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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

धाणधार प्रदेश में बह रही ऊमरदशी नदी। उसके दोनों ही किनारे हरे-भरे। यह ऊमरकाशी नदी पूर्व से आगे बढकर कुमारिका से मिलने कोलियारा में प्रवेश करती है। लेकिन पुल से थोडा आगे बढ़ने के बाद नदी सूखी पड जाती है। धाणधार के कांकण किनारे मां के आंचल में रहे बच्चे की तरह ऊमरदशी के सूखे किनारे पर चांगा गांव शोभा दे रहा है।

चांगा गांव पालनपुर के दीवान के भाई उस्मानखान की जागीर का गांव। उस्मान खान बहुत बडे मजहबपरस्त। पांच वक्त की नमाज पढने में कभी चुकते नहीं थे। अल्लाह के वे नेक बंदे थे। सारे आलम में ओलिया के रूप में जाने जाते थे। तपस्वी राजा के रूप में सब उनकी इज्जत करते थे।

चांगा गांव में अभेराज पटेल नाम के एक पटेल रहते थे। उनके पास बड़ी खेतीबाड़ी थी। वे अपनी जमीन को जोतते थे और अनाज भारी मात्रा में पैदा करते थे। वे अपने इलाके में प्रतिष्ठित थे। लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे। वे ईमानदार भी ऐसे ही थे। ईश्वर पर उनकी बहुत श्रद्धा थी। किसी का भी अहित होता देखे तो अभेराज पटेल को बहुत दुख होता था। पालनपुर के दीवान भी अभेराज पटेल को मान की नजर से देखते थे।

गांव जागीर का था और उस जमाने में जमीन का मेहसूल आज की तरह पैसे में नहीं वसूल किया जाता था। लेकिन उसके बदले अनाज लिया जाता था। किसान के पकाये अनाज में से चौथा हिस्सा राज को दिया जाता था।

एक बार चांगा गांव में उस्मान खान के कारभारी हवालदार के साथ मेहसूल वसूल करते हुए अभेराज पटेल के खलिहान में आ पहुंचे। पटेल के खलिहान में अनाज के ढेर के ढेर लगे हैं। पटेल ने कारभारी और उसके साथ आये लोगों की अच्छी तरह से खातर बरदास्त की। अभेराज पटेल का बाजरा बारह सौ मण हुआ था। इस हिसाब से राजभाग हुआ तीन सौ मण। कारभारी ने मेहसूल की किताब में लिखने में एक भूल की। तीनसौ मण के बदले तीस मण लिखा। और मेहसूल का काम पूरा कर फिर पालनपुर चले गये। हवलदार मेहसूल का बाजरा वसूल करने अभेराज पटेल के पास गया। उस जमाने में आज की तरह तौलने के बट्ट नहीं हुआ करते थे।

  • “पटेल! तीस मण बाजरा राजभाग का भर दो।”

  • “तीस मण की तीन सौ मण?” अभेराज पटेल ने पूछा- “मुझे तो तीन सौ मण बाजरा देना है। किताब में ठीक से देखों, हवलदारसाब!”
  • “पटेल! इस में तो तीस मण ही लिखा है!” हवलदार ने फिर से देख लिया।
  • “हवलदारसाब! मेरा तो बारह सौ मण बाजरा तौला गया था। इस हिसाब से तीनसौ मण बाजरा देने का बनता है।”
  • “लेकिन पटेल! मै कैसे ज्यादा ले सकता हूं? और वह बाजरा मैं रखू कहां? आप दरबार को तो जानते ही हो। जितना हुक्म हुआ है उतना ही ले सकता हूं मैं!”
  • “मुझे उस तपस्वी दरबार का एक दाना भी नहीं चाहिए। तपस्वी का दाना कभी हजम नहीं हो सकता और मुझे भी हिसाब देना पड़े कि नहीं?”

इस तरह अभेराज पटेल और हवलदार के बीच बहस चल रही थी। हवालदार तीस मण बाजरे से एक दाना भी ज्यादा लेने को तैयार नहीं है और अभेराज पटेल पूरे का पूरा राजभाग देने के लिए उत्सुक है। पटेल गांव के उन लोगों को बुला लाये जो मेहसल का काम सम्भालते थे। उन्होंने भी कहा कि पटेल के पास से तीन सौ मण बाजरा लेने का बनता है। लेकिन हवलदार अपनी बात पर अडिग रहे। अभेराज पटेल गांव के मेहसूल इकट्ठे करनेवाले और हवलदार को साथ लेकर पालनपुर गये। उन्होंने उस्मान खानजी से विनती की। उस्मान खानजी ने कारभारी को बुलवाया और पूछा-“यह अभेराज पटेल के पास से कितना बाजरा लेने का है?”

  • “मैं देखकर बताता हूं, बापू!” कारभारी ने किताब के पन्नें उथलाते हुए कहा। फिर खाता देख कर कहा-“तीस मण बाजरा बापू!”
  • “ना मेहतासाब! मेरे को तो तीन सौ मण बाजरा देने को बनता है! आपके लिखने में शायद भूल हुई होगी। पूछ लो इन सबको! और अपनी पोथी में सुधार करो। मुझे इन तपस्वी दरबार का एक दाना भी नहीं रखना है!”
  • “मुझसे इस पोथी में सुधार नहीं हो सकता पटेल! मैंने जो लिखा है सही ही लिखा है!”
  • आपको भूल हुई है और वह भूल आप सुधार लो! वरना मैं यह बाजरा कहां रखूगा?” अभेराज पटेल की टेक देख कर कारभारी और दरबारी दंग रह गये।
  • “तो इसमें अल्लाताला का कोई भेद होगा, पटेल! नहीं तो ऐसे इस तरह तीन सौ के तीस थोड़े ही हो जाये?” उस्मान खान ने बताया।

“ वो जो भी हो, बापू! लेकिन मेरे लिए तो राजभाग का एक दाना भी गाय के खून के बराबर है। अखा। है बापू!”

कारभारी अपनी पोथी सुधारने को राजी नहीं और अभेराज पटेल राजभाग में से एक दाना भी रखने को तैयार नहीं।

उस्मान खान अभेराज पटेल की ईमानदारी पर आफ्रीन हो गये।

“वाह पटेल! वाह! तेरी खानदानी का जवाब नहीं। तेरी ईमानदारी का क्या कहना? धन्य है तुम्हारी जनता। तेरे जैसे आसामी पर मुझे फख है। ऐसा करो महेता! इनके पास से तीन सौ मण बाजरा महेसूल के तौर पर वसूल करो और अपनी और से इतना ही बाजरा मिला कर कबूतरखाना, कुत्तों की ब्याल के लिए और गरीबों को दान में दे दो। इसमें अल्लाह का भेद है और वह भेद अल्लाह ही जानता है।” ऐसा मेहता से बोलकर उन्होने अभेराज पटेल की पीठ थपथपाई। अभेराज पटेल गदगद हो गये और उन्होंने हाथ जोड़े। उपस्थित सभी लोगों के लिए यह दृश्य जितना आश्चर्य में डालने वाला था, उतना ही प्रेरक भी था।

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं