interview
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

मोनिका और सीमा दोनों को विचार आया कि साथ में ही अनिरुद्ध पंडया से मिलने जाय। श्रीमान् अनिरुद्ध बहुत बड़े लेखक इसलिए फोन करके समय लिया था। मनोवैज्ञानिक ढंग से पात्रों का विश्लेषण करना उनकी विशेषता है। मोनिका जब भी कुछ अच्छा पढ़ती है तब वह उस कहानीकार से मिलने के लिए उतावली हो जाती। बम्बई से दूर रहते लेखक से वह फोन पर बातें करती।

डोरबेल की आवाज सुन श्रीमान खुद दरवाजे पर आ पहुँचे।

ड्राइंगरूम में पाँव रखते ही पुस्तकालयी भाव की अनुभूति हुई। पुस्तकों ने वातावरण को सरस बनाया हुआ था। उस घर की हवा में मूलाक्षरों की सुगंध मिली हुई थी। श्रीमान अनिरुद्ध ने दोनों से हाथ मिलाकर अभिवादन किया। मोनिका और सीमा ने आस पास नजर फेरी फिर खिड़की के पास रखे दीवान पर बैठ गई। टेबल पर चौकोर तांबे का पात्र जल से भरा हुआ था। जल पर तैर रहे कमल व गुलाब के नव-पल्लवित-पुष्पित पुष्पों से मनोभावन सुगन्ध आ रही थी।

हाथ में जल का पात्र लेकर एक स्त्री आई।

“यह तरु बहन है। अनिरुद्ध जी की धर्मपत्नी।” मोनिका ने स्त्री के सामने देखते हुए सीमा से कहा।

“अच्छा.. आपको मैंने किसी कार्यक्रम में नहीं देखा, आप क्यों नहीं आती हैं? आपको साहित्य में रूचि नहीं!” मन में आई बात एक बार में ही बोल तो दी, लेकिन फिर सीमा को मन ही मन में संकोच हुआ।

सीमा को उत्तर देना तरु ने जरूरी नहीं समझा।

तरु की संवेदना को समझते हुए मोनिका बोली,

“तरु बहन, बहुत अच्छा पढ़ाती हैं। उनसे अंग्रेजी साहित्य पढ़ना एक अलग ही अनुभव है।”

तरु का मौन उसके हास्य ने तोड़ा। उसकी हंसी में अनगनित संवाद छुपे थे। तरु चुप थी मानो जैसे शब्द से दूर-दूर तक उसका कोई नाता न हो। महत्तम स्मित ही उसके वाणी व्यवहार का माध्यम बन चुका था।

“तरु को कार्यक्रम में देखने के लिए तो हम भी उत्सुक हैं।” – श्रीमान् का अंदाजे बया गजल के शेर से कम नहीं था।

“मेरे साथ चलोगी? तुझे मिसी से मिलवाती हूँ।” मोनिका के साथ आई तीन साल की बेटी तान्या को लेकर तरु बालकनी में आई।

उसके मन को किसी पकड़ से छूटने का सुकून मिला।

“मिसी कम हियर… तान्या मिसी को सहलाओ…” सोई हुई बिल्ली दौड़ कर तान्या के पाँव को चाटने लगी।

“कके…..केट..” तान्या टूटा-फूटा बोली। उसकी छोटी उँगलियाँ बिल्ली की मुलायम रुई पर फिर रही थी।

तरु झुले पर बैठी तान्या और मिसी को देख रही थी। पास में पड़ी रोटी के टुकड़े मिसी के सामने डाल दी।

रात में चाँद देख तरु के मन में विचार पनपा। अनगिनत सितारों के बीच में चन्द्र एक है, या अकेला है? क्या सच क्या झूठ। कुछ पल ऐसे ही बीत गये। उसे चन्द्रमाँ पर तरस आई। खुद मिलो दूर बैठी है। नहीं तो जरुर साथ देने पहुँच जाती।

आसपास दिख रहे कालेपन के पीछे एक पूरी जीवंत दुनिया थी। खिलौनों की भाँति दिख रही इमारतों में बड़े-बड़े आदमी रहते होंगे। उन बड़े आदमियों के घर में साधारण लोग भी होंगे।

अक्सर जब वह किसी से फोन पर बात करती तो बाय कहती और फिर पूछती थी, “अब फोन रख कर तुम क्या करोंगी?” तरु नें अब तक मिले उत्तर को याद करने की कोशिश करी। पैर की उंगलियों से झूले को गति दी। “मुझे भी आना है…” कहते हुए तान्या करीब आई और अपनी बाहें फैलाए खड़ी हो गई।

उसने तान्या को अपनी बाहों में ले लिया। मिस्सी की चमकदार आँखें उन दोनों को देख रही थी। वह मिस्सी को अपने पास लेने के लिए झुकी।

तभी अनिरुद्ध की आवाज सुनाई पड़ी। “तरु..ओ तरु..।” तरु को ख्याल आया, वह चाय, कॉफी या स्नैक्स बिना किसी औपचारिकता के यहाँ आ गई थी।

