जब मैं 5-6 साल की बच्ची थी तो अपनी कोई चीज संभाल कर नहीं रखती थी। अपना बैग, कपड़े, जूते सब इधर-उधर फेंक देती थी। चॉकलेट का रैपर हो या आइसक्रीम का कप, खाकर घर में जहां-तहां छोड़ देती। मम्मी समझाती पर मेरी आदत नहीं सुधरी। एक बार मैं छुट्टियों में अपने मामा के घर गई। वहां भी मैं ऐसे ही घर में कचरा फेंक देती। मैंने देखा कि मेरे मामाजी मेरे फेंके हुए रैपर, रद्दी कागज, छिलके बिना कुछ कहे उठाते और डस्टबिन में डाल देते। एक बार भी उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा। यह देखकर मुझे अपने आप पर बहुत शर्म आई और मैंने अपनी यह बुरी आदत हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दी। मामाजी से माफी भी मांगी और उनसे वादा किया कि मैं घर या बाहर गंदगी नहीं फैलाऊंगी। आज जब स्वच्छता अभियान के बारे में पढ़ती-सुनती हूं तो मुझे बचपन का यह किस्सा बरबस याद हो आता है।
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