एक हरा-भरा वृक्ष था। उसमें बहुत-से छोटे-बड़े हरे पत्ते थे तो कुछ पीले पत्ते भी थे। एक दिन जोरों से आंधी चली। सारे पीले पत्ते जमीन पर आ गिरे। उनको जमीन पर गिरा देखकर हरे पत्ते खिलखिलाकर हंस पड़े, ‘हम लोगों पर बहुत अपना बड़प्पन झाड़ा करते थे, अब जमीन की धूल-मिट्टी में मिल गये, पता चलेगा!
यह सुनकर पीले पत्ते बोले, “मेरे प्यारे बच्चो, यह तो सबकी नियति है, मिट्टी से पैदा होते हैं और मिट्टी में ही मिल जाते हैं। रही बड़प्पन झाड़ने की बात, तो जब तक हम पेड़ पर रहे, आंधी-तूफान से तुम्हारी रक्षा करते रहे, स्वयं तूफानी थपेड़े सहे, किंतु तुम्हारा बालबांका नहीं होने दिया और तुमको इन तूफानों से बचने की सलाह देते रहे। अलावा इसके काल की गति को कोई नहीं रोक सकता, एक न एक दिन सबको मिट्टी में मिलना होता है। और फिर यदि हम जमीन पर न आते तो तुम्हारे जैसे और पत्तों को वृक्ष पर आने का अवसर कैसे मिलता? यह आना और जाना तो सृष्टि का प्रमुख नियम है।”
यह सुनकर वृक्ष के हरे पत्ते शर्म से झुक गये और पीले पत्ते “अलविदा” कहकर वहाँ से उड़ गये।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
