Parenting Advice: अक्सर पेरेंट्स ये गलती कर बैठते हैं कि वे जि़ंदगी में जो कुछ करना चाहते हैं, वैसा न कर पाने की स्थिति में अपने सपने अपने बच्चों पर थोप देते हैं। आइए, जानते हैं कुछ इसी बारे में—
जो सपने मेरे पूरे नहीं हुए, जो कामयाबी मुझे हासिल नहीं हुई, वे अधूरे सपने मेरा बच्चा पूरे करेगा। ये बहुत जाना-पहचाना सा वह वाक्य है, जो हम अक्सर पेरेंट्स के मुंह से सुनते हैं। चाहे वे पढ़ाई-लिखाई से जुड़े हों, करियर से जुड़े हों या फिर हॉबी की बात ही क्यों न हो। एक समय होता था, जब लगभग हर माता-पिता ये चाहते थे कि उनका बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर या वकील बने। डांस, म्यूजि़क, पेंटिंग, राइटिंग या फिर दूसरी कलाएं किसी का करियर या जीवन बिताने का ज़रिया भी बन सकती हैं, ऐसा कुछ एक अपवादों को छोड़कर कोई मानने को तैयार ही नहीं होता था। सो बच्चे के पांव पर चलना सीखने से पहले ही यह तय हो जाता था कि आगे चलकर उसे किस करियर को टार्गेट करके आगे कदम बढ़ाने हैं।
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बच्चे को बचपन जीने दें
ज़्यादातर पेरेंट्स बचपन से ही ये कहना शुरू कर देते हैं कि उनके बच्चे को बड़ा होकर क्या बनना है। यहां तक कि वे खिलौने तक ऐसे ले आते हैं, जो इसी बात की भूमिका बनाते से लगते हैं। कई वैज्ञानिक यह तथ्य तक सामने लाते हैं कि खिलौनों के ज़रिये हम बच्चे का सिर्फ ध्यान ही एक तरफ केंद्रित नहीं कर देते हैं, बल्कि यह तक तय कर देते हैं कि वह लड़का है या लड़की, उनमें किस तरह की असमानता है। आगे चलकर बच्चे का व्यवहार और व्यक्तित्व हिंसक होगा, जि़द्दी होगा या शांत।
उदाहरण के लिए बेटे के लिए खिलौना लेते समय डॉक्टर्स किट ले आना और बेटी के लिए गुड़िया या किचेन सेट। बच्चे भी बिना कुछ जाने-समझे अपने अवचेतन, यानी अनकॉन्शेस माइंड में ये बिठा लेते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए कि वे अपने पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरा उतरें। उनके माता-पिता की अधूरी ख्वाहिशें पूरी हों। जो सपना उन्होंने देखा है, वे उसे साकार कर पाएं। ऐसा करके वे अपने पेरेंट्स के लिए तो खुशी का कारण जुटा देते हैं, मगर जब उनके सामने कोई ऐसा निबंध आ जाता है, जिसमें लिखा हो कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं तो वे या तो कंफ्यूज़ हो जाते हैं या फिर एक जैसी रटी-रटाई बातें ही लिख देते हैं। उनके सपनों अपने माता-पिता के सपनों से अलग भी हो सकते हैं, ये बात वे खुद भी लगभग भूल ही जाते हैं।
करियर कंफ्यूज़न न बढ़ाएं
जब बच्चे छोटे होते हैं, तब तो वे अपने पेरेंट्स की हां में हां मिला लेते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, घर की दहलीज़ से बाहर निकल स्कूल-कॉलेज जाना शुरू करते हैं, नए-नए दोस्त बनाते हैं, वैसे-वैसे उनके विचार बदलने लगते हैं। अक्सर उनके रोल-मॉडल बनते हैं, बदलते हैं। जैसे कि वे कभी किसी सिंगर या डांसर से प्रभावित हो जाते हैं तो वही उनका रोल-मॉडल बन जाता है। फिर वे किसी को कुशलता से गिटार बजाते देखते हैं या नाटक या फिल्म में अभिनय करते देखते हैं तो उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। अगर उनका कोई दोस्त किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है या भारतीय सेना में जाने के लिए मन बनाए बैठा है तो इनका आदर्श भी बदल जाता है और करियर की प्राथमिकता भी। कहने का मतलब कि बच्चा असल में बनना क्या चाहता है, कौन सा फील्ड उसके करियर का आधार बनेगा, ये सवाल एक लंबे अर्से तक उसे भटकाए रखता है।
