एक समय की बात है, बगदाद पर एक बुद्धिमान सुलतान का शासन था। उसका नाम हारून – अल- रशीद था। वह बहुत दयालु था। वह बगदाद की सड़कों पर भेष बदलकर घूमता । इस तरह उसे अपनी प्रजा के दुख-दर्द का पता चल जाता। एक दिन उसने एक अंधा भिखारी देखा। वह राहगीरों के आगे गिड़गिड़ा रहा था।
अल्लाह के नाम पर दया करो!” दयालु सुलतान ने उसे सोने का एक सिक्का दिया व आगे बढ़ गया।
भिखारी फिर से चिल्लाया, “ अल्लाह मुराद पूरी करे, मुझे एक थप्पड़ लगाकर जाओ।

सुलतान हैरानी में पड़ गया। अंधे भिखारी ने फिर से आग्रह किया तो सुलतान ने उसे थप्पड़ लगा दिया, पर उस रात वह सो नहीं सका।
अगले ही दिन उसने भिखारी को बुलवा भेजा।
भिखारी से उसने पूछा, “बाबा ! कल तुमने मुझे थप्पड़ लगाने को क्यों कहा?” भिखारी के मुंह से शब्द ही नहीं फूटे। वह नहीं जानता था कि वह एक दिन पहले सुलतान से मिला था ।
सुलतान ने मदद करने की तसल्ली दी तो वह बोला, “हुजूर ! इसके पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी है।” अंधे भिखारी ने कहा।
सुलतान ने कहानी सुनाने का हुक्म दिया।

अंधे भिखारी ने कहानी सुनानी शुरू की- कई साल पहले मैं बगदाद का धनी सौदागर था। मेरे पास अस्सी ऊंट थे। एक दिन बसरा जाते समय मैं एक फ़कीर से मिला। उसने रोककर मुझसे कहा, “मेरी बात सुनकर जाना! “
मैंने पूछा, “क्या बात है बाबा ! मुझे क्यों रोका?”
” मैं चाहता हूं कि तू यहां से जाने से पहले और भी दौलत लेकर जाए। पास के पर्वत में बड़ी गुफा है। वहां भरपूर धन-दौलत छिपी है। ” बाबा ने कहा

फ़कीर मुझे गुफा के पास ले गया। उसने आधे-आधे ऊंट बांटने की पेशकश रखी। अब हम दोनों के पास चालीस-चालीस ऊंट थे। हम पर्वत पर पहुंचे तो फ़कीर ने लकड़ी एकत्र कर आग जलाई। उसने कुछ जादुई मंत्र पढ़े व देखते-ही-देखते गुफा का मुंह खुल गया। गुफा में कीमती हीरे-जवाहरात व सोने के सिक्के भरे थे। हमने ऊंटों पर खजाना लाद लिया। फ़कीर ने वहां से एक गंदा – सा धातु का डिब्बा भी ले लिया।
वापसी पर मुझे लालच सताने लगा । मैंने उससे कहा, “बाबा ! आप तो साधु हैं। आपका दौलत से क्या काम है? आप मुझे दस और ऊंट दे दो! “

फ़कीर ने कहा, “हां, ले लो। “
मैं खुश हो गया, लेकिन थोड़ी देर बाद फिर से लालच ने सिर उठाया। मैंने फ़कीर से कहा, ” बाबा ! अल्लाह के बंदे को इन ऊंटों से क्या काम ?”
फ़कीर ने मुस्कराकर कहा, “दोस्त ! सब ले लो। मेरे लिए सब बेकार हैं।
मैंने कहा, “बाबा ! इस धातु के डिब्बे का क्या राज है ?”
अगर अब भी मन नहीं भरा तो इसे भी ले लो। इसमें जादुई काजल है, जिसे लगाने से दुनिया के छिपे व गढ़े खजाने दिखने लगते हैं। इसे बाईं आंख में लगाना होता है। यदि दाईं आंख में लगाया तो अंधे हो जाओगे!” फ़कीर ने कहा ।

मुझे इस बात पर यकीन नहीं हुआ। मैं बोला, “बाबा ! मैं इसे परखना चाहता हूं।” फ़कीर ने मेरी बाईं आंख में काजल लगाया तो मैं आस-पास छिपे खजानों को देख रोमांचित हो गया। मैंने फकीर से कहा कि वह मेरी दाईं आंख में भी काजल लगा दे। फ़कीर ने सावधान किया, पर मैं जिद पर अड़ा रहा।
मैं बोला, “ मक्कार, तुम मुझसे कुछ छिपाना चाहते हो, तभी इसे नहीं लगा रहे।” मेरे लालच का तो जैसे अंत ही नहीं था।
फ़कीर ने मेरी दाईं आंख में भी काजल लगा दिया। अचानक मुझे दिखाई देना बंद हो गया। मैं भयभीत होकर मदद के लिए चिल्लाया, “बाबा! मैं अंधा हो गया। मुझ पर दया करो। मेरी नज़र लौटा दो!” मैंने विनती की।

फ़कीर ने कहा, “दोस्त! मैंने पहले ही सावधान किया था। लालच ने तुम्हें हमेशा के लिए अंधा बना दिया। अब इसका कोई इलाज नहीं कर सकता । “
मैं रोने लगा, “ हाय अल्लाह ! यह मैंने क्या किया ? अब मेरी दौलत का क्या होगा ? ” फ़कीर बोला, “तुम्हारी दौलत और ऊंट किसी किस्मत वाले को मिलेंगे। तुम्हें इस लालच के लिए पछताना होगा । “
फ़कीर मुझे अकेला छोड़कर चला गया। मैं कई सप्ताह तक भूखा भटकता रहा। एक दिन एक दयालु सौदागर मुझे बगदाद ले आया। अब मैं भीख मांगकर पेट भरता हूं और अपने लालच पर पछताता हूं। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे सिक्का देने के साथ-साथ थप्पड़ भी मारें ताकि मुझे मेरे लालच का फल याद आता रहे। भिखारी अपनी कहानी सुनाकर सुबकने लगा ।

सुलतान को यह कहानी सुनकर बहुत दुख हुआ । उसने भिखारी के रहने-खाने का प्रबंध करवा दिया। उसके बाद भिखारी खुशी-खुशी रहने लगा, पर उसे हमेशा याद रहा कि लालच का फल बुरा ही होता है।
