इस समय अंशु की असीमित सुंदरता एक दैत्य के पंजे में ऐसा रूप धारण कर चुकी थी कि अजय तो क्या, कोई भी होता तो उसे बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देता।

अजय का दिल फट गया। उसकी समझ में सारी बातें तुरंत आ गईं। अंशु के साथ जबर्दस्ती की जा रही है। उसने रंधीर को घूरते हुए अपने पीछे का द्वार बंद किया, परंतु तब तक रंधीर संभल चुका था। उसके हाथ में चाकू था। वह एक कुत्ते के समान अजय पर झपटा, परंतु अजय की स्फूर्ति चीते के समान तेज थी। उसने तुरंत अपने बाएं हाथ द्वारा रंधीर की दाहिनी कलाई थम ली, जिसमें चाकू था। फिर उसने अपने दाहिने हाथ से रंधीर के चेहरे पर एक भरपूर घूंसा मारा, परंतु रंधीर का चाकू वाला हाथ नहीं छोड़ा। रंधीर उसकी पकड़ में तड़पकर रह गया। उसके बाएं हाथ में इतनी ताकत नहीं थी कि वह अजय पर जोरदार वार करता। अजय ने उसी प्रकार उसकी कलाई मजबूती से पकड़े हुए उसके मुंह पर अगणित घूंसे मारे- कलाई फिर भी नहीं छोड़ी। रंधीर के होंठों से रक्त की धार निकल गई। उसे गश आने लगा। उसकी पकड़ में चाकू ढीला पड़ गया। फिर छूटकर कालीन पर गिर पड़ा।

अजय ने अपने दाहिने हाथ द्वारा रंधीर के सिर के बाल पकड़े और उसे अपनी ओर खींचकर सामने नीचे की ओर झुकाकर उसकी छाती पर एक घुटने द्वारा इतनी जोर से मारा कि वह पीछे दो कलाबाजी खाकर ढेर हो गया। अजय ने पलटकर अंशु को देखा। अंशु उसी प्रकार खड़ी फटी-फटी आंखों से अजय को देख रही थी। आखिर भगवान ने उसकी सहायता कर ही दी। एक नीच के हाथों से उसे बचा ही लिया।

अजय ने एक ओर पड़ी साड़ी उठाकर उसकी ओर बढ़ा दी और फिर अपना मुखड़ा दूसरी ओर फेर लिया।

अंशु ने मन ही मन अजय को धन्यवाद कहते हुए साड़ी ले ली और अपने शरीर पर लपेटी। अपने आंचल से आंसू पोंछे। बिखरी लटों को उंगलियों द्वारा संवारा और फिर कमरे से बाहर निकलने लगी तो अजय उसके पीछे-पीछे हो लिया। अंशु अपनी कार के समीप पहुंची तो ड्राइवर ने पिछला द्वार खोला। अंशु अंदर बैठ गई। अजय वहां खड़ा हुआ था। अंशु अजय को नजरें उठाकर देखना चाहती थी। उसे धन्यवाद देना चाहती थी, परंतु लाज के मारे उसकी लंबी पलकों का बोझ केवल कांपकर ही रह गया। होंठ भी हल्के-से खुले, परंतु शब्द नहीं निकल सके।

अजय ने अंशु के दिल की स्थिति को समझा। उसने अंशु से कुछ नहीं पूछा। ड्राइवर से बोला, ‘मेमसाहब को इनके घर ले जाओ।’

ड्राइवर बौखलाया-सा अजय को देख रहा था। उसने कहा, ‘जी साहब।’ फिर कार के अंदर बैठकर उसने स्टेयरिंग संभाल ली।

अजय कार को कुछ दूर तक जाता हुआ देखता रहा था और जब कार एक मोड़ पर शीघ्र ही मुड़ गई तो वह होटल के रेस्तरां की ओर बढ़ गया। उसकी कॉफी ठंडी हो चुकी थी। उसे अभी इसका बिल चुकाना भी था।

रेस्तरां के अंदर चन्दानी के गिरोह के व्यक्ति अभी तक बैठे शराब पी रहे थे। उन्होंने अजय को देखा। अजय की अवस्था से बिल्कुल भी प्रकट नहीं होता था कि वह किसी से लड़कर आया है। अजय ने उनकी परवाह न करते हुए दूसरी कॉफी मंगाई और फिर सिगरेट जलाकर लंबे-लंबे कश लेने लगा। उसे दिल ही दिल में एक बहुत बड़ी प्रसन्नता मिल गई थी। वह अंशु के आड़े समय में काम आया, परंतु एक बात उसकी समझ में बिल्कुल भी नहीं आ रही थी। अंशु यदि नहीं चाहती थी तो यहां आ कैसे गई? वह कमरे में कैसे पहुंची? रंधीर के चंगुल में कैसे फंस गई?

कुछ ही देर में एक वेटर तीव्र चाल के साथ उन लफंगों के पास जा खड़ा हुआ, जो चन्दानी के व्यक्ति थे। उसने उनसे कुछ कहा तो उन्होंने तुरंत अपने जाम की बची शराब समाप्त की और फिर उठकर तेजी के साथ रेस्तरां से बाहर निकल गए।

कुछ देर बाद अजय ने अपनी कॉफी समाप्त की। बिल अदा किया। फिर बाहर निकला। तभी मुख्य द्वार की ओर बढ़ते-बढ़ते उसके पग रुक गए। मुख्य द्वार के अन्दर रंधीर अपने व्यक्तियों के साथ खड़ा उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। बहुत घूरकर सब ही उसे देख रहे थे- क्रोध में दांत पीसते तथा होंठ चबाते हुए। अजय को मामले की तह तक पहुंचते देर न लगी, परंतु उसे किसी का भय नहीं था। उसने बहुत संतोष के साथ सिगरेट का एक गहरा कश लिया, धुआं हवा में छोड़ा, सिगरेट का बचा टुकड़ा धरती पर फेंका, जूते से उसे दबाकर मसला और फिर आगे बढ़ गया। रंधीर की बगल से होकर वह मुख्य द्वार से बाहर जाने लगा कि तभी रंधीर ने पीछे से उसका कालर पकड़ लिया। अपनी ओर अजय को खींचता हुआ वह बोला, ‘नमकहराम जिस थाली में खाता है उसी में छेद…’

अजय पहले ही सतर्क था। वह पलटा। रंधीर का वाक्य पूरा होने से पहले ही उसने रंधीर के चेहरे पर ऐसा जोरदार मुक्का मारा कि उसे चक्कर आ गया। अन्य बदमाशों ने बात पलटते देखी तो अजय पर टूट पड़े, परंतु अजय पीछे हटने वालों में से नहीं था। उसने सब बदमाशों का जमकर मुकाबला किया। इस मुकाबले में उसे भी कुछ चोटें आईं, परंतु उसका मुक्का जिस किसी को भी पड़ा, उसके जबड़े हिल गए। उनका झगड़ा देखकर वहां बहुत भीड़ एकत्र हो गई। होटल के मैनेजर ने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस का ‘साइरन’ सुनकर रंधीर तथा उसके साथियों के होश उड़ गए। उन्हें अपनी चिंता सताने लगी। वे तुरंत कार में बैठे और पुलिस के आने से पहले ही भाग निकले।

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