एक संपन्न लोगों की बस्ती में एक बेहद भव्य मंदिर था। एक दिन उसके पुजारी ने देखा कि एक फटेहाल व्यक्ति मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहा था। उस समय वहाँ प्रार्थना चल रही थी, बस्ती के गणमान्य व्यक्ति वहाँ मौजूद थे। वहाँ फटेहाल व्यक्ति के आने से प्रार्थना सभा का माहौल तनावमय हो जाएगा, पुजारी ने यह सोचकर उसे भीतर आने से मना करने के लिए बहाने सोचने लगा।
इससे पहले कि आगंतुक मंदिर के भीतर आ पाता, पुजारी स्वयं ही उसके पास पहुँच गया और बोला कि तुम यहाँ आए हो, तुम्हारा स्वागत है। लेकिन, मैं तुम्हें बता दूं कि यहाँ सभी लोग बेहद धनी और प्रतिष्ठित हैं। तुम इनके बीच में आकर हीनभावना महसूस करोगे और इन लोगों को भी तुम्हारी मौजूदगी शायद पसंद न आए। इसलिए मेरा सुझाव है कि तुम दोपहर को यहाँ आना, उस वक्त यहाँ कोई नहीं रहता। तुम चुपचाप भगवान के दर्शन करके वापस जा सकते हो। वह व्यक्ति वापस चला गया।
शाम को पुजारी बाजार में सब्जी खरीद रहा था कि उसने उस व्यक्ति को रिक्शा चलाते देखा। पुजारी ने उससे पूछा कि तुम दोपहर को मंदिर आने वाले थे, क्या हुआ? रिक्शा चालक ने बताया कि मैं मंदिर आ रहा था कि मंदिर की सीढ़ियों पर ही भगवान मिल गए। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं जब से यह मंदिर बना है, तब से भीतर जाने की कोशिश कर रहा हूँ। मुझे ही कभी भीतर नहीं जाने दिया गया तो तुम वहाँ जाकर क्या करोगे? और यह सुनकर मैं लौट आया। उसकी बात का मर्म समझकर पुजारी बहुत लज्जित हुआ।
सारः ईश्वर के यहाँ कोई भेदभाव नहीं होता, इंसान ही आपस में स्तर को लेकर विभाजन करता है।
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