garamee mein mujhe pighalaane deejiye
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1942 के “भारत छोड़ो आन्दोलन के समय कांग्रेस के महान नेता अहमदनगर के किले में बन्द करके रखे गये थे। लॉर्ड वेवल ने 31 मास की कैद के बाद उन्हें जेल से रिहा किया था और राजनीतिक मंत्रणा के लिए सबको शिमला बुलाया था। वे जल्दी आ सकें इसके लिए रेलगाड़ी में एक “एयर वफ़ंडीशनर” डिब्बे की खास व्यवस्था वाइसरास ने की थी। उसी गाड़ी में गांधीजी भी शिमला जा रहे थे। परन्तु उन्होंने तीसरे दर्जे के डिब्बे में ही बैठना पसन्द किया था।

आनन्द से पागल बनी हुई जनता के झुंड के झुंड हर स्टेशन पर गांधीजी का स्वागत करते थे। उसी गाड़ी में एक अमेरिकन पत्र-प्रतिनिधि भी यात्र कर रहे थे। लोगों के झुंड प्रेम-दीवाने होकर गांधीजी को जो कष्ट पहुँचाते थे, वह अमेरिकन मित्र से बरदाश्त नहीं होता था। इसलिए उन्होंने एक पत्र लिखकर गांधी से प्रार्थना कीः “दोपहर के बाद आप कांग्रेसी नेताओं के उस ठंडे डिब्बे में यात्र करें तो क्या गलत होगा? उसमें आप हांथ-पाँव फैला कर अच्छी तरह आराम कर सकेंगे। पिछले 24 घंटे से तो आप सो भी नहीं पाये हैं। नींद में ऐसी बाधा पहुँचने के कारण शिमला जाते जाते आप ऐसे परेशान हो जायेंगे कि वहाँ पहुँच कर आप राजनीतिक मंत्रणा में मद्दगार होने के काबिल नहीं रह जायेंगे।

गांधीजीः “आप इस कुदरत की गरमी में ही मुझे पिघलने दीजिये। इस गरमी के बाद कुदरती तौर पर ही ठंडक भी हो जाएगी और मैं उसका भी आनंद लूंगा। कृपा करके मुझे सच्चे हिन्दुस्तान के सम्पर्क में ही रहने दीजिए।

अमीरों के लायक आरामदेह ठंडे डिब्बे में बैठ कर वे क्षणभर के लिए भी सच्चे हिन्दुस्तान के वातावरण से दूर नहीं होना चाहते थे। ऐसी उबाने वाली और थकाने वाली यात्र के बावजूद शिमला में एक क्षण भी बरबाद किये बिना स्नान और भोजन से निबट कर वे लार्ड वेवल के पास मंत्रणा के लिए पहुँच गए। वाइसराय ने गांधीजी का स्वागत किया। गांधीजी ने इस स्वागत का उत्तर विनोद में दियाः “मैं भी आपके जैसा ही एक सैनिक हूँ, परन्तु मैं हथियार नहीं रखता।

ऐसे हास्य-विनोद के वातावरण में दोनों राजनीतिज्ञ अपनी चर्चा में लीन हो गये।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)