संत नज़ीर परमात्मा के परम भक्त थे। उनका विश्वास था कि भगवान् जो कुछ करते हैं, भलाई के लिए ही करते हैं, तथा दीन-दुखियों की सेवा भगवान् की सेवा होती है। वे पेशवा के लड़के को मकतब पढ़ाने जाया करते थे। उनके आने-जाने के लिए पेशवा ने एक घोड़ी भी दे रखी थी।
एक बार वे अपना वेतन लेकर घोड़ी पर चढ़कर आ रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक वृद्ध मिला। उसने नज़ीर को रोककर प्रार्थना की कि वे उसे कुछ आर्थिक सहायता करें। पूछने पर उसने बताया कि उसे अपनी लड़की का विवाह करना है। यदि उसे कुछ रुपये मिलें, तो वे विवाह के काम आ सकेंगे। नज़ीर बोले, “बाबा! तुम्हारी जरूरत मेरी जरूरत समझो। ईश्वर की इच्छा थी कि हम दोनों की मुलाकात हो, इसीलिए उसने यह भेंट करायी है। अच्छा हुआ, आज मेरी गाँठ में अच्छी खासी रकम है। इसे लो और बेटी का विवाह कराओ।” और उन्होंने सचमुच अपना पूरा वेतन उस बूढ़े को दे डाला। बूढ़े ने स्वप्न में भी सोचा न था कि एक व्यक्ति से ही उसे इतना अधिक रुपया मिलेगा। नज़ीर की उदारता देख उसकी आँखों में आँसू आ गये। उसने उन्हें बार-बार धन्यवाद दिया। यह देख नजीर बुदबुदाये।
दौलत जो तेरे पास है, रख याद तू ये बात।
खा तू भी और अल्लाह की कर राह में खैरात।।
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