charitra ki jyoti
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ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खूँखार पंजे से अपने राष्ट्र को मुक्त करने के बाद अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन ने जब अपनी सेना को भंग करने की घोषणा की, तो उनके सेनापतियों ने बड़े भय और आश्चर्य से कहा, “श्रीमान सेना तो राष्ट्र का मेरुदण्ड होती है। सेनारहित राष्ट्र की तो कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती। सेना के बिना राष्ट्र का अस्तित्व भला कब तक स्थिर रह सकता है?”

वाशिंगटन ने अत्यन्त आत्मीयतापूर्ण स्वर में उत्तर दिया, “आप भूलते हैं, मेरे मित्र! किसी भी राष्ट्र का मेरुदण्ड उसकी सेना नहीं, उसकी सामूहिक शक्ति और समृद्धि तथा वहाँ की जनता का चरित्रबल होता है। हमें ऐसी प्रजा का निर्माण करना है जो राष्ट्र-रक्षा के अपने उत्तरदायित्व को, राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्य को समझे और उस उत्तरदायित्व को पूरा करने एवं निभाने की लगन, शक्ति और साहस उसमें हो।

हमारी अभिलाषा है कि हमारे राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक तन-मन से ऐसा विकसित हो कि जब भी राष्ट्र पर कोई संकट आये और राष्ट्र-रक्षा का प्रश्न उठे, तो वह मन में राष्ट्र के लिए अपने रक्त की अन्तिम बूँद तक बहा देने का दृढ़ संकल्प लेकर सैनिक वेश में आप से आप-राष्ट्र-पताका के नीचे आ खड़ा हो। सेनापतियों! जब राष्ट्र की रीढ़ में बल होता है और उसके मानस में चरित्र की ज्योति जगमगाती है, तो बात की बात में अजेय सेना का निर्माण हो जाता है।”

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)