मोनिका और सीमा ने अनिरुद्ध के हाल ही में प्रकाशित उपन्यास ‘आसमानी संबंध’ के चरित्रों की चर्चा करना शुरू किया। अनिरुद्ध अपने पाठकों के अभिप्राय ध्यान से सुन रहे थे। वह अपने चरित्र की जीवंतता का अनुभव कर रहे थे।

“आपके किरदार में आज का आदमी है, इस उपन्यास में मुख्य किरदार डेनिस की संवेदना और दुविधा गहराई से प्रकट हुई है। उसके किसी भी व्यवहार का हम अनुमान नहीं लगा सकते हैं। आलेखन में वास्तविकता प्रतिबिंबित होती है। सच में ऐसा अद्भुत चरित्र हो सकता है! पढ़ते समय, मैं इसमें इतना खो गई कि मेरा मन आसमानी रंग से तरबतर हो गया था। अगर कोई आता या फोन करता तो..” सीमा लगातार अपनी बात रख रही थी।

अनिरुद्ध के लिए ऐसी बातें सुनना कोई नई बात नहीं थी। फिर भी, हर पाठक कुछ नयी बात कर रहा हो इस अंदाज से वह सुनते थे। घर पर दोस्तों और पाठकों का आना-जाना उन्हें जीवंतता महसस कराता था। कोई स्वजन पूछते भी थे, “आप पूरा दिन तो अस्पताल में व्यस्त रहते हों तो फिर लिखने के लिए समय कैसे जुटा पाते हों?” लेकिन उनके पास लिखने का समय था।

आमतौर वह रात नौ बजे के आसपास लेखन के लिए बैठ जाते फिर समय का कोई ठिकाना नहीं रहता। अक्सर जब वह शहर से बाहर किसी निश्चित स्थान पर रहने जाते, तो वहाँ का परिवेश उसके लेखन में उभर आता था। शबरी पर उपन्यास लेखन के इक्कीस दिनों तक पंपा सरोवर के पास रहे थे।

दूध कोल्ड ड्रिंक्स के गिलास के साथ तरु ड्राइंगरूम में आयी। ये देखकर सीमा बोल पड़ी,

“अरे! हम खाना खा कर आए है, मोनिका ने बहुत खिलाया है।”

“खाना खाने के बाद कोल्ड डिक्स तो अच्छा लगता है। लीजिये इतने से क्या फर्क पड़ेगा।।” तरु के आग्रह पर दोनों ने कोल्ड ड्रिंक के गिलास हाथ में लिए।

“तान्या… इधर आओ बेटा…” तरू उसे बुला रहा थी। तान्या तरु के पास आई।

“ना ना उसे मत देना, उसे जुखाम है।” मोनिका ने उसे कोल्ड ड्रिंक देने से मना किया।

“अरे, फिर तो उसे चॉकलेट दो भई।” अनिरुद्ध ने तान्या की क्यूट मुस्कान को देखते हुए कहा।

तरू ने फ्रिज से डेरीमिल्क निकाल कर तान्या के हाथ में रखी। थोड़ी देर के बाद मोनिका और सीमा ने जाने की आज्ञा मांगी। तान्या जाते जाते तरु को गले मिल रही थी। लिफ्ट नीचे जा रही थी साथ-साथ तान्या की नजर ऊपर तरु को देख हाथ उठाकर “बाय-बाय” पुकार रही थी।

घर में वापस आकर अनिरुद्ध बोले, “तुम जानती हो सीमा का जीवन… उसने बहुत संघर्ष किया है।। किसी दिन हम उसकी पूरी कहानी शांति से सुनेंगे। वैसे भी तुझे तो जिंदादिल लोगों की कहानियों में दिलचस्पी हैं ना!”

तरु सामने बैठे अनिरुद्ध की तरफ देख रही थी। उसने आसपास के लोगों पर कई कहानियाँ लिखी थी। कई बार वह बातें तरु ने भी सुनी थी। यहाँ इसी जगह पर उन सबने अपनी किताब के पन्नें खोले हैं, जहाँ अभी वो खुद बैठी है। बात करते-करते रोती हुई उस आवाज को तरु ने पानी पिलाया है। उसका अपना मासूम दिल कई बार पिघला है। बाद में अनिरुद्ध तो लेखन की राह पकड़ते। तरु का मन शब्दों से भर जाता।सब कुछ भुलाने की कोशिश के बावजूद, उसे सामान्य होने में समय लगता।

उसके कोरे पन्नों पर अक्षर एक-दूसरे से इतने उलझ गये थे कि असल में मूल लिखा हुआ पढ़ा नहीं जा रहा था। तरु को अब संवाद से ऊब हो गयी थी। बातों से लगाव छुट रहा था। शब्द एवं अर्थ का सामंजस्य उसे निरर्थक लगता था कोई आदमी जीना छोड़ सकता है। शब्द के लिए… अर्थ के लिए… लेखन के लिए या फिर…

“सुनो तरु, तुम्हें तो पता है मेरे कई उपन्यासों का विषय वैवाहिक जीवन है। इसलिए एक न्यूज चैनल हमारा इन्टरव्यू करना चाहती है। कल तुम्हें कौन-सा समय अनुकूल रहेगा?”

“इन्टरव्यू और मैं! परंतु, मैं तुम्हारी तरह बोलना कहाँ जानती हूँ?”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’