doosaron kee madad
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ईश्वर जो करता है सदा ही अच्छा करता है। इसमें जिस व्यक्ति का विश्वास हो जाए उसके अनेक बिगड़े काम भी स्वतः सुधर जाते हैं। न सुधरने पर उसे दुःख महसूस नहीं होता। वह लाभ तथा हानि, दोनों अवस्थाओं में प्रसन्न रहता है। इसे ईश्वर की इच्छा मानता है।

संत नजीर भी ऐसे ही व्यक्ति थे। वह दीन-दुखियों की सेवा को भी भगवान की सेवा ही मानते थे। यह बात उन दिनों की है जब नजीर पेशवा के पुत्र को मकतब पढ़ाने जाते। उन्हें आने-जाने के लिए पेशवा से एक घोड़ी भी मिली हुई थी। वह घोड़ी का भी पूरा ख्याल रखते। एक बार वह अपना वेतन लेकर घर जा रहे थे। एक बूढ़े ब्राह्मण ने उनकी घोड़ी रोककर उनसे कहा- “मेरी पुत्री का विवाह नजदीक है। मेरे पास पैसे नहीं हैं। यदि आप कुछ आर्थिक सहायता कर देते तो मेरा काम सरल हो जाता।” “कोई बात नहीं बाबा। ईश्वर की यही मरजी है कि मैं तुम्हारी मदद करूं, वरना तुम्हारी हमारी आज मुलाकात न होती। पिछले कल भी मेरी जेब खाली थी। आने वाले कल भी शायद ही मेरी जेब में रकम होती… मुझे आज ही वेतन मिला है। पैसे काफी हैं। उम्मीद है तुम्हारे ये काफी काम आएंगे।” कहते-कहते संत नजीर ने पूरा वेतन उस बूढ़े ब्राह्मण के हाथों पर रख दिया।

बूढ़े ने तो एक बार भी नहीं सोचा था कि इतनी बड़ी रकम एक बार माँगने पर एक ही व्यक्ति से मिल जाएगी। वृद्ध ब्राह्मण जब दोनों हाथ जोड़ धन्यवाद करने और दुआ देने लगा तो संत नजीर ने कहा- “इसकी कोई जरूरत नहीं। यही ईश्वर की मरजी थी। मेरा मानना है व्यक्ति को अपने धन का खुद तो प्रयोग करना ही चाहिए, दूसरों की मदद में भी खर्च करना चाहिए।”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)