और घूंघट हट गया-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Aur Ghooghant Hatt Gaya

Hindi Short Story: आज मैं 65 बरस की हो चुकी हूं पर यह वाक्या जब भी याद आता है होंठो पर मुस्कान तैर ही जाती है। बात उन दिनों की है जब मैं नई-नई शादी करके दुल्हन बनकर घर आई थी मेरी ससुराल में मेरी सास जेठानी और सभी लोग बहुत सुलझे हुए पढ़ें लिखे लोग थे।

वे सभी मुझे घूंघट न करने के लिए कहते थे। पर मैं एक छोटे से कस्बे से आई थी और अपनी भाभीयों को, अपनी मां को हमेशा मैंने घूंघट में ही देखा, तो मुझे लगता कि बिना घूंघट  के कैसी नई दुल्हन। मेरे ससुर जी अक्सर मेरी सासू जी से कहते हैं कि ये पुष्पा घूंघट में कैसे काम करेगी इस बताओ कहीं इसके कुछ चोट न लग जाए। मेरी सासू जी भी मुझे समझती कि बेटा आंखों की शर्म ही हमारा गहना है तो बिना घूंघट के भी तुम आराम से ससुराल में रह सकती हो।

अब हमारी शादी को करीब एक महीना हो गया था। मुझे मेरी सासू मां और सभी परिवार के लोग देवी दर्शन के लिए वीन्नेर देवी के मंदिर लेकर गए। हम सभी ने पूजा अर्चना बहुत अच्छे से कर ली पर जब वापस जाने लगे तो वहां पेड़ पर एक मधुमक्खी का छत्ता लगा हुआ था, जिसे कुछ शैतान बच्चों ने कंकड़ मारकर छेड़ दिया।

मैं वहीं पास में ही खड़ी थी और तभी एक मधुमक्खी मेरे घूंघट के अंदर घुस गई। मैंने घबराकर घूंघट हटा दिया और बहुत तेजी से ही पास  में ही बनी मंदिर की कोठरी में घुस गई। वहां देखा तो सभी ससुराल के आदमी  लोग भी ,ससुर जी, जेठ जी  आदि सभी  मधुमकखियो से बचने के लिए अंदर छिपे थे। तभी मेरी सासू जी हंसते हुए बोली जो काम हम लोग ना कर सके मधुमक्खियों ने कर दिया, देखो इसका घूंघट हट गया, सभी हंसने लगे और मेरे देवर  मेरी मसखरी करते बोले देखो ना नई दुल्हन का चेहरा भी मधुमक्खी ने काटकर कैसा लाल कर दिया है। अब क्या था मधुमक्खी के काटने के साथ साथ शर्म से भी मेरा चेहरा लाल हो गया।
आज भी ये बात मन को अंदर तक गुदगुदा जाती है।

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