उनकी आंखें, उनके सपने
पेरेंट्स अपने बच्चों को कुछ भी मनचाहा करने की आज़ादी दे दें, यह बात कहने-सुनने में भले ही आसान लग रही हो, मगर है ये एक मुश्किल कार्य।
पेरेंट्स अपने बच्चे को अपना अंश मानते हैं और वे उनके सपनों को भी साझा करेगा, ये सोचने में उन्हें ज़रा भी अजीब या $गलत नहीं लगता। दरअसल, ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलने वाला सिलसिला है। जैसे पहले उनके पेरेंट्स ने ही यह तय किया था कि उन्हें बतौर करियर क्या अपनाना चाहिए और उन्होंने बिना अपना मन टटोले ये बात मान ली थी, वैसा ही उनके बच्चे भी करेंगे। शायद उन्होंने कभी ये सोचा ही न हो कि वे अक्सर जो गुनगुनाते हैं या जिस पेंटिंग पर उन्हें भरपूर तारीफें मिलती हैं, वही क्षेत्र उन्हें कामयाबी के आसमान तक
पर बिठा सकता है। आज स्थिति तो बदली है, मगर इस सोच में कोई बदलाव आया हो, ऐसा नहीं है।
टटोलें बच्चे का मन

यह सच है कि शुरुआती दौर में बच्चा अपने करियर को लेकर कंफ्यूज़ रहता है और उसे अपने पेरेंट्स के मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है। पढ़ाई में उसका मन किस सबजेक्ट में ज़्यादा लगता है। क्या उसकी दिलचस्पी या परफॉर्मेंस किसी दूसरे क्षेत्र या कलाओं में ज़्यादा है, इन सब बातों में भी आपके द्वारा दिखाई गई राह उसके कंफ्यूज़न को दूर करने में बहुत हद तक सहायक सिद्ध होती है। चाहे वह करियर किसी भी फिल्ड में बनाना चाहता हो, लेकिन उसके लिए उसे क्या पढ़ना या सीखना पड़ेगा, क्या तैयारी करनी होगी, उसकी सही शुरुआत किस तरह होगी, इन विषयों पर आपकी हर राय उसके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी। वह सिर्फ सही रास्ते की तलाश में भटकने से बच जाएगा।
बच्चे को गलतियां भी करने दें
ज़रूरी नहीं है कि आपका बच्चा आपकी मज़ीर् या उसके लिए देखे गए आपके सपने से अलग कुछ करना चाहता है तो उसका चुनाव ही सही होगा। हो सकता है कि यह उसकी बढती उम्र की भावुकता या भटकाव-भर ही हो, लेकिन तब भी उसे कम से कम एक बार तो ये कोशिश करने ही दीजिए, ताकि उसके मन में यह कसक न रह जाए कि काश उसने एक बार तो कोशिश की होती उन कामों को करने की, जैसा वह चाहता था। ऐसा कर लेने के बाद अगर वह गलत भी साबित होता है, तब भी यह जि़म्मेदारी उसकी ही होगी कि उसने गलत चुनाव किया था और पेरेंट्स होने के नाते जो राह आप उसे दिखा रहे थे, असल में वही सही थी। अपना चुनाव और उससे जुड़ी गलतियां कर लेने के बाद वह अपनी ख्वाहिश अधूरी छूट जाने के लिए आपको दोषी नहीं ठहराएगा।
अगर मनचाही फील्ड में वह वाकई बहुत अच्छा परफॉर्म कर रहा है तो उस स्थिति में भी उसकी बॉन्डिंग आपके साथ और गहरी हो जाएगी कि आपने उस पर और उसके सपनों पर भरोसा किया। उनके निर्णय में उनका साथ दिया। इससे और कुछ हो या न हो, इतना ज़रूर होगा, आपके मन में ये बात ज़रूर उठेगी कि भले ही आपके देखे सपने अधूरे रह गए हों, मगर आपके बच्चे की आंखों के सपनों ने तो मंजि़ल पा ही ली। आखिर बतौर पेरेंट्स आपने भी तो अपने आप से यह वायदा किया ही होगा कि आप अपने बच्चे के लिए दुनिया की हर खुशी जुटा लाएंगे। यदि यह वायदा इसी रूप से पूरा होता है तो होने दीजिए।
