kabir ka lota
kabir ka lota

कबीरदासजी प्रतिदिन प्रातः गंगा स्नान करने जाते थे, गंगाजी अधिक गहरी होने के कारण वे प्रतिदिन अपना एक लोटा ले जाते थे। उसे स्नान के पूर्व माँज धोकर साफ करके ही स्नान करते थे।

एक दिन उसी तट पर कुछ महात्मा स्नान करने आये उनके पास कोई पात्र न होने से उन्हें स्नान करने में तकलीफ हो रही थी। यह देख कर कबीरदासजी ने सोचा की क्यों न अपना लोटा देकर महात्माओं की मदद की जावे।

“यह सोचकर कबीरदासजी महात्माओं के पास गये और उनसे अनुरोध किया कि आप मेरा लोटा लेकर स्नान कर लीजिए।

इस पर महात्मा क्रोधित होकर बोले कि क्या हम जुलाहे के लोटे से स्नान करेंगे। जा चला जा यहाँ से। ऐसे विचार सुनकर कबीरदासजी को हंसी आई और उन्होंने महात्माओं से कहा कि मान्यवर मैं कई दिनों से इस लोटे को प्रतिदिन माँज धोकर गंगाजी में डुबाता हूँ तब भी यह लोटा अभी तक पवित्र नहीं हो पाया। आप लोगों की आत्मा कब तक पवित्र होगी? इसका मुझे अत्यन्त खेद है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)