स्वामी रामकृष्ण परमहंस का यह नियम था कि वह नित्य अपने लोटे को माँजा करते थे।
उनके एक शिष्य के मन में विचार आया कि स्वामीजी नित्य ही लोटा माँजते हैं, इसमें कुछ-न-कुछ रहस्य जरूर है। एक दिन उसने उनसे पूछ ही लिया।
तब रामकृष्ण परमहंस बोले, “बेटे ! यह लोटा नित्य माँजने पर भी गंदा हो जाता है, यही दशा अंतर्मन की भी है। जब मन पर नित्य ही कुसंस्कार का प्रभाव पड़ता है तब वह भी इस लोटे की तरह ही मैला हो जाता है। इसलिए हमें सद्संस्कारों से अपने अंतर्मन को भी माँजना चाहिए ताकि मन पर बुराई रूपी मैल न टिक पाए।”
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
