Parenting Advice: हर माता-पिता अपने बच्चे की बेस्ट पेरेंटिंग करते हैं और करना चाहते हैं। जिसके लिए वह विभिन्न तरह की पेरेंटिंग टिप्स और ट्रिक्स अपनाते हैं। हालांकि बेस्ट पेरेंटिंग का कोई निश्चित क्राइटेरिया नहीं है लेकिन परवरिश के कुछ ऐसे तरीके जो ट्रेडिशनल होते हुए भी हमारे मॉर्डन समाज का हिस्सा हैं उसे पेरेंट्स को जरूर अपनाना चाहिए। ऐसे ही कुछ टिप्स साझा किए लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा मूर्ति ने। सुधा मूर्ति की पेरेंटिंग सलाह जितनी मॉर्डेनाइज होती है उतनी ही ट्रेडिशनल भी । यदि आप भी अपनी पेरेंटिंग स्टाइल में बदलाव करना चाहते हैं तो सुधा मूर्ति की इन बातों को अपनी पेरेंटिंग का हिस्सा बना सकते हैं।
बच्चों के बने रोल मॉडल

सुधा मूर्ति का कहना है कि बच्चे जो देखते हैं, वही सीखते हैं बजाए उन्हें जो बताया जाता है। सुधा का मानना है कि पेरेंट्स को अपने बच्चों के सामने अच्छे व्यवहार का मॉडल पेश करना चाहिए। माता-पिता को बच्चों का रोल मॉडल बनना चाहिए। इसलिए पेरेंट्स को बच्चे के सामने अपने ऐसे गुण और व्यवहार पेश करना चाहिए जिससे बच्चा अच्छी बातें सीख सके। पेरेंट्स को दूसरों के प्रति दयालु, ईमानदार और सौम्य होना चाहिए ताकि बच्चा आपके गुणों को फॉलो कर सके।
गेजेट्स नहीं दें किताबी ज्ञान
पेरेंट्स यदि अपने बच्चे की बेस्ट पेरेटिंग करना चाहते हैं तो उन्हें बच्चे के हाथ में गेजेट्स नहीं बुक्स देनी चाहिए। एक प्रोलिफिक राइटर होने के नाते सुधा मूर्ति पेरेंट्स को सलाह देना चाहती हैं कि वह बच्चे को कम से कम गेजेट्स दें। घर में जितने ज्यादा गेजेट्स होंगे बच्चा उतना ही एडिक्ट होगा। बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए जरूरी है कि उसे किताबी ज्ञान दें। बच्चे में किताबें पढ़ने की आदत डेवलप करें।
बच्चे को दें समय
आजकल पेरेंट्स बच्चे की हर जिद्द और ख्वाहिश को पूरा करने के लिए दिनरात मेहनत करते हैं। लेकिन वह जिद्द को पूरा करने के चक्कर में बच्चे को समय देना ही भूल जाते हैं। सुधा मूर्ति का कहना है कि बच्चे की तमात ख्वाहिशों में से चाहे तो एक ख्वाहिश को पूरा मत करो लेकिन बच्चे को पर्याप्त समय दो। पेरेंट्स अपने बिजी शेड्यूल में से समय निकालें और बच्चे के साथ खाना खाएं, किताबें पढ़ें या दिनभर की गतिविधियों के बारे में बात करें। ऐसा करने से पेरेंट्स और बच्चे के बीच का बॉन्ड मजबूत होता है।
तुलना करने से बचें

तुलना करने से बच्चा बिगड़ सकता है। सुधा मूर्ति का कहना है कि कभी भी अपने बच्चे की तुलना उसके दोस्तों और परिवार के अन्य बच्चों से नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से बच्चे के मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है और बच्चे का आत्मविश्वास कम हो सकता है। इसके अलावा तुलना करने से बच्चा पेंरेंट्स से भी नफरत कर सकता है।
संवाद जरूरी है
संवाद की कमी से पेरेंट्स और बच्चे के बीच में दूरियां आ सकती हैं। लेखिका सुधा मूर्ति का कहना है कि संवाद यानी कम्यूनिकेशन की कमी के चलते माता-पिता और बच्चे के बीच अलगाव की स्थिति हो सकती है। बच्चा पेरेंट्स से अपने मन की बात कहने से कतराने लगता है और वह पेरेंट्स के प्रति रूड हो जाता है। इसलिए किसी भी स्थिति में संवाद जरूर करें।
