पेरेंटिंग के सफर को आसान बनाएंगे सुधा मूर्ति के ये टिप्‍स: Parenting Advice
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Parenting Advice: आज की भागमभाग जिंदगी और एकल परिवार के चलते पेरेंट्स के लिए बच्‍चों की परवरिश आसान नहीं रह गई है। टेक्‍नोलॉजी के बढ़ते चलन या ओटीटी के जमाने में बच्‍चों को सभ्‍य भाषा का प्रयोग सिखाना टेढ़ी खीर के समान है। आज जहां हर दूसरे बड़े होते बच्‍चे के पास मंहगे गैजेट हैं ऐसे में उन्‍हें इनके उपयोग से दूर रखना और समय का सही दिशा में प्रयोग कराना पेरेंट्स की जिम्‍मेदारियों को और भी मुश्किल बना रहा है। ऐसे में हर पेरेंट्स बच्‍चों को सही परवरिश और जीवन के अच्‍छे मूल्‍यों की सीख देने के लिए हर प्रयास करने को तैयार हैं।

अगर आप भी अपने बच्‍चों को आज के दौर में अच्‍छी परवरिश देने के लिए परेशान रहते हैं तो इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन, ऑथर और समाजसेविका सुधामूर्ति की पेरेंटिंग टिप्‍स आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं। सुधामूर्ति ने कई बार अपनी पेरेंटिंग के तरीके के साथ साथ बच्‍चों को समझने का नजरिया भी अपने साझात्‍कार और ब्‍लॉग में साझा किए हैं। आइए जानते हैं उनमें से कुछ टिप्‍स जो आपके लिए पेरेंटिंग की राह को थोडा आसान बना सकते हैं।

उन्‍हें चुनने दें उनकी राह

Choose them

इस बात से गुरेज नहीं किया जा सकता कि ज्‍यादातर पेरेंट्स बच्‍चों के साथ अपना बचपन एक बार फिर से जीते हैं। कई बार अनजाने में वे बच्‍चों से उम्‍मीद करने लगते हैं कि जो कुछ वो नहीं कर पाए उनका बच्‍चा वो सब करे। सुधा मूर्ति के मुताबिक बच्‍चों के जरिए अपने सपने पूरा करने का दबाव डालना बहुत गलत है। क्‍योंकि हर बच्‍चे की रूचि अलग होती है। ऐसे में उसपर अपने सपनों का दबाव डालने से बच्‍चे की उस काम में रूचि नहीं होगी और वो अच्‍छे से वो काम नहीं कर पाएगा।

पैसे का महत्‍व सिखाएं और दूसरों की मदद के लिए तैयार करें

सुधा मूर्ति अपने बेटे के बचपन की एक घटना के जरिए बच्‍चों को पैसे का महत्‍व सिखाने की बात करती हैं। इस घटना को साझा करते हुए उन्‍होंने बताया था कि उनका बेटा एक दोस्‍त के जन्‍मदिन की पार्टी से लौटने के बाद उसी रेस्‍ट्रां जो कि काफी महंगा था उसमें बर्थडे मनाने की जिद कर रहा था। उन्‍होंने उसे समझाते हुए कहा कि जितने में उस रेस्‍ट्रां में उसका बर्थडे सेलिब्रेट होगा उसमें उनके ड्राइवर के बच्‍चे की स्‍कूल फीस दी जा सकती है। बर्थडे के लिए वो कुछ स्‍नैक्‍स और फ्रूट ड्रिंक के साथ दोस्‍तों को पार्टी दे सकता है। हालांकि उन्‍होंने उसे मना नहीं किया। उसका निर्णय अपने बेटे के उपर छोड दिया। पहले तो उनका बेटा इसके लिए तैयार नहीं था लेकिन कुछ देर बाद उनका बेटा इस बात के लिए राजी हो गया। इस सीख का असर बेटे के जीवन पर इतना हुआ कि कुछ दिनों पहले स्‍कॉलरशिप के पैसों से 2001 पार्लियामेंट अटैक में शहीद हुए जवानों के परिवार वालों की मदद की।

