बहुत समय पहले बगदाद में एक धनी अखरोट व्यापारी रहता था। उसका नाम अली ख्वाजा था। दूर-दूर से लोग उसकी दुकान से अखरोट लेने आते। एक रात उसने सपना देखा । सपने में उसे एक बूढ़ा फ़कीर दिखाई दिया। उसने कहा, अली, हिसाब-किताब देख लें। “

अली ने उससे पूछा, “ आप क्या कहना चाहते हैं ? “
फ़कीर बोला, “ बड़ी दौलत कमा ली। अब अल्लाह की बंदगी का समय है।”
अली समझ गया कि अल्लाह की सेवा में पेश होने का बुलावा आया था। उसने मक्का-शरीफ जाने का फैसला कर लिया। उसने सारा हिसाब-किताब समेटा तो एक हजार सोने के सिक्के हाथ आए। वह उन्हें सही-सलामत रखना चाहता था । घर में तो खतरा था। अचानक उसे अपने दोस्त हसन की याद आई।

वह एक साहूकार था। अली ने उसके पास ही अपनी अमानत रखने की सोची। उसने कांच के एक जार में सिक्के डाले और उन्हें ऊपर से अखरोटों से भर दिया। जार पर एक ढक्कन भी लगा दिया।
अगली सुबह उसने दोस्त को जार देकर कहा, ” हसन दोस्त ! मैं मक्का शरीफ जा रहा हूं! ये मेरे भंडार के अखरोट हैं। मैं इन्हें यादगार के तौर पर रखना चाहता हूं। इन्हें रख लो। मैं लौटकर ले लूंगा।
हसन मान गया। वह अली को भंडार में ले गया और बोला, “यहीं रख दो ! “

अली अपना जार उसे सौंपकर हज को चला गया। अली ने कई स्थानों की यात्रा की। हसन बगदाद में अपने घर- व्यापार में मग्न रहा। एक दिन उसके घर कुछ मेहमान आए । उसकी पत्नी शीबा को खीर में डालने के लिए अखरोट चाहिए थे। दिन ढलने को था। उसने पति से कहा, “आप दोस्त के जार से अखरोट निकाल लें। कल हम उसमें और डाल देंगे । “
हसन ने वहां जाकर जार का ढक्कन खोला व उसे बड़े बर्तन में पलटा। यह क्या! वहां तो सोने के सिक्कों का ढेर लग गया।
हसन के मन में लालच आ गया। उसने स्वयं से कहा, साल हो गए। अली नहीं लौटा। अल्लाह जाने उसे क्या हुआ । मैं इस जार में और अखरोट लाकर भर दूंगा व जार उसे लौटा दूंगा। सिक्के तो मैं ही रख लेता हूं।’

एक माह बाद अली लौटा तो हसन से मिलने आया। दोनों ने गले मिलकर खुशी जाहिर की ।
अली ने कहा, “ दोस्त! मेरा जार लौटा दो। “
हसन ने भंडार की चाबियां देते हुए कहा, “ जाओ, उठा लो ।
अली जार लेकर घर आया। उसने उसे खोला तो सारे अखरोट निकले। वह समझ गया कि हसन ने उसे धोखा दिया था। अली झटपट हसन के घर गया। उसने कहा, “ हसन ! तूने मुझे धोखा दिया। मेरे सिक्के ले लिए? “
हसन लाल-पीला होकर बोला, “एक तो सात साल तक तेरे जार की रखवाली की । अब तू चोरी का इल्ज़ाम लगा रहा है। तूने तो अखरोट रखवाए थे न, सिक्के कहां से आए?”

अली समझ गया कि वहां बहस से कोई फायदा नहीं होने वाला था। उसने सुलतान हसन – अल- रशीद से इंसाफ मांगने का फैसला किया। सुलतान ने दोनों पक्षों की बात सुन ली।
अगले दिन अली अखरोट का जार भी साथ ले गया। सुलतान ने हसन से कहा, “ बोलो, क्या कहना है?”
हुजूर! अली अपने हाथों से मेरे घर में अखरोट का जार रख गया था। अब ये सिक्कों की बात करता है । मुझे कुछ नहीं पता।

सुलतान ने अली से कहा, “जार खोलो, क्या तुम्हें अखरोटों की किस्म के बारे में कुछ कहना है ? “
अली ने अखरोटों के दो ढेर लगा दिए और कहा, “मेरी बाईं ओर पड़े अखरोट सात साल पुराने हैं तथा दाईं ओर पड़ा ढेर ताजा है। “
सुलतान ने हसन से पूछा, “जार में नए अखरोट किसने रखे ? “
हसन सुलतान के पैरों पर गिरकर जान की दुहाई मांगने लगा, माफ करें, मैं लालच में आकर पाप कर बैठा । “

सुलतान ने हसन से कहा कि अली को सोने के सिक्के लौटा दे। हसन को जुर्माने के तौर पर एक हजार के बजाय तीन हजार सोने के सिक्के देने पड़े।
अली ख़्वाजा सुलतान के इंसाफ से बहुत प्रसन्न हुआ।
