गृहलक्ष्मी की कहानियां : पुत्र-प्रेम में शिखा द्वार पर खड़ी हाथ हिलाती ही रह गई, और टैक्सी तेजी से चली गई। वह उसे तब तक देखती रही, जब तक वह दिखाई दी। जब टैक्सी दिखाई देनी बंद हो गई तब उसने घर में प्रवेश किया। घर आधुनिक सज्जा से भरा-पूरा होने के बावजूद उसका मन स्थिर नहीं हो पा रहा था। सन्नाटा उसे काटने को आता था। बड़ा बेटा पुनीत पहले ही अपनी इच्छा से विवाह करके दूर रहने लगा था, शिखा ने भी कभी जानने की कोशिश नही की।
और आज छोटे बेटे मनन को भी वह विदा करके लौटी थी। आज अचानक उसे याद आया कि कैसे उसके पति की अकस्मात मृत्यु के बाद इन बच्चों के ही सहारे उसका जीवन कटा। सुरेश शिखा और अपने बच्चों से बहुत प्यार करता था, परन्तु जीवन-मृत्यु किसके हाथ में है। बीमारी ने ऐसा घेरा कि दो महीनों के अन्दर ही उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई।
शिखा के मध्यम वर्गीय परिवार को शिखा कभी बोझ नही लगी, कुछ साल जब तक बच्चे पढाई कर अपने पैरों पर खड़े हुए, तब तक शिखा अपने परिवार के साथ ही रही । शायद रिश्तों के यही मायने हैं। माता-पिता और भाई-भाभी के साथ रहकर उसे कभी महसूस नहीं हुआ कि वो अब पराये घर की है। फिर भी उसने नौकरी करना सही समझा ताकि वो उपने घर पर बोझ न बने। पढी-लिखीं तो थी ही, नौकरी भी आसानी से मिल गई। इस बीच शादी के कई रिश्ते आये पर उसने यह सोचकर लौटा दिये कि अगर उसने मेरे बच्चों को न अपनाया तो… और मै इनके बिना एक पल भी नहीं रह सकती। यही तो उनकी आखिरी निशानी हैं। मैं अपने बच्चों को नही छोड सकती।
पुनीत तब 6ठीं क्लास में था और मनन 4थी में था। पुनीत अपनी मां के दर्द को खूब समझता था, इसलिए मन लगाकर पढ़ता और घर में किसी को शिकायत का मौका नहीं देता। मनन चंचल था लेकिन सभी उसे प्यार करते थे इसलिए उसकी चंचलता को लेकर समझा देते।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा, पुनीत ने कॉलेज में प्रवेश करते ही एक नौकरी ज्वॉइन कर ली और मनन ने भी अपने दोस्त के साथ मिलकर बिजनेस शुरू कर दिया, साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी। दोनों भाइयों ने मेहनत करके एक मकान खरीद लिया और सब उसमें शिफ्ट हो गए।
अभी वो सब कुछ सोच ही रही थी कि अचानक डोर बेल बजी, उसको जैसे कोई झटका लगा। उसने दरवाजा खोला, सामने उसकी मां खडी थी। वह उन्हें अंदर लेकर आई और उन्हें बैठा कर खुद किचन में चाय बनाने चली गई। शिखा की मां उसके पीछे किचन में आ गई। शिखा के कंधों पर जैसे ही उन्होंने हाथ रखा तो वो चौंक गई। मां ने कहा, शिखा मैं तुमसे पहले ही कहती थी, शादी कर लो, तब तुम्हारीे उम्र ही क्या थी। मां की बात ने उसे एक बार फिर सोच के सागर में डुबो दिया। मां लगातार बोले जा रही थी, पर उसे मानो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। वह ना तो कुछ बोलने की स्थिति में थी, और न ही समझने की। उसने चाय बनाई, पर पी नही पाई।
मां ने उसे अपने साथ ले जाना चाहा, पर वो नहीं गई, इस पर मां उसके सिर पर हाथ रख कर चली गई। इस घटना को 5 वर्ष बीत गए। वह मनन को लगातार खत लिखती, मनन भी तुरन्त ही जवाब दे देता। पर फिर 2-3 खतों का एक बार जवाब देता और धीरे-धीरे खतों का सिलसिला बंद हो गया। शायद वह जानती थी क्यों, पर वह अपने को बहलाती कि वह व्यस्त होगा, इसलिए जवाब नहीं दे पाता।
शिखा ने बाहरी दुनिया से सम्पर्क लगभग तोड़ दिया, घर पर काम करने आने वाली सुनीता को भी काम से हटा दिया। माता- पिता के पास भी ना जाती। जाने कौन सा घुन उसे खा रहा था। शायद यह पुत्र- प्रेम का घुन था। एक दिन शिखा अपने कमरे में बैठी पंखे को ताक रही थी। उस पंखे को देखते-देखते उसकी आंखें खुली की खुली रह गई और शरीर निष्प्राण हो गया। आखिरी समय में भी उसकी जीवन ज्योति उसके समीप नही थी।