गैजेट्स के बदले किताबों को बनाए साथी

आजकल बच्‍चे ज्‍यादातर समय गैजेट्स के साथ बिताना पसंद करते हैं। लेकिन इस बात के लिए क्‍या बच्‍चे जिम्‍मेदार हैं। बच्‍चे घर में देखते हैं कि पेरेंट्स या तो अपने काम में व्‍यस्‍त रहते हैं और फ्री होने के बाद स्‍क्रीन पर समय बिताते हैं। ऐसे में सुधा मूर्ति पेरेंट्स को सलाह देती हैं कि अगर आप बच्‍चों को गैजेट्स से दूर रखना चाहते हैं तो उन्‍हें गैजेट्स की जगह किताबें दें। ये आसान नहीं है बच्‍चों को किताबों से दोस्‍ती कराने के लिए आपको पहले खुद स्‍क्रीन छोड़कर किताब का साथ पकड़ना होगा। जब भी फ्री होते हैं तो अपनी रूचि की कोई भी किताब पढ़े, आपको देखकर बच्‍चा अपने आप फॉलो करने लगेगा।

तुलना करने से बचें

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि सुधा मूर्ति अक्‍सर इस बात पर जोर देती हैं कि हर बच्‍चा अलग होता। उसकी रूचि और सपने दूसरों से अलग होते हैं। ऐसे में अपने बच्‍चे की तुलना दूसरे के साथ कभी न करें। इससे बच्‍चे के मन पर गलत प्रभाव पड़ता है। अक्‍सर पेरेंट्स परिवार में या आस पडोस के बच्‍चों के कामों से अपने बच्‍चे की तुलना करते हैं। ऐसे में बच्‍चे में आत्‍मविश्‍वास की कमी हो जाती है।

न कहना सीखें

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आजकल बहुत से घरों में सिंगल चाइल्‍ड होने की वजह से या दोनों वर्किंग पेरेंट्स होने की स्थिति में बच्‍चे की हर मांग पूरी करने को तैयार रहते हैं। सुधा मूर्ति के मुताबिक बच्‍चों की हर मांग आसानी से पूरी नहीं करनी चाहिए। पहले ये देखना जरूरी है कि वो जो मांग रहे हैं उसकी जरूरत भी है या फिर वो अपने किसी दोस्‍त को देखकर उस चीज को पाना चाहते हैं। सुधा जी के मुताबिक बच्‍चों को सामान की वैल्‍यू बताना बेहद जरूरी है कि वो काम की है या नहीं।

बच्‍चों से बातचीत का माध्‍यम खुला रखें

बात करने से बनती है बात। सुधा मूर्ति के मुताबिक किसी भी तरह कि समस्‍या का हल बातचीत से निकल जाता है। इसलिए अपने बच्‍चों से बात करना बेहद जरूरी है। वे क्या सोचते हैं, उनके जीवन में क्‍या चल रहा है ये बात करते रहना चाहिए। साथ ही उन्‍हें मोरल स्‍टोरीज के जरिए अच्‍छी बातें सिखाने की कोशिश करनी चाहिए। एक बार अपनी नातिन का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने बताया कि कैसे एक कहानी के जरिए उन्‍होंने उसे केला खाने के लिए तैयार कर लिया, जो कि उसे बिल्‍कुल पसंद नहीं था। कहानियों के जरिए बच्‍चे आसानी से सीख जाते हैं।

सम्‍मान करना सिखाएं

आज के दौर में सबसे कठिन काम यही है। ज्‍यादातर एकल परिवार में रहने की वजह से बच्‍चे अपने से बड़ों से कम ही मिल पाते हैं। वे हमउम्र दोस्‍तों के साथ अधिक समय बिताते हैं। यही नहीं पेरेंट्स भी बच्‍चों के साथ दोस्‍ती रखने के चक्‍कर में सम्‍मान को नजरअंदाज कर देते हैं। कई बार बच्‍चे प्‍यार में दोस्‍तों को गलत शब्‍दों से संबोधित करते देखे गए हैं। ऐसे में बेहद जरूरी है कि बच्‍चों को अपने सं‍स्‍कृति और भाषा के प्रयोग पर सिखाया जाए। सुधा मूर्ति कहती हैं बच्‍चों पर बडों के व्‍यवहार का असर देखने को मिलता है। तो आपको उनके सामने उदाहरण प्रस्‍तुत करने की जरूरत है। आप उनके सामने एक दूसरे से और अन्‍य लोगों से सम्‍मान पूवर्क बात करें। बच्‍चों को भी अपने हमउम्र दोस्‍तों और बडों का सम्‍मान करने के लिए प्रेरित करें।

निशा सिंह एक पत्रकार और लेखक हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिलेमें हुआ। दिल्‍ली और जयपुर में सीएनबीसी, टाइस ऑफ इंडिया और दैनिक भास्‍कर जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्‍थानों के साथ काम करने के साथ-साथ लिखने के शौक को हमेशा जिंदा...