अनंत क्षितिज के पार-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Short Kahani
Ananat Chitiz ke Paar

Short Kahani: कहते हैं ” जिसके पाँव ना फटे बिबाई l सो क्या जाने पीर पराई l ” लेकिन , ये पीर (दर्द ) दरअसल निमाई बाबू की खुद की अपनी थी l और पाँव भी उनका खुद का ही था l

दरअसल ,कौशल्या देवी के मायके से उनको बुलावा आया था l वहाँ , कौशल्या देवी के भतीजे की शादी थी l निमाई , बाबू अपने ससुर महादेव बाबू की बात को टाल ही नहीं सकते थें l क्योंकि जब- जब उनके खुद के घर में उनके खुद के भाई – भतीजे और भतीजियों की शादी पड़ती थी l वो महीने-दो-महीने पहले आकर पूरे घर की जिम्मेदारी को संभाल लेते थें l पूरी जिम्मेदारी के साथ l प्रबंध इतना तगड़ा होता था ; कि शादी में खाना बहुत ही हिसाब से बनवाते l खाना बिल्कुल बर्बाद नहीं होता था l खाना बनवाते ही नहीं ; बल्कि बारातियों और सरातियों का स्वागत भी बड़े दमदार तरीके से करते l

इतिहास गवाह है कि निमाई बाबू के यहाँ आज तक किसी ने ठंडी पूरियाँ नहीं खाईं l मिठाईयों का कारीगर वे बंगाल से बुलवाते l बिल्कुल स्पंजी रस गुल्ले l बढ़िया पनीर का सब्जी l कहने का तात्पर्य ये हैं ; कि उनके यहाँ की होने वाली शादी में कभी निमाई बाबू की खिल्ली नहीं उड़ी l ऐसे ससुर और साले के लड़के की शादी में जाने से वो भला कौशल्या देवी को कैसे रोकते ?
लेकिन , इधर , कौशल्या देवी घर से निकली ही थी l कि , एक दिन दूध लेकर आते समय निमाई बाबू गली में ऐसे गिरे की उनका पैर ही टूट गया l अब शादी-विवाह का घर ऐसे ही आपा- धापी वाला होता है l किसको परेशान किया जाये l खैर , शादी में तो उन्हें भी जाना ही था l लेकिन, जब उनके पैर के चोटिल होने की बात कौशल्या देवी और महादेव बाबू को पता चली तो उन लोगों ने ज्यादा जिद नहीं की l
लेकिन , उनके जिंदगी में पत्नी का या जीवणसाथी का क्या महत्व है l ये कौशल्या देवी के मायके जाने के बाद ही निमाई बाबू को पता चला था l कहने को तो निमाई बाबू का एक बहुत बड़ा कुनबा था l चार- चार बेटों और दसियों नाती- पोतों से निमाई बाबू का घर गुलजार था l लेकिन , उनके लिये सब बेकार था l नाश्ते और खाने की कौन पूछे l समय पर चाय मिल जाती ; तो वही बहुत था l प्लास्टर लगे पैर पर उनको अपनी जगह से हिलना भी मुश्किल हो रहा था l पर – पेशाब के लिये भी उनको अपने पोतों ऋषभ और कार्तिक की जरूरत पड़ती l पोते तो खैर दादाजी के दुलारे थें l वो हँसते- हँसते दादाजी की सेवा करते l लेकिन उनकी बहू गोमती और कृष्णा ससुर जी के काम को करने से कतरातीं थीं l उनको निमाई बाबू एक आफत की तरह लगते l कहाँ तो पहले वो अपने पति और बच्चों की परेशानियों से दो- चार होती थीं l अब एक ससुर की जिम्मेदारी अलग थी l जो उनके लिये सिर-दर्द से कम नहीं थी l
पहले प्राय: निमाई बाबू दफ्तर से लौटते तो कौशल्या देवी को चिढ़ाने के लिये ही कहते l तुमको तो दिनभर कुछ काम- धाम रहता नहीं है l दिनभर बस बैठी रहती हो l लेकिन कौशल्या देवी के मायके चले जाने के बाद निमाई बाबू को दाल- चावल का भाव जैसे मालूम पड़ गया था l कुछ तो कौशल्या देवी के बिछोह ने ; और कुछ पैरों पर चढ़े प्लास्टर ने कौशल्या देवी की अहमियत निमाई बाबू को समझा दी थी l वो , भलिभाँति इस बात को महसूस कर रहें थें ; कि निमाई बाबू के जीवण में दर असल कौशल्या देवी का क्या महत्व है l
करीब महीने डेढ़- महीने के बाद निमाई बाबू के पैरों का प्लास्टर कट चुका था l निमाई बाबू और कौशल्या देवी घर में बैठे हुए शादी- विवाह की बातें कर रहें थें l कि तभी एक दिन सर्कस बाबू घूमते- फिरते , निमाई बाबू से मिलने चले आये l दफ्तर में एक साथ ही निमाई बाबू और सर्कस बाबू काम करतें थें l सर्कस बाबू को देखते ही बड़े गर्मजोशी के साथ निमाई बाबू ने सर्कस बाबू का स्वागत किया l और बोले – ” अरे ! सर्कस बाबू आप ; बहुत दिनोंं के बाद मिले भाई ; और बताओ भाई ; कैसे आना हुआ ? मेरा मकान ढूँढनें में कोई परेशानी तो नहीं हुई , यार ? “
” नहीं यार ; तुम्हें भला इस शहर में कौन नहीं जानता यार l तुम्हारा घर ढूँढनें में कोई दिक्कत नहीं हुई भाई l बड़े आराम से मिल गया तुम्हारा घर l “
” अरे , कौशल्या आज बहुत बड़ा दिन है l आज हमारे यहाँ सर्कस बाबू आयें हैं l जा , जरा गर्मा- गर्म चाय ले आ l “
जब कौशल्या चाय ले आई l तो चाय के बहाने ही दोनों दोस्त पुराने दिनों को याद करने लगे l
सर्कस बाबू चाय की अपनी प्याली मेज पर से उठाते हुए बोले – ” और सुनाओ, तुम्हारी तो बड़ी मौज में कट रही है , यार l देख ही रहा हूँ l तुम्हारे इस भरे- पूरे और आबाद परिवार को l वाकई , में तुम बहुत ही खुशनसीब आदमी हो यार l तुम्हारा तो भरा – पूरा परिवार है भाई l एक मैं हूँ ..l “
” सो तो है , भाई l “
” लेकिन , तुम्हारे साथ क्या हुआ , भाई ? भाभी तो ठीक हैं ना , यार ? ” निमाई बाबू को जैसे किसी दुश्चिंता ने घेर लिया था l और उनके चेहरे पर जैसे किसी अनिष्ट की अशंका उभरने लगी थी l
” नहीं यार पिछले साल उसको हार्ट अटैक आया था l और वो हमको छोड़कर चली गई l “
कुछ देर उनके बीच खामोशी छाई रही l

