बात तब की है जब मैं चौथी कक्षा में पढ़ रही थी। मैं अपने ननिहाल में रहती थी। नानी जी एक दिन दोपहर में चारपाई पर लेटी और सो गई। मैंने उनके खुले बाल की चोटी बनाकर उसमें डोरी फंसाकर खिड़की से बांध दिया। और कमरा बंद करके बाहर चली गई। जब मैं बच्चों के साथ खेल रही थी, तो यह बात भूल गई। लगभग दो घंटे बाद एकाएक याद आने पर घबराकर अंदर देखा तो नानी दर्द से चिल्ला रही थीं, चोटी खोलकर मैं दौड़कर बाहर भागी। अंदर आने की हिम्मत न थी लेकिन उस दिन मुझे बहुत ज्यादा डांट पड़ी थी। उस दिन से मैंने शरारत करना छोड़ दिया।
चोटी में डोरी फंसाकर खिड़की से बांध दी
