bhalai mein malai
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एक सड़क के बीचों-बीच भारी पत्थर पड़ा था। एक साइकिल वाला उधर से गुजरा पर उसका ध्यान कहीं और था। वह पत्थर से टकरा गया तथा गिर गया। वह उस पत्थर को तथा पत्थर रखने वाले का भला बुरा कहते हुए निकल गया। जो भी उधर से गुजरता उस पत्थर से टकरा कर गिरता फिर संभल कर आगे बढ़ जाता। सुबह से शाम तक ना जाने कितने लोग गिरते रहे।

इसी बीच एक फूल बेचने वाला उधर से गुजरा। पत्थर से उसकी साइकिल टकराई तो फूलों का पूरा टोकरा बिखर गया। उसने बिखरे फूल समेट कर अपने टोकरे में जमा कर लिए तथा जाने के पहले उस भारी-पत्थर को एक तरफ खिसका दिया। यह सोचकर कि आगे आने वाले लोग इससे टकरा कर न गिर पड़े। इसी बीच उसकी निगाह पत्थर के नीचे पड़े एक लिफाफे पर पड़ी।

उसने लिफाफा खोला तो यह बड़ा खुश हुआ। उसमें एक हजार रुपए का नोट था और साथ ही एक पर्ची भी थी जिस पर लिखा था- “दूसरों का भला सोचने वाले को एक हजार रुपए का ईनाम”।

सारः दूसरों का हित सोचने वालों की मदद स्वयं ईश्वर करते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)