एक बार किसी मंदिर में निर्माण कार्य हो रहा था। पास ही दो बढ़ई काम कर रहे थे। वे आरी से लकड़ी का बड़ा 4 लट्ठा चीरने की कोशिश कर रहे थे।
दोपहर को खाने का समय हआ, तो वे अधुरा काम छोड़ कर खाना खाने के लिए उठ गए, पर उन्होंने जाने से पहले लट्ठे के चीरे में एक लंबी कील फँसा दी ताकि वापस आकर उसे चीरने में मुश्किल न हो।
मंदिर के बरामदे के साथ वाली दीवार पर बंदरों का एक दल रहता था। ज्यों ही बढ़ई वहाँ से हटे, वहाँ कुछ बंदर आ पहुँचे और लट्ठों पर उछल-उछल कर खेलने लगे।
उनमें से एक बंदर काफी नटखट और धृष्ट था। उसका ध्यान लठे से निकली लंबी कील पर पड़ा। वह एक भी क्षण सोचे बिना लकड़ी के लठे पर बैठ गया और कील निकालने लगा। उसने पूरा जोर लगा कर कील तो खींच ली, पर उसकी पूँछ लट्ठे के दोनों हिस्सों में फंस गई। वह दर्द से चिल्लाया और अपनी पूँछ निकालने की भरपूर कोशिश करने लगा पर जितना ज्यादा निकालने की कोशिश करता, उतना ही तेज दर्द होता।
उसके दोस्तों ने भी मदद करने की पूरी कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ।
कुछ देर बाद बढ़ई खाना खा कर लौटे, तो बेचारे बंदर को चीखते-चिल्लाते सुना। उसकी हालत खराब हो गई थी। पूँछ से काफी खून निकल रहा था।

उन्होंने झट से पूँछ निकाल कर, शरारती बंदर की जान बचाई। बंदर की पूँछ पर चोट तो आई थी, पर उसे सबक मिल गया था कि बिना मतलब, दूसरों के काम में टाँग नहीं अड़ानी चाहिए।
शिक्षाः- बिना किसी उद्देश्य के कोई काम मत करो।
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