Social Story in Hindi: प्रत्येक तीसरे साल में प्रीति के पति राजन का स्थानानंतरण होता रहता था। उसके पति बैंक में उच्च पदाधिकारी थे। पति के स्थानांतरण के साथ प्रीति को भी साथ जाना मजबूरी था।
राजगीर जैसे शहर से एक साधारण कस्बे नंदपुरी जाना प्रीति को बहुत ही ज्यादा दुखदाई लग रहा था।
कोई उपाय नहीं था। नहीं चाहते हुए भी प्रीति राजन के साथ नंदपुरी आ गई। कुछ दिन लग गए अपने सामान को सजाने और समेटने में ।
उसके बाद सुबह-सुबह राजन ऑफिस के लिए निकल जाता और देर शाम घर आता। कभी-कभी दोपहर के खाने के लिए आ जाता था लेकिन अक्सर वह अपना टिफिन मंगवा लिया करता था। इस स्थानांतरण से उसकी पदोन्नति हो गई थी इसलिए काम का बोझ भी बढ़ चुका था।
कुछ दिनों तक अकेले रहते रहते प्रीति उब चुकी थी। गांव में कुछ खास ऐसा था भी नहीं जो उसे पसंद आ रहा था।उसके अकेलेपन और उदासी को देखकर उसके पति ने उसे सलाह देते हुए कहा “प्रीति तुम पहले स्कूल में पढ़ाती थी ना, यहां भी पढ़ाया करो। कोशिश करके देखो तुम्हारे पास पूरी डिग्री भी है।”
यह सुनकर प्रति कुछ हद तक उत्साहित हो गई।प्रीति के पास पूरी डिग्री थी। उसने बीएड किया हुआ था। बच्चों के लिए नर्सरी टीचर ट्रेनिंग भी लिया था।डिग्री के आधार पर उसे स्कूल की नौकरी मिल गई।
स्कूल में उसका पहला दिन था प्रिंसिपल के केबिन में जाकर सारी बातें समझने के बाद उसने एग्रीमेंट में साइन कर दिया। प्रिंसिपल ने दूसरी से टीचर को बुलाकर उन्हें समझाते हुए कहा “इन्हें इनके क्लास 6b में ले जाइए।
प्रीति मैम आज से आप पूरे सिक्स क्लास को पढ़ाएंगी और 6b की क्लास टीचर रहेंगी ।”
“ओके सर!”प्रीति ने खुशी खुशी क्लास की जिम्मेदारी उठा लिया।
“देखिए प्रीति मैम ,शहर में तो सब लोग पढ़ाने के लिए तैयार रहते हैं। प्राइवेट स्कूलों में मारामारी होती है क्योंकि वहां पर सैलरी भी अच्छे देते हैं मगर गांव देहात में कोई आना नहीं चाहता। हमारे पास ना फंड है और ना ही एक्स्ट्रा देने के लिए कुछ और। जो सैलरी बनेगी, आपको उसी में संतोष करना पड़ेगा।”
“ यस सर मैं तैयार हूं।”
“ थैंक यू प्रीति मैम! और बच्चे तो बच्चे हैं ना। चाहे वह गांव के हो या शहर के। अगर उन्हें ढंग से पढ़ाया जाए तो वह क्या ना कर जाएं ।”
“आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं सर। मैं पूरी लगन से पढ़ाऊंगी।”
जैसे ही वह क्लास में घुसी। वहां घुसते हुए उसका दिल धक से कर गया!!
कमरे की हालत बहुत ही बुरी थी। चारों तरफ सीलन की बदबू भरी हुई थी। दीवारों से पेंट उखड़े पड़े थे। जमीन में जिसपर बच्चे बैठे थे एक पतली सी दरी थी ,वो भी जगह-जगह से फटी हुई थी।
प्रीति के बैठने के लिए भी कुछ नहीं था। उसे खड़े होकर ही पढ़ाना था। ब्लैक बोर्ड की भी हालत उतनी ही बुरी थी ।
उस पर चारों तरफ से बदबू आ रही थी। नंदपुरी गांव का सरकारी स्कूल अपनी असलियत बयां कर रहा था।
“सरकार हर साल सरकारी स्कूलों पर कितने खर्च करती है !ना जाने कितनी सारी योजनाएं चल रही हैं।गांव देहात के टीचरों को इतने पैसे देते हैं ।बच्चों के पढ़ाई और खाने पीने सब चीज की व्यवस्था होती है फिर भी कोई मैनेजमेंट नहीं, किसी को ध्यान नहीं!! किसका ध्यान होना चाहिए;; और किसे सख्ताई करनी चाहिए!! यह सब तो अपने अंदर के उसूल होने चाहिए! सरकार , प्रशासन सब गाढ़ी नींद सोए पड़े हैं!”प्रीति ने अपने आप से कहा।
पहला क्लास हिंदी का था। छठी कक्षा के बच्चों को ना तो लिखना आ रहा था और नहीं ढंग से पढ़ना! प्रीति का मन उदास हो गया।
अभी थोड़ी देर पहले प्रिंसिपल सर ने कितनी लंबी लंबी हांकी थी। उन सब की धज्जियां उड़ गई थी।छठवीं क्लास के बच्चों को ढंग से लिखना नहीं आ रहा था!
