Hindi Immortal Story: पांडव गंधमादन पर्वत पर रह रहे थे। वह पर्वत बड़ा ही सुंदर था। उनकी शोभा के क्या कहने। शीतल पानी के कल-कल करते झरने, हरे-भरे पेड़ और रंग-बिरंगे सुगंधित फूल। ऐसा लगता था, मानो स्वर्ग की सारी सुंदरता इस पर्वत पर उतर आई है। पांडव वहाँ बहुत सुखी थे।
लेकिन गंधमादन पर्वत पर एक दुख भी था। वहाँ यक्ष और किन्नर विचित्र वेश बनाकर इधर-उधर घूमते रहते थे। वे सभी मायावी थे। अपनी उछल-कूद और असहनीय हरकतों से पांडवों के एकांत में बाधा पहुंचाते थे।
अकसर वे पांडवों की कुटिया के आसपास अधखाए फल गिरा जाते थे। कभी-कभी वृक्षों को काटकर भी फेंक जाते थे।
एक बार एक किन्नर ने भीम की ओर इशारा करके कहा, “यह मोटा अपने आपको जाने क्या समझता है? हमेशा गदा लिए घमंड में घूमता रहता है। अपनी बहादुरी की डींगें हांकता है। लेकिन हमारा एक मुक्का भी पड़ जाए, तो कटे पेड़ की तरह जमीन पर लुढ़क जाएगा।”
सुनकर भीम क्रोध से तिलमिला उठे। अपनी वीरता और शौर्य आ अपमान भला वह कैसे बर्दाश्त करते। हुंकार भरते हुए उन्होंने प्रतिज्ञा की, “इन दुष्टों को ठीक रास्ते पर लाना ही होगा। मैं इनको यमलोक पहुंचाकर ही छोड़ूँगा।” भीम ने ललकारते हुए यक्षों-किन्नरों से कहा, “वैसे शायद मैं तुम्हें माफ भी कर देता, पर अब तुम्हारा व्यवहार हद से बाहर चला गया है। भीम का मजाक उड़ाने का परिणाम तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा।”
भीम की बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। उलटे वे तरह-तरह से मुंह बना, भीम को चिढ़ाने और अट्टहास करने लगे।
उसी समय द्रौपदी वहाँ आई। उसने भी उनकी हरकतों से दुखी होकर कहा, “यह पर्वत बेहद सुंदर है। पर यहाँ का वातावरण इन दुष्टों ने दूषित कर दिया है। अगर यह पर्वत इनके अत्याचारों से मुक्त हो जाए तो कितना अच्छा रहे।”
भीम ने कहा, “ऐसा ही होगा। गंधमादन पर्वत को मैं इन दुष्टों के आतंक से मुक्त करूँगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है।”
भीम क्रोध से थर-थर काँपते हुए उठ खड़े हुए। उन्होंने अपने धनुष-बाण उठाए। तलवार ली। एक हाथ में गदा सँभाली। बगैर अपने भाइयों को बताए, अकेले यक्षों-किन्नरों से लड़ने चल पड़े। उनका चेहरा वीरता के गर्व से चमक रहा था।
पर्वत की चोटी पर पहुंच, भीम वहाँ से कुबेर के महल को देखने लगे। महल वाकई बेजोड़ था। उसमें सोना और मणियाँ जड़ी थीं। महल के चारों ओर सोने का परकोटा था। सब ओर हरि, रत्न और मणियाँ जगमगा रही थीं—जैसे असंख्य नन्हे-नन्हे दीप झिलमिला रहे हों।
थोड़ी देर भीम ठगे से यह सब देखते रहे। फिर अचानक उन्हें अपना उद्देश्य याद आया। उन्होंने तेज आवाज में शत्रुओं के रौंगटे खड़े कर देने वाला शंख बजाया। धनुष की टंकार की। शंख की आवाज और धनुष की टंकार पर्वत की घाटियों में गूँजने लगीं। सुनकर सभी के दिल दहल गए।
यक्ष, गंधर्व सभी हैरान, “यह कौन आ गया हम सब को चुनौती देने के लिए?” सभी अपने-अपने हथियार लेकर दौड़े।
लेकिन भीम ने उनके शस्त्रों को काट गिराया। तीरों से उनके शरीर बेध दिए। गदा के प्रहार से कितने ही यक्ष-किन्नर स्वर्ग सिधार गए। जो बचे, वे चीत्कार करते हुए भागे।
उनमें कुबेर का मित्र मणिमान भी था। वह अत्यंत दुष्ट था। किन्नरों को भागते देखा, तो उसने ललकारते हुए कहा, “शर्म नहीं आती। एक आदमी ने इतनी बड़ी सेना को मार गिराया। अब क्या मुंह लेकर जाओगे कुबेर के पास।”
इस पर भी भागते किन्नर-यक्ष नहीं लौटे, तो मणिमान अकेला ही भीम से आ टकराया। शारीरिक बल के अलावा उसके पास कुबेर की दी हुई चमत्कारी शक्तियाँ भी थीं।
