jara tumheen hata do
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Hindi Immortal Story: पांडवों के वनवास का समय खत्म होने को था। कौरवों की कुटिलता वे जानते थे। लगता था, लड़ाई के बिना राज्य वापस नहीं मिलेगा।

इसी तरह की बातें चल रही थीं। तभी भीम ने सोचा, ‘चलो, थोड़ा टहल आएँ। मन बदलेगा।’

चलते-चलते भीम काफी दूर निकल गए। अब वे एक ओर दुर्गम जंगल में आ गए थे। एक जगह देखा, रास्ता संकरा है। मगर बीच में एक बड़ा-सा बंदर बैठा है। उसकी पूँछ दूर तक फैली हुई थी।

भीम को गुस्सा आ गया, यह बंदर रास्ते में क्या कर रहा है? उन्होंने घमंड में आकर कहा, “अरे बंदर, उठ रास्ते से!…उठ जल्दी।”

पर बंदर अपनी जगह से न हिला, न डुला। वैसे ही बैठा रहा।

भीम ने दूसरी-तीसरी बार कुछ और गुस्से में कहा, पर बंदर पर कोई असर नहीं पड़ा। अब तो भीम का गुस्सा और भी बढ़ गया। उन्होंने देखा, लाँघने के लिए जरा भी रास्ता नहीं है। पूरा रास्ता बंदर और उसकी पूँछ ने घेर रखा है। भीम ने गुस्से में आकर गदा उठा ली, “दुष्ट बंदर हटता है या…?” इस पर बंदर ने बड़ी शांति से कहा, “भई, इतना चीखते क्यों हो? देखते नहीं, मैं कितना बूढ़ा हो गया हूँ। तुम्हीं मेरी पूँछ उठाकर एक ओर रख दो और आगे निकल जाओ।”

सुनकर भीम गुस्से में तमतमाते हुए आगे बढ़े। सोचा, गेंद की तरह उठाकर अभी बंदर और उसकी पूँछ को फेंक देंगे। पर काफी जोर लगाने पर भी पूँछ टस से मस न हुई।

बंदर हँसा, बोला, “और जोर लगाओ महाबली भीम…और जोर!”

सुनते ही भीम पसीने-पसीने हो गए। बोले, “आप कौन हैं, मुझे बताइए। आप साधारण बंदर तो नहीं हो सकते।”

“मैं हनुमान हूँ।” बंदर बोला, “अब बूढ़ा हो गया हूँ। तुम्हें इधर से आते देखा तो सोचा, जरा तुम्हारे बल की भी परीक्षा कर ली जाए।”

भीम ने झट हनुमान जी के आगे सिर झुकाकर माफी माँगी। कहा, “आप वचन दीजिए, महाभारत युद्ध में आप हमारी ओर से लड़ेंगे।”

हनुमान बोले, “नहीं भीम, अब लड़ना मेरे बस की बात नहीं। हाँ, मैं सूक्ष्म रूप में अर्जुन के रथ पर सवार रहूँगा। मेरे वहाँ रहते अर्जुन का बाल बाँका नहीं हो सकता।”

भीम ने प्रसन्न होकर एक बार फिर हनुमान जी को सिर नवाया और अपने रास्ते पर बढ़ चले।

ये कहानी ‘शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Shaurya Aur Balidan Ki Amar Kahaniya(शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ)