर्णधार की नौका के समान बह जाती है।

और भी कहा जाता है कि राजा प्रजा की रक्षा करता है और प्रजा राजा को उन्नत करती है । उस उन्नति से बढ़कर प्रजा का रक्षण श्रेयस्कर है। क्योंकि यदि रक्षण न हो सकेगा तो सब कुछ रहते हुए

भी कुछ नहीं रह जायेगा।

एक समय राजहंस खूब लम्बी-चौड़ी कमल की शैया पर अपने परिवार के साथ आनन्द से बैठा था. कुछ ही देर बाद किसी दूसरे देश से लौटा हुआ दीर्घमुख नाम का बगुला आया । उसने राजा को प्रणाम किया और बैठ गया ।

राजा ने पूछा, “दीर्घमुख ! विदेश से आ रहे हो – कहो क्या हाल है?”

दीर्घमुख बोला, “महाराज ! आपको बताऊं बड़ा ही लम्बा और बड़े महत्व का वृत्तान्त है । वही सुनाने के लिए तो मैं आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूं । सो सुनिये – जम्बूद्वीप में विन्ध्य पर्वत है। वहां पक्षियों का राजा चित्रवर्ण नामक मयूर रहता है। उसके अनुयायियों ने मुझे दंडकारण्य में घूमते हुए देखा तो पूछने लगे कि मैं कौन हूं और कहां से आया हूं, आदि आदि ।

मैंने उनको बताया कि मैं कर्पूरद्वीप के चक्रवर्ती राजा हिरण्यगर्भ राजहंस महाराज का सेवक हूं। और कौतूहलवश भ्रमण के लिये आया हूं।

यह सुनकर उन पक्षियों ने पूछा, “अच्छा यह बताओ कि तुमने अपना देश तो देखा ही होगा और अब तुम हमारे देश को भी देख चुके हो। अपने राजा के राज में तो तुम रहे ही हो और अब हमारे राजा के राज में भी तुमने भ्रमण कर लिया है। अब तुम बताओ कि इन दोनों में कौन-सा देश अच्छा है और कौन सा राजा अच्छा है?”

मैं और कह भी क्या सकता था । अतः मैंने कहा, कर्पूरद्वीप तो साक्षात् स्वर्ग है और वहां के राजा तो बस समझो कि दूसरे इन्द्र हैं। तुम लोग इस मरुभूमि में क्यों अपना जीवन नष्ट कर रहे हो। चलो मेरे साथ मेरे देश को चलो।”

मेरा यह कहना था कि उन सबको इस पर बड़ा क्रोध आया। यह स्वाभाविक भी है। क्योंकि कहा गया है कि सांप को दूध पिलाना उसका विष बढ़ाना होता है। उससे उनको शान्ति नहीं मिलती ।

विद्वान मनुष्य को चाहिए कि वह विद्वान लोगों को ही उपदेश दे, मूर्खों को नहीं । एक बार पक्षियों ने वानरों को उपदेश दे दिया तो उनको अपने घरों से ही हाथ धोने पड़े। राजहंस ने पूछा, “यह कैसे ?”

दीर्घमुख कहने लगा, “सुनिए महाराज ! सुनाता हूं।”

नर्मदा के तट पर एक बहुत बड़ा सेमर का वृक्ष था । स्थान-स्थान के अनेक पक्षियों ने आकर उसकी शाखाओं पर अपने- अपने घोंसले बना लिये थे और उनमें वे बड़े आनन्द से रह रहे थे ।

शीत ऋतु के एक दिन चौथे प्रहर की बात है कि बादल घिर आये और फिर मूसलाधार वर्षा भी होने लगी। सारे पक्षी उड़ उड़कर अपने- अपने घोंसलों में आकर दुबकने लगे। कुछ देर बाद बहुत से वानरों का समूह भी उस पेड़ के तले आकर वर्षा और शीत से बचने के लिए बैठ गया। ठंड इतनी थी कि बन्दर ठिठुर कर कांप रहे थे । उनको देखकर पक्षियों को बड़ी दया आई।

उन पक्षियों ने कहा, “वानर भाइयो सुनो! तुम लोग इतने बड़े हो जब कि हम सब बहुत छोटे-छोटे हैं। हम सब लोगों ने अपनी-अपनी चोंचों से तिनके चुन-चुनकर अपने रहने के लिये घोंसले बना लिए हैं। आप लोगों के तो हाथ-पैर दोनों ही हैं। तब आप लोग अपने लिए घर क्यों नहीं बना लेते?”

यह सुनकर ठंड से ठिठुरने वाले उन वानरों को क्रोध आ गया। उन्होंने सोचा कि वायु रहित घोंसलों में रहने के कारण ये हमारी खिल्ली उड़ा रहे हैं। अच्छा जरा वर्षा तो रुकने दो। और फिर, जब वर्षा रुक गई तो वे सारे वानर वृक्ष पर चढ़ गए और जिसको जहां पर जो घोंसला मिला उसने उसी को तोड़-ताड़ कर धरती पर फेंक दिया।

यह कथा सुनाकर दीर्घमुख ने कहा, “इसलिए मैं कहता हूं कि समझदार लोगों को ही उपदेश देना चाहिए।”

राजा ने पूछा, “इसके बाद उन्होंने क्या किया ?”

बगुला बोला, “महाराज ! उनको क्रोध आ गया। वे कहने लगे, “किसने उस राजहंस को राजा बनाया है?

“मैंने भी क्रुद्ध होकर पूछा, “तुम्हारे मयूर को किसने राजा बनाया है?

“यह सुनकर वे सब मुझको मारने को उद्यत हो गए। उस अवसर पर मैंने भी अपनी शक्ति का परिचय दिया ।

“क्योंकि अन्य समय तो पुरुष की क्षमा स्त्रियों की लज्जा के समान सुन्दर लगती है किन्तु पराजय के समय पराक्रम प्रदर्शन स्त्री प्रसंग के अवसर पर की जाने वाली निष्ठुरता के समान सुन्दर लगता है ।” –

यह सुनकर राजा को हंसी आ गई। उसने कहा, “जो अपना तथा दूसरे पक्ष का बलाबल नहीं जानता उसको तो शत्रुओं द्वारा तिरस्कृत होना ही पड़ता है।

“बाघ का चमड़ा ओढ़े एक मूर्ख गधा बहुत दिनों तक हरे-भरे खेतों को खाता रहा। किन्तु एक बार अपनी वाणी के दोष के कारण उसको अपने जीवन से ही हाथ धोना पड़ गया था।” बगुले ने पूछा, “महाराज! यह किस प्रकार ?”

राजहंस बोला, “सुनाता हूं, सुनो। “