aluram-kachaluram
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आलूराम-कचालूराम सब्जीपुर की शोभा थे और दोनों अच्छे दोस्त थे। ऐसे पक्के दोस्त कि जहाँ आलूराम नजर आते, वहाँ कचालूराम भी दिख जाते और जहाँ कचालूराम होते, वहाँ आलूराम का होना लाजिमी था। उन्हें इस कदर साथ रहते देख, बहुतों को लगता कि आलूराम और कचालूराम दोस्त नहीं, जुड़वाँ भाई हैं।

बहुत बार तो यह हुआ कि सब्जीपुर के शरारती लोगों की मंडली ने आलूराम-कचालूराम की पक्की दोस्ती को तोड़ने की कोशिश की। बड़ी-बड़ी चालें चली गईं, क्योंकि सब जानते थे कि आलूराम-कचालूराम जब मिल जाते हैं तो एक और एक दो नहीं, बल्कि ग्यारह हो जाते हैं। और उनसे टक्कर ले पाना बड़ा मुश्किल है। सब्जीपुर में जिसका दिमाग बिगड़ा, उसे दुरुस्त करने के लिए फौरन आलूराम-कचालूराम की सेना हाजिर होती है और पल भर में मामला शांत हो जाता है।

मगर एक बार दुश्मनों की चाल आखिर कामयाब हो ही गई। आलूराम-कचालूराम के दिल एक-दूसरे से फटे तो इस कदर फट गए कि न आलूराम कचालूराम की शक्ल देखना चाहता था और न कचालूराम आलूराम को जरा भी बर्दाश्त करने को तैयार था।

सब्जीपुर में बहुत से नेक लोग भी थे, जिन्हें इस बात का दुख होता कि आलूराम-कचालूराम की ऐसी प्यारी दोस्ती टूट गई। वह भी सिर्फ इस बात पर कि आलूराम हमेशा कचालूराम को ताना दिया करता था कि “देखो, तुम्हें पूछता ही कौन है! सब ओर आलूराम-आलूराम का ही शोर है। सब ओर बस मेरी पूछ!”

कचालूराम ने एक बार बर्दाश्त किया, दो बार बर्दाश्त किया, दस बार बर्दाश्त किया, मगर आखिर उसकी भी एक हद थी। बोला, “आलूराम भैया, तुम तो बड़े हो। तो फिर मुझ छोटे बंदे के साथ रहने से क्या फायदा? तुम तो ऊँचे उड़ो। मैं जहाँ हूँ, ठीक हूँ। अच्छा हूँ, बुरा हूँ, छोटा हूँ, बड़ा हूँ, मगर मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। मगर कोई बार-बार कोंचता रहे तो बुरा लगता है।”

इस पर आलूराम ने मुँह बिचकाया, “हूँ-हूँ! सारी दुनिया मुझे सब्जीपुर का बेताज बादशाह कहती है और तुम हो कि इसे मानते ही नहीं। फिर काहे की दोस्ती, काहे का प्यार!”

कचालूराम बेचारा क्या कहता! वह गुमसुम सा हो गया। और कुछ दिनों बाद लोगों ने देखा कि आलूराम-कचालूराम या तो एक-दूसरे के सामने पड़ते ही नहीं और आते भी हैं तो उनका चेहरा ऐसे सूख जाता है, जैसे वे आलूराम-कचालूराम न होकर डबलरोटी के अलग-अलग पीस हों!

सब्जीपुर में बहुत से लोगों ने इस बात का मजा लिया कि लो जी, ये बड़ी दोस्ती का दम भरते थे, अब लो मजा! वे आलूराम-कचालूराम की खाई को चौड़ा करने की हर कोशिश करते। आलूराम से जाकर कहते, “अरे, तुम्हें पता नहीं, कचालूराम क्या कह रहा था? कह रहा था कि मैं चाहूँ तो एक मिनट में झाड़कर सीधा कर दूँ!” और कचालूराम से जाकर कहते कि आलूराम कह रहा था, कचालूराम है क्या चीज! मैं न होता तो आज उसे कोई पूछने वाला नहीं था।”

सब्जीपुर के नेक और भले लोग इस दोस्ती के टूटने से दुखी थे। कारण यह था कि आलूराम-कचालूराम चाहे थोड़े अकड़ू हों, पर बुरे नहीं थे। वे सब्जीपुर के लोगों की मदद करते थे और हर दुख-संकट में काम आते थे।

सबने बैंगनमल के पास जाकर यह सारा किस्सा बताया। बैंगन राजा ने अपने मित्र टमाटरलाल को बुलाकर इस पर देर तक बात की। और आखिर बैंगनमल और टमाटरलाल ने फैसला कर लिया कि कुछ न कुछ करना होगा। उन्होंने सोचा, आलूराम और कचालूराम के पास जाकर उन्हें जरा बताना चाहिए कि भैया, तुम लोगों की कुट्टी हो गई तो तुम्हें पता नहीं, तुम्हारी कितनी जग हँसाई हो रही है। और फिर जो तुम्हारे दुश्मन हैं, उनकी तो मौज ही मौज है।

आखिर बैंगन राजा और टमाटरलाल खुद चलकर आलूराम के पास गए। बैंगन राजा ने गंभीर होकर आलूराम को बुरा-भला समझाया। मगर आलूराम इतनी अकड़ में था कि सुनने को ही तैयार नहीं। तब आखिर बैंगन राजा को कहना पड़ा, “देखो आलूराम, अगर तुम सीधे-सादे कचालूराम से कुट्टी करोगे तो फिर मुझसे भी कुट्टी। तुम अच्छी तरह जानते हो कि कचालूराम एकदम सीधा-सरल है, भला भी। उसने तुम्हारा कितना साथ दिया और कैसे-कैसे बुरे वक्त में दोस्ती निभाई, यह भी नहीं भूले होगे।”

सुनकर आलूराम चुप। बैंगन राजा की बात सही, एकदम सौ प्रतिशत सही थी। कैसे कहे कि वे गलत कह रहे हैं?

