मैं तब पांचवी कक्षा में थी। हमारे पड़ोस में संगीता आंटी रहती थी। उनके दो बेटे विदेश में सैटल थे इसलिए अकेलापन दूर करने के लिए उन्होंने 2 कुत्ते पाले हुए थे। उनका बगीचा हमारी छत से साफ दिखाई देता था। हम छत पर खेलते थे और आंटी बगीचे में कुत्ते के साथ खेलती, उनकी सेवा करती, अपने हाथों से उनको खाना खिलाती, उसे अपने पास बुलाती, ‘आ जाओ अम्मी के पास मेरे बच्चों और हम यह सब देखते रहते थे। एक दिन आंटी हमारे घर आई। मैंने दरवाजा खोला तो साथ ही मम्मी की किचन से आवाज आई, कौन है बेटे? इस पर मैंने झट से जवाब दिया, मम्मी कुत्तों की मम्मी आई हैं। सुनते ही आंटी एकदम से अवाक रह गईं। इतने में मम्मी भी आ गई तो दोनों बहुत हंसे। आज आंटी जीवित नहीं हैं, पर हम उनको याद करके खूब हंसते हैं।
कुत्तों की मम्मी आई हैं
