jeevan charitr aacharan mein hona chahiye
jeevan charitr aacharan mein hona chahiye

स्वामी दयानंद सरस्वती के भक्तों की संख्या असंख्य थी। वह जहां भी जाते, प्रभावित होकर अनेक लोग उनके शिष्य बन जाते। उनके शिष्य उनके लिए कुछ न कुछ करना चाहते थे। इससे उन्हें संतोष होता था। उनके निकट शिष्यों में एक थे पंजाब के पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी। पंडित विद्यार्थी काफी लंबे समय तक स्वामी दयानंद के सान्निध्य में रहे और उन्होंने उनसे काफी ज्ञान भी प्राप्त किया। वह स्वामी जी के कई कार्यक्रमों में शामिल हुए। स्वामी जी उनके प्रति काफी स्नेह रखते थे।

स्वामी जी के देहावसान के कुछ समय बाद स्वामी जी के ही किसी दूसरे अनुयायी ने पं- विधार्थी से कहा, पंडित जी, स्वामी जी महायोगी थे। आपको उनके घनिष्ठ संपर्क में रहने का सुअवसर मिला है इसलिए आपको उनके विषय में विस्तृत जानकारी है।

आप स्वामी जी का एक जीवन चरित्र क्यों नहीं लिखते? पंडित जी बड़ी गंभीरता से बोले, स्वामी जी का जीवन चरित कब तक पूर्ण होगा? यह कब तक प्रकाशित हो जाएगा? पंडित जी बोले, आप यह मत सोचो कि मैं कागज पर स्वामी जी का जीवन चरित्र लिख रहा हूँ। मेरे विचार से तो महापुरुषों का जीवन चरित्र मनुष्य के स्वभाव में, आचरण में लिखा जाना चाहिए। किसी महापुरुष के विचारों का अपने आचरण में जीना ही उसके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होती है।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)