indr ko shaap
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Hindi Katha: महर्षि गौतम और अहल्या के विवाह का समाचार सुनकर समस्त देवगण निराशा होकर अपने-अपने लोक लौट गए। किंतु अहल्या के रूप-सौंदर्य को देख देवराज इन्द्र के मन में पाप जागृत हो गया था और वे उचित अवसर की प्रतीक्षा में थे। एक दिन गौतम मुनि अपने शिष्यों के साथ आश्रम से बाहर गए हुए थे। उस समय इन्द्र उनका वेश धारण कर आश्रम में आए और अहल्या से समागम की इच्छा प्रकट की। अहल्या पापी इन्द्र की कुटिलता को पहचान न सकी और उनके साथ सुखपूर्वक रमण करने लगी।

तभी महर्षि गौतम अपने शिष्यों के साथ लौट आए। प्रतिदिन जब भी वे आश्रम लौटते थे, अहल्या द्वार पर आकर उनका स्वागत करती थी। उस दिन उसे द्वार पर न देख उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ, मानो कोई अद्भुत घटना घट गई हो। तभी आश्रम के अन्य ऋषिगण विस्मित होकर बोले – ” मुनिश्रेष्ठ ! कितनी विचित्र बात है कि आप आश्रम के भीतर और बाहर दोनों स्थानों पर दिखाई देते हैं। यह आपके तप का ही प्रभाव है कि आप अनेक रूप धारण कर सभी स्थानों पर विचरण करते रहते हैं। आप धन्य हैं । ‘

यह सुनकर गौतम मुनि को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने अहल्या को उनका स्वर सुनकर वह अत्यंत भयभीत हो गई। यह जानकर कि महर्षि के वेश में किसी पापी ने उसके साथ समागम किया है, वह थर-थर काँपने लगी । इन्द्र को वहाँ देखकर महर्षि गौतम सारी बात जान गए। तब वे क्रोधित होकर बोले ‘इन्द्र ! तूने स्त्री की योनि पर आसक्त होकर यह पापकर्म करने का दुःसाहस किया है। जा, तुझे शाप देता हूँ कि तेरे शरीर में योनि के हज़ार चिह्न अंकित हो जाएँ। “

इसके बाद क्रोध की अधिकता में मुनि ने निरपराध अहल्या को भी सूखी नदी हो जाने का शाप दे डाला।

अहल्या करुण स्वर में बोली – “मुनिवर ! मुझे भली-भाँति ज्ञात है कि जो स्त्रियाँ कल्पना में भी किसी अन्य पुरुष की इच्छा करती हैं, उन्हें और उनके पूर्वजों को नरक की घोर यातना भोगनी पड़ती हैं। इसलिए मैं यह पाप कदापि नहीं कर सकती थी। इन्द्र ने आपका वेश धारण कर छलपूर्वक मेरा सतीत्व भंग किया है। यहाँ उपस्थित सभी ऋषिगण इस बात के साक्षी हैं। ‘

वहाँ खड़े सभी ऋषि-मुनियों ने अहल्या की बात का अनुमोदन किया। तब महर्षि गौतम अहल्या से बोले – “कल्याणी ! नदी होने के बाद जब तुम परम पवित्र गौतमी गंगा से मिलोगी, उस समय तुम पुनः अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर लोगी।” देवेन्द्र ने भी महर्षि गौतम के चरणों में गिरकर उनसे क्षमा-याचना की ।

उनकी करुण विनती सुनकर परम दयालु गौतम मुनि बोले – “देवराज ! तुम गोदावरी नदी में स्नान करो। इससे तुम पापमुक्त हो जाओगे और तुम्हारे शरीर में योनि के चिह्न नेत्रों के रूप में परिणत हो जाएँगे।

तब गौतमी गंगा के प्रभाव से अहल्या नदी बनकर पुन: अपने स्वरूप को प्राप्त हुई, जबकि इन्द्र पापमुक्त होकर सहस्राक्ष ( हज़ार आँखों वाले) हो गए।

इस प्रकार वह तीर्थ अहल्या संगम और इन्द्र तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । रामायण की कथा के अनुसार पति के शाप से अहल्या शिला हो गई और श्रीराम के पद रज से कठिन तपस्या के बाद उसका उद्धार हुआ।