न पाठ का ही ज्ञान था और न ही मात्रा भेद का।
प्रीति ने कमर कस लिया “सुनो बच्चों, अब से मैं तुम्हारी क्लास टीचर हूं। मेरे क्लास में तुम सब ध्यान देकर बैठोगे। घर से पूरी पढ़ाई और पूरे पाठ का याद करके आओगे नहीं तो मैं यहां पिटाई करूंगी।”
“ जी टीचर जी !”बच्चों ने एक साथ कहा।
प्रीति की आंखों में आंसू आ गए। दोपहर में बच्चों के लिए मिड डे मील की व्यवस्था भी थी मगर मिड डे मील के नाम पर खाना परोसा गया, वह किसी इंसान के बच्चों के खाने के लायक तो था ही नहीं!!
कहां पर घपलेबाजी हो रही है!! किसको पकड़ा जाए!!! समूचा प्रशासन ही घोड़े बेचकर सो रहा है !एक बेचारा शिक्षक क्या करे?
अगर यहां पढ़ाना है तो इन्हीं के रंग में रंगना पड़ेगा।मगर प्रीति ने ठान लिया था कि वह इस स्कूल को बदलकर ही रहेगी। यहां के बच्चों को बदलकर रहेगी। उसकी मेहनत धीरे-धीरे रंग ला रही थी।
बच्चे उसकी कक्षा में खुश रहा करते थे।
देखते-देखते एक महीने बीत गए। प्रिंसिपल सर ने सारे टीचर्स को अपने केबिन में बुलाया ।
एक खुले रजिस्टर में दस्तखत करके लिफाफा पकड़ाया जा रहा था।आज सैलरी का दिन था। प्रीति बहुत ही ज्यादा खुश थी।उसने रजिस्टर में देखा में सैलरी अकाउंट 11000 रुपए लिखा हुआ था। अपने हाथों में लिफाफे लिए प्रीति खुशी घर आ गई।उसने जब लिफाफा खोला तो उसमें सिर्फ 4000 रुपए थे।
उसका चेहरा उतर गया।
प्रिंसिपल सर ने 11000 रुपए में साइन कराने के बाद हाथ में सिर्फ 4000 रुपए पकड़ाया था। यह तो सरासर धोखाधड़ी था।
दूसरे दिन वह जब स्कूल गई तो प्रिंसिपल सर थोड़े गहमागहमी में व्यस्त थे। पता चला कि स्कूल इंस्पेक्टर आने वाले हैं।
प्रीति अपने क्लास ले रही थी।थोड़ी देर बाद प्रिंसिपल सर ने उसे और बाकी टीचर्स को अपने केबिन में बुलाया।
उन्होंने रजिस्टर दिखाते हुए सबसे कहा “इसमें जितना लिखा हुआ है, आप सभी इंस्पेक्टर और उनके साथ जो भी आएंगे सबक यही बताना है कि यह तो सैलरी है इसके साथ बोनस भी आप लोगों को मिलता है।”
“मगर सर, यह तो गलत है ना !कल जो आपने सैलरी दी थी वह सिर्फ 4000 रुपए थे।”प्रीति चिढ़कर बोली।
प्रिंसिपल ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा “ इस गांव में आपको क्या अंबानी की सैलरी मिलेगी? यह धीरूभाई इंटरनेशनल स्कूल है या फिर डीपीएस पब्लिक स्कूल?जितना मिल रहा है आपको संतोष करना होगा। और …जो मैं कह रहा हूं वह करना पड़ेगा। अभी आप अपनी क्लास में जाइए।
अगर स्कूल इंस्पेक्टर या कोई भी आपसे सैलरी के बारे में पूछताछ करेंगे तो आप यही बताइएगा कि आपको 11000 रुपए मिल रहे हैं और उसके साथ बोनस भी।”
प्रीति का चेहरा उतर गया। वह बुझे मन से क्लासरूम में आ गई। आज उसका दिल टूट गया था।शिक्षा के नाम पर शिक्षा के मंदिर का ही अपमान किया जा रहा था! शिक्षक का अपमान किया जा रहा था!! इस धोखे पर कल का भविष्य तैयार किया जा रहा था!
“माली को धोखा देकर बगिया बनाने की बात कही जा रही है! मैं प्रिंसिपल के खिलाफ एक्शन ले सकती हूं मगर इससे क्या होगा! प्रिंसिपल के साथ कौन-कौन मिले हुए हैं? ऐसे तो प्रशासन आंख मूंदे नहीं सो सकता! पूरे फिजा में ही जहर घुल गई है।
हवा ही जहरीली हो गई है…! कौन बचाए इस जहर से!!”
वह अपने विचारों में खोई हुई थी कि बच्चों के शोर और खिलखिलाहट ने उसे जगा दिया।
“शोर बंद करो और अपनी कॉपी खोलो।”
अब वह फिर से पढ़ाने लगी थी।
