dhurt kauwa murkh bater ,hitopadesh ki kahani
dhurt kauwa murkh bater ,hitopadesh ki kahani

Hitopadesh ki Kahani : एक बार की बात है कि समुद्र के तट पर भगवान् गरुड़ के आने की सूचना मिली। सभी पक्षी यह सुन समुद्र तट पर एकत्रित होने लगे। एक कौवे के साथ बटेर भी चल दिया ।

जिस मार्ग से कौआ और बटेर जा रहे थे उसी मार्ग से एक ग्वाला भी जा रहा था । ग्वाले के सिर पर दही की हांडी थी । कौवे ने उसे देखा तो अवसर पाकर वह उसमें से दही खाने लगा। ऐसा जब उसने अनेक बार किया तो ग्वाले को पता चल गया।

ग्वाले ने हांडी को सिर से उतार कर भूमि पर रखा और फिर सिर ऊंचा कर ऊपर को देखा तो उसको वहां कौआ और बटेर दोनों ही दिखाई दिये ।

ग्वाले ने पत्थर उठाकर जो मारना चाहा तो कुटिल और चंचल स्वभाव का कौआ तो तुरन्त उड़ गया किन्तु निरपराध और धीरे उड़ने वाला बटेर वहीं रह गया। ग्वाले का पत्थर जब उसको लगा तो वह धम्म से भूमि पर आ गिरा ।

“इसीलिए मैं कहता हूं कि दुर्जन के न तो साथ रहे और न उसके साथ कहीं यात्रा पर ही जाए।

“मैंने जब यह सुना तो उससे कहा, “भाई, शुक ! आप मेरे विषय में ऐसा क्यों कहते हैं? मेरे लिए तो जैसे राजहंस वैसे ही आप ।”

तोता बोला, “ऐसा हो सकता है किन्तु-

“दुर्जनों द्वारा कही गई प्रिय और शास्त्रसम्मत बात भी असमय में फूले हुए फूलों के समान भय उत्पन्न कर देती है। .

“और दुर्जनता तो तुम्हारी बातों से ही टपक रही है। क्योंकि इन दोनों राजाओं की लड़ाई में आपका वचन ही तो मूल कारण है।

“देखो, प्रत्यक्ष अपराध करने पर भी मूर्ख मनुष्य चिकनी-चुपड़ी बातों से प्रसन्न हो जाता है। जिस प्रकार कि एक बढ़ई ने अपने प्रेमी में अनुरक्त अपनी पत्नी और उसके प्रेमी दोनों को ही सिर पर उठा लिया था । “

उनके राजा ने पूछा, “यह किस प्रकार ?” तोता बोला, “सुनाता हूं सुनिये।”