बड़े भैया-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Bade Bhaiya Story
Bade Bhaiya Story

Bhaiya Story: सुकेश, तूने मेरा इंतजार भी नहीं किया और मां का दाह संस्कार भी कर दिया। ऐसी भी क्या जल्दी थी, दीपेश अपने छोटे भाई से बोला।

भैया आपको तो कई दिन पहले ही मां की गंभीर हालत के बारे में बता दिया था। आप फिर भी नहीं आये। मां की आंखें तो आपके इंतजार में पत्थरा ही गई थीं। वो जब मरीं भी तब भी उनकी आंखें खुली रहीं शायद आपकी झलक पाना चाहती हों पर आप तो विदेश जाकर ऐसे बसे कि वहां से आने का नाम ही नहीं लिया। मां की मृत्यु दिन में दो बजे ही हो गई थी। सभी रिश्तेदार उसी दिन दाह संस्कार करने का शोर मचा रहे थे पर आपके लिए पूरी रात बाॅडी को घर पर रखा। सुबह दस बजे तक आपका इंतजार किया पर आपका तो अता पता ही नहीं था। फिर मजबूरी में दाह संस्कार करना ही पड़ा।

जिस दिन मां की मृत्यु हुई उस दिन इंडिया की फ्लाइट बहुत महंगी थी। अगले दिन की सस्ती थी इसलिए अगले दिन की करा ली। सोचा था टाइम से पहुंच जाऊंगा पर पहुंच ही नहीं पाया।

भैया ऐसे समय में भी आपने पैसे को देखा।
अब जल्दी भी आ जाता तब भी मां जिंदा तो मिलती नहीं एक ही बात थी।

मां ठीक कहती थीं कि आप निर्मोही हो गये हो। बस पैसा ही आपके लिए सब कुछ हो गया है। आप मां को भारत आने का झूठा आश्वासन देते रहते थे और मां सच समझ जाती थी। वो आपका बेसब्री से इंतजार करती रहती थी। उनका आपके लिए इंतजार करना उसे तड़पा देता था। एक दिन वह मां से इस बात पर लड़ भी बैठा कि आपको बड़े भैया ही प्यारे हैं । आप हर समय उनकी ही रट लगाये रखती हो जबकि वह आपको कोई तवज्जो नहीं देते ,जबकि वह रात दिन आपकी सेवा करता है पर उसकी कहीं कोई गिनती ही नहीं।

तब मां बोली थीं कि “ऐसी बात कभी भी अपने मन में नहीं लाना तुम दोनों तो मेरी दो आंखें हो । अब तू तो मेरे पास ही रहता है तेरे सुख-दु:ख का मुझे पता रहता है, पर वह दूर रहता है तो उसके बारे में कुछ पता नहीं चलता ‌। इसलिये उसकी चिंता लगी रहती है। फोन पर उससे दो-चार बात करके जी शांत हो जाता है।

हां इतना जरूर है उसी ने पहली बार मुझे मां होने का सुख प्रदान किया था। छोटा या बड़ा होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता सबको अपनी जगह खुद ही बनानी पड़ती है। तेरे बड़े भैया के लिए अपना अस्तित्व, कैरियर सब दांव पर लगा दिया था। बस एक ही लक्ष्य रह गया था उसका अच्छे से लालन-पालन, और वो काबिल बनते ही विदेश चला गया और वहीं का होकर रह गया। उसे अपनी बूढ़ी मां की भी कोई फिक्र नहीं है पर मां अपने बच्चों को भुला नहीं सकती है हर पल याद करती है।

धीरे-धीरे मां को भी आप की असलियत समझ आ गई थी और उन्होंने आपके बारे में पूछना भी बंद कर दिया था। शायद वो आपसे नाराज़ थीं इसलिये अपने दाह संस्कार का ज़िम्मा उसे ही सौंपकर गई थीं। वो अपने काम में ना तो आपका पैसा ना आपका हाथ लगवाना चाहती थीं और जैसा उन्होंने चाहा वैसा हुआ भी।

मां कुछ पैसा छोड़कर गई हैं क्या दीपेश बोला।

भैया, मां की बीमारी में सारी जमा पूंजी तो लग ही गई। कर्ज़ अलग से चढ़ गया, धीरे-धीरे उतार दूंगा।

अभी तो मैं भी कोई मदद करने की स्थिति में नहीं हूं वरना ज़रूर करता।

नहीं नहीं, इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं है भैया।

अच्छा छोड़ो इन बातों को। अब आगे की सोचो। चौथे दिन ही मां का सब काम कर देना मुझे ज़्यादा छुट्टी नहीं मिली है, मुझे लौटकर भी जाना है।

भैया ,चौथे दिन तो केवल शुद्धि हवन ही होगा। मां का सारा काम विधि विधान से ही करूंगा ।आप हवन के बाद जाना चाहें तो जा सकते हैं।

चौथे दिन हवन के बाद जब दीपेश जाने लगा तो सुकेश का दिल बहुत दुःखी हुआ। वो सोचने लगा कि भैया इस घर की बड़ी संतान है जिन्हें परिवार से कोई लेना-देना ही नहीं है सिर्फ औपचारिकता निभानी है। एक उसकी पत्नी अपने घर की बड़ी संतान है जो अपने भाईयों के साथ-साथ अपने माता-पिता की भी ज़िम्मेदारी उठा रही है।

दीपेश के जाते ही सुकेश मां की फोटो उठाकर उनके कमरे में रखने चल दिया। जैसे ही उसने फोटो रखी उस पर चढ़ी माला उसके हाथ में आ गई उसे ऐसा लगा जैसे मां उससे खुश होकर उसे आशीर्वाद दे रही हों जिसकी उसे इस समय बहुत ज़रुरत महसूस हो रही थी।

Leave a comment