फिर थोड़ा रूककर सर्कस बाबू बोले – ” तुम्हें तो पता ही है l शुरू से ही मेरे बच्चे बाहर रहकर पढ़ते थें l उन्हें दर असल एकाकी जीवण जीने की आदत रही है l फिर , उनका जाॅब भी बाहर लगा है l आजकल की नई – नई माॅर्डन बहुएँ सास – ससुर को अपने साथ रखने में अपनी इंसल्ट समझतीं हैं l इसलिये बच्चों का ऐसा व्यवहार देखकर मेरी श्रीमती जी को सदमा सा लगा था l और शायद , इसके कारण ही उसको हार्ट अटैक आ गया था l इधर , अब तो खैर , मेरे दोनों बेटे अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर विदेशों में सेटल हो गये है l तुम बहुत लकी हो यार l जो अपने परिवार के साथ होl

तुम विश्वास नहीं करोगे l जबसे मेरी पत्नी का स्वर्गवास हुआ है l तबसे एक कप चाय की तलब भी अगर होती है l तो अंदर से दिल मचल उठता है l खाली घर काटने को दौड़ता है ; भाई l पत्नी को खोने के बाद ही उसका महत्व समझ पाया हूँ , भाई l ” सर्कस भाई रुँआंसे से हो चले थें l “
तभी , सर्कस भाई की गाड़ी ने हाॅर्न बजाया था l गाड़ी का शोफर शायद फ्लाईट का समय होने की बात कहकर बार- बार हाॅर्न बजा रहा था l सर्कस बाबू ने निमाई दंपत्ति से इजाजत चाही l
निमाई बाबू ने , कौशल्या देवी से बड़े ही नेह पूर्वक मंत्रना की – ” कौशल्या , जरा , मुझे सहारा देकर बेडरूम तक ले चलोगी l प्लास्टर का घाव अभी पूरी तरह से भरा नहीं है l “
कौशल्या देवी ने निमाई बाबू का हाथ कुछ इस अंदाज में थामा l जैसे वो कहना चाह रहीं हों -” हमारी यात्रा उस अनंत क्षितिज से आगे तक की है ! “

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