रात का घना अंधेरा शहर की सड़कों पर अपनी चादर बिछा चुका था। ठंडी हवा के झोंके एक अजीब सा सन्नाटा पैदा कर रहे थे। श्रेया की आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उसकी गोद में एक शख्स खून से लथपथ पड़ा था। उसकी साँसें धीमी हो चुकी थीं, लेकिन वह अब भी ज़िंदा था।
“अनिरुद्ध! प्लीज़, आँखे खोलो… मुझे छोड़कर मत जाओ,” श्रेया ने हिचकियों के बीच कहा।
अनिरुद्ध की आँखें हल्की सी खुलीं। उसके होंठ काँपते हुए कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे।
“श्रेया… यह एक साज़िश थी… मुझे मारने…” इतना कहते ही उसकी आँखें फिर से बंद हो गईं।
श्रेया को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे सिर्फ इतना पता था कि अनिरुद्ध से उसकी मुलाकात छह महीने पहले हुई थी। एक कॉफी शॉप में, जहाँ दोनों की नजरें मिलीं और फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया। धीरे-धीरे, वे एक-दूसरे के करीब आ गए। मगर श्रेया नहीं जानती थी कि अनिरुद्ध का अतीत उसके लिए जानलेवा साबित होगा।
श्रेया और अनिरुद्ध पहली बार उस दिन मिले थे, जब वह अपनी किताब पढ़ रही थी। अनिरुद्ध ने उसकी किताब की ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोला, “यह किताब बहुत अच्छी है, लेकिन इसका अंत अधूरा सा लगता है, है ना?”
श्रेया ने सिर उठाकर उसे देखा, और दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई। देखते ही देखते, वे अच्छे दोस्त बन गए और दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला।
लेकिन पिछले कुछ दिनों से अनिरुद्ध अजीब व्यवहार कर रहा था। वह कई बार किसी से छुपकर बातें करता, उसका चेहरा हर वक्त तनाव में रहता और ऐसा लगता कि वह किसी से डर रहा हो।
अनिरुद्ध के खून से सने शरीर को देखकर श्रेया के हाथ काँप रहे थे। उसने अपना फोन निकाला और पुलिस को कॉल करने ही वाली थी कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
“नहीं… किसी को मत बताना…,” अनिरुद्ध की आवाज़ धीमी थी।
“लेकिन अनिरुद्ध, तुम्हें डॉक्टर की ज़रूरत है। मैं तुम्हें ऐसे नहीं छोड़ सकती।”
“यह सब… राज़ है… अगर पुलिस आई तो वे मुझे खत्म कर देंगे…,” अनिरुद्ध ने मुश्किल से कहा और फिर बेहोश हो गया।
श्रेया को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कौन ‘वे’ हैं, जिनसे अनिरुद्ध डर रहा था। वह किसी तरह उसे अपनी कार तक ले गई और हॉस्पिटल की ओर बढ़ी। रास्ते में उसके दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल था—आखिर अनिरुद्ध की जान का दुश्मन कौन है?
डॉक्टर ने बताया कि अनिरुद्ध की हालत नाजुक थी, लेकिन अगर समय पर इलाज मिल गया तो वह बच सकता है। श्रेया को कुछ राहत मिली, लेकिन तभी उसके फोन पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया—
“अगर अनिरुद्ध बचा, तो तुम नहीं बचोगी।”
श्रेया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यह कौन था? और क्यों चाहता था कि अनिरुद्ध मारा जाए?
श्रेया ने अनिरुद्ध के फोन को उठाया और उसके मैसेजेस चेक करने लगी। उसमें एक नंबर बार-बार आया था। उसने उस नंबर पर कॉल किया।
“तुम कौन हो?” श्रेया ने गुस्से से पूछा।
फोन के दूसरी तरफ से एक ठंडी आवाज़ आई, “अगर जान बचानी है, तो इस मामले से दूर रहो। यह खेल तुम्हारी समझ से बाहर है।”
श्रेया ने गहरी साँस ली और कहा, “अनिरुद्ध को मारने की कोशिश क्यों की गई?”
“क्योंकि वह एक ऐसी सच्चाई जानता है, जो किसी को नहीं पता होनी चाहिए। और अगर तुमने ज्यादा खोजबीन की, तो अगला नंबर तुम्हारा होगा।”
फोन कट गया। श्रेया के शरीर में सिहरन दौड़ गई। आखिर अनिरुद्ध कौन था? कौन से राज़ जानता था?
अगली सुबह, अनिरुद्ध को होश आया। उसने श्रेया का हाथ पकड़कर कहा, “हमें यहाँ से भागना होगा… वे लोग तुम्हें भी मार देंगे।”
“पहले बताओ कि सच क्या है?” श्रेया ने दृढ़ता से कहा।
अनिरुद्ध ने गहरी साँस ली और कहा, “मैं एक गुप्त सरकारी एजेंट हूँ। मैंने एक ऐसे घोटाले का पर्दाफाश किया था, जिसमें बड़े लोग शामिल हैं। वे अब मुझे मारना चाहते हैं, और अब तुम भी उनकी हिट लिस्ट में हो।”
श्रेया को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जिस इंसान से प्यार करती थी, वह कोई आम आदमी नहीं, बल्कि एक गुप्त एजेंट था। लेकिन अब समय सोचने का नहीं था, बल्कि भागने का था।
तभी दरवाजे पर ज़ोर की दस्तक हुई। अनिरुद्ध और श्रेया ने एक-दूसरे की ओर देखा।
खेल अभी खत्म नहीं हुआ था।
दरवाजे की दस्तक तेज़ होती जा रही थी। अनिरुद्ध ने श्रेया की ओर देखा, उसकी आँखों में घबराहट थी, लेकिन दृढ़ निश्चय भी झलक रहा था।
“हमें अभी निकलना होगा,” अनिरुद्ध ने फुसफुसाते हुए कहा।
श्रेया ने सिर हिलाया, लेकिन तभी दरवाज़ा ज़ोर से धक्का देकर तोड़ दिया गया।
सशस्त्र लोग अंदर घुस चुके थे।
श्रेया और अनिरुद्ध के पास अब एक ही रास्ता था—या तो लड़ाई या फिर मौत।
(अगला भाग जल्द ही…)