मगर इतनी आसानी से मान जाता तो आलूराम को आलूराम कौन कहता। उसकी अकड़ थोड़ी कम हुई, मगर तुर्शी बाकी थी। बोला, “आपको क्या पता, बैंगन राजा, कचालूराम ने मेरे बारे में क्या-क्या कहा!”

बैंगन राजा बोले, “भैया, जरा जाके यह तसदीक भी कर लो कि कचालूराम ने कहा भी या फिर कुछ खास लोग ही भड़का रहे हैं, तुम्हें कचालूराम के बारे में झूठी-सच्ची बातें कहकर! और ये कौन लोग हैं, तुम भी अच्छी तरह जानते हो।”

बैंगन राजा चुप हुए, तो टमाटरलाल ने भी बोलना शुरू किया और करीब-करीब यही बातें कहीं। आलूराम ने सोचा, ‘जरूर कचालूराम ने इन्हें मेरे खिलाफ भड़काया है। तभी तो ऐसी बातें कह रहे हैं।’

आखिर आलूराम ने टमाटर से कह दी यही बात। इस पर आम तौर से विनम्र और शांत रहने वाले टमाटरलाल को इतना गुस्सा आया कि मारे गुस्से के वे काँपने लगे। वे आलूराम को बुरी तरह झाड़ते हुए बोले, “देखो आलूराम, मुझे न सब्जीपुर के इस दल से कुछ मतलब है, न उस दल से। मैं तो सिर्फ तुम दोनों का भला चाहता हूँ, इसलिए यहाँ आया हूँ! और कचालूराम नेक है, इसलिए मेरा मन हुआ कि तुम्हारे मन से उसके लिए जो नफरत है, उसे धो दूँ। अगर तुम नहीं चाहते हो तो ठीक है, जैसे रहना चाहते हो रहो, मगर फिर किसी परेशानी में पड़ जाओ तो मेरे पास मत आना।”

आलूराम को याद आई पिछल
ी बार की घटना, जब सारी सब्जियाँ और फल इकट्ठे हो गए थे और सबका कहना था कि सब्जीपुर से आलूराम को निकालो, इसने हम सबकी नाक में दम किया हुआ है। यह ज्यादा उछलता-कूदता रहता है और लुढ़कता हुआ हर जगह पहुँच जाता है। इस वजह से हमारी कोई पूछ नहीं रही। आलूराम की वजह से लोग गुणों की खान लौकीदेवी को भूल गए, रस और स्वाद की खान भिंडी चाची को भूल गए। हर चीज को भूल गए। इसे निकाल बाहर करो! और तब साथ देने के लिए या तो कचालूराम था या फिर टमाटरलाल और बैंगनमल। इन्होंने किसी तरह आलू की जान बचाई थी। आलूराम को एक-एक कर पिछली सारी बातें याद आ गईं।

उसे यह भी याद आया कि कचालूराम उससे बड़ा है, तब भी उसकी कितनी इज्जत करता है। कभी उसने अपना बड़प्पन झाड़ने की कोशिश नहीं की। तो अब वह बात-बात में कचालूराम की खिल्ली उड़ाए, क्या यह ठीक है? लिहाजा कचालूराम का गुस्सा तो जायज है।

आलूराम के दिल में सच्चा पछतावा था। उसी वक्त वह तेजी से चलता, लुढ़कता-पुढ़कता हुआ सीधे कचालूराम के घर गया। पछतावे भरे स्वर में बोला, “भाई कचालूराम, आज मैं जान गया, तुममें बड़प्पन और मुझमें ओछापन है। वरना मुझसे इतनी बड़ी भूल कैसे हो जाती और मैं बड़े भाई सरीखे तुम्हारा मजाक कैसे उड़ाता!”

कहते-कहते आलूराम का पूरा चेहरा आँसुओं से भीग गया था। आवाज रुँध गई थी। बोला, “यह तो बैंगन राजा और टमाटरलाल ने हकीकत मेरे आगे रखकर आँखें खोल दीं, वरना सब्जीपुर में तो ऐसे लोग हैं कि उनकी चाल चल जाती तो जिंदगी भर के लिए आलूराम-कचालूराम अलग-अलग हो जाते।”

आलूराम ने इतने आँसू बहाए, इतने आँसू बहाए कि कचालूराम के लिए उसे चुप कराना मुश्किल हो गया।

आलूराम बार-बार कह रहा था, “गलती माफ कर दो भैया, गलती माफ कर दो। जब तक तुम माफ नहीं करोगे, मैं तुम्हारे पैर नहीं छोड़ूँगा।”

उस दिन के बाद से किसी ने आलूराम-कचालूराम को झगड़ते नहीं देखा। दोनों की दोस्ती पहले से सवाई हो गई। हाँ, जब भी बैंगन राजा और टमाटरलाल मिलते हैं, दोनों मित्र उन्हें प्यार से धन्यवाद देना नहीं भूलते और मिलकर गाना गाते हैं, ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे!’

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)