एक वयोवृद्ध संत को अपने मंदिर में पूजा पाठ के लिए एक पुजारी की आवश्यकता हुई। उन्होंने आसपास के गाँवों तक यह बात पहुँचा दी और पुजारी बनने के इच्छुक योग्य व्यक्तियों को एक निर्धारित समय पर मंदिर पहुँचने के लिए कहा। दोपहर तक उन्होंने सब लोगों से बातचीत कर ली। विद्वता के मामले में सभी एक से बढ़कर एक थे। जब वे वापस जाने लगे तभी एक फटेहाल युवक वहाँ आ पहुँचा।
संत ने कहा कि तुमने आने में बहुत देर कर दी। उसने कहा कि मैं जानता हूँ और भगवान के दर्शन करके लौट जाउंगा। संत ने देरी का कारण पूछा। उसने बताया कि मंदिर के रास्ते में बहुत सारे कांटे और पत्थर थे, जिनसे यहाँ आने वाले भक्तजनों को कष्ट होता। मैं उन्हें ही हटाने लग गया था। संत ने पूछा कि क्या तुम्हें मंत्रें और पूजा-अनुष्ठान आदि का ज्ञान है।
वह बोला कि नहीं, लेकिन मैं शंख बजाना, आरती घुमाना और अगरबत्ती जलाना जानता हूँ। अन्य सभी आवेदक यह सुनकर उसका मजाक बनाने लगे। लेकिन, संत उससे बोले कि तुममें इस मंदिर को संभालने के लिए सभी आवश्यक खूबियां हैं। अब तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं।
सारः मानव सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता।
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