उधर महाबली भीम वीरता के साक्षात अवतार थे। उनमें हजारों हाथियों के बराबर बल था। भीम पर निशाना साधकर मणिमान ने फौलाद की बनी एक शक्ति छोड़ी। उसमें से अग्नि की लपटें निकल रही थीं। वह शक्ति भीम को लगी, तो उनका दाहिना हाथ घायल हो गया।
अब तो भीम गुस्से से आग-बबूला हो गए। गदा उठाकर वह आकाश में उछले। गर्जना करते हुए मणिमान पर गदा का तेज प्रहार किया। मणिमान इसे झेल नहीं सका। कटे पेड़ की तरह जमीन पर आ गिरा।
पर्वत की गुफाओं में चीत्कार की आवाजें गूँज रही थीं। पांडवों ने ये आवाजें सुनीं। उन्होंने देखा, भीम आसपास कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। वे चिंतित हो गए।
सभी पांडव दौड़कर वहाँ पहुंचे। दृश्य देखकर वे सकते में आ गए। भीम गदा लिए खड़े थे। पास में मरे हुए अनगिनत यक्ष-किन्नर पड़े थे।
युधिष्ठिर ने कहा, “भीम, तुमने बिना बात इनको मार डाला। यह ठीक नहीं किया। कहीं कुबेर नाराज हो गए, तो हमारा यहाँ रहना मुश्किल हो जाएगा।”
इस बीच बचे हुए यक्ष और किन्नर कुबेर के पास गए। उन्होंने रोते हुए कहा, “बचाइए, बचाइए, प्रभु! न जाने क्या होने वाला है? आज अकेले एक आदमी ने बहुत से यक्ष-किन्नरों का संहार कर दिया। यही हाल रहा, तो हमारा नामोनिशान मिट जाएगा।”
सुनकर कुबेर की आँखें क्रोध से जलने लगीं। बोले, “भला किस व्यक्ति की यह हिम्मत हो सकती है? मैं खुद चलकर देखता हूँ।”
कुबेर ने तुरंत रथ तैयार करने की आज्ञा दी। अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हो, रथ में बैठे। रथ हवा की गति से चल पड़ा। गंधमादन पर्वत पर कुबेर ने युधिष्ठिर और उनके भाइयों को देखा, तो सारी बात समझ में आ गई। उनका क्रोध शांत हो गया।
पांडवों ने भी हाथ जोड़कर कुबेर को प्रणाम किया। युधिष्ठिर ने कहा, “भीम से अपराध हुआ है। छोटा समझकर माफ कर दीजिए।”
कुबेर ने स्नेह में भर कर युधिष्ठिर से कहा, “भीम पर मुझे जरा भी क्रोध नहीं। आप धर्म के साक्षात अवतार हैं। आपके भाई भला धर्म के विरूद्ध कोई काम कैसे कर सकते हैं? भीम पर क्रोध मत कीजिए। ये तो खुद अपने ही बुरे कर्मों के कारण मरे हैं।”
“यह कैसे?” युधिष्ठिर ने पूछा।
कुबेर ने कहा, “बड़ी पुरानी बात है। मैं वह कथा सुनाता हूँ। सुनो—
“एक बार कुशस्थली नामक स्थान पर देवताओं की एक सभा हुई। उसमें मुझे भी बुलाया गया था। मैं अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित होकर, अपने तीन सौ वीर यक्षों समेत वहाँ गया। मेरा मित्र मणिमान भी मेरे साथ था।
“रास्ते में मुनिवर अगस्त्य मिले। वह नदी के तट पर कड़ी तपस्या में लीन थे। मणिमान गुरु से दंभी रहा था। अपनी ताकत का घमंड ही उसे ले डूबा। अभिमान में आकर उसने ऋषि को प्रणाम नहीं किया।
“मुनिवर अगस्त्य ने गुस्से में आकर कहा, “कुबेर, ताकत के घमंड में तुम्हारे मित्र ने मुझे कुछ नहीं समझा। मेरा तिरस्कार किया। लेकिन इसका यह घमंड चूर-चूर हो जाएगा। यह अपनी पूरी सेना समेत केवल एक व्यक्ति के हाथों मारा जाएगा। तुम इससे दुखी होगे, किंतु उस व्यक्ति से मिलने पर ही तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा।”
“इस तरह दुष्ट मणिमान को अपने ही कर्मों की सजा मिली है। उसके साथ-साथ मैं भी शाप से मुक्त हो गया।”
कुबेर के ये वचन सुनकर पांडव बड़े खुश हुए।
महाबली भीम की वीरता और शौर्य की यह कहानी देखते ही देखते दूर-दूर तक फैल गई। लोग कहने लगे, “धरती पर एक से बढ़कर एक वीर हैं। पर भीम जैसा बलवान कोई और नहीं है।”
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