सान्या का घर नदी किनारे था। पास ही था एक सुंदर हरा-भरा पहाड़, जो उसके गाँव बेलापुर की सरहद को छूता था। जैसा सुंदर – सा नाम था बेलापुर का, वैसा ही सुंदर था बेलापुर। वहाँ एक-दूसरे से गले मिलते पेड़ ही पेड़ थे, फूल ही फूल। हर पल हँसते-खिलखिलाते, खुशबुएँ फैलाते फूल। इसी बेलापुर में रहती थी वह फूल – सी सुंदर लड़की सान्या, जो बड़ी भोली-भाली थी, पर नटखट भी।
सान्या घूमने की शौकीन थी। इतनी छोटी सी उम्र में भी दुनिया की नई-नई चीजें देखने और नई-नई बातें जानने की बड़ी उत्सुकता थी उसे। कभी वह अपनी मम्मी और पापा से जिद करती, कभी देबू भैया और मीनू दीदी से कि चलो, घूमने चलो। और जब वे न चलते, तो खुद ही चल पड़ती, अकेली।
उसे डर नहीं लगता था। मम्मी समझातीं, “बेटी, ऐसे अकेले जाना ठीक नहीं। जैसे ही फुर्सत हुई, मैं तुझे घुमाने ले जाऊँगी।” पापा भी यही कहते। देबू भैया और मीनू दीदी भी यही कहती। पर सान्या जानती थी, कहेंगे सब, चलेगा कोई नहीं। कोई घंटों-घंटों अपना फोन देखता रहेगा, कोई टी.वी.।
इसलिए जब भी उसका घूमने का मन होता, तो वह बालों में कंघी करती। कस के रिबन बाँधती, पैरों में चप्पल पहनती और झट बाहर सड़क पर आ जाती। और फिर जिधर पाँव ले जाते, उधर बढ़ती चली जाती। रास्ते में जो कुछ नजर आता, उसे वह गौर से देखना न भूलती। उसके बारे में खूब सारा सोचती। खूब। और फिर मन-ही-मन उसकी एक कहानी बना लेती। घर लौटकर आती तो मम्मी से कहती, “सुनो मम्मी सुनो कहानी सुनो!” “कहानी…! तू सुनाएगी कहानी सान्या?” मम्मी हैरान। पर तब तक तो सान्या की कहानी शुरू हो चुकी होती। कभी वह मम्मी को किसी अनोखे पिल्ले का किस्सा सुनाती तो कभी किसी चंचल और मुटल्ली बिल्ली का। एक बार तो उसने एक ऐसी मस्त बकरी का किस्सा सुनाया, जो बाग में जंगली बेर खाने पहुँची। काले-काले जंगली बेर इतने अच्छे थे कि जब उसने जी भरकर बेर खा लिए तो वह मजे में नाचने लगी। इतना नाची, इतना नाची कि…! सान्या की नई-नई कहानियाँ सुनकर मम्मी हैरान रह जातीं। सोचतीं, ‘अरे, इतनी प्यारी-प्यारी कहानियाँ कहाँ से आती हैं सान्या के पास?’ पर इसका राज तो सिर्फ सान्या ही जानती थी और उसने यह किसी को बताया न था। ऐसे ही एक दिन की बात, सान्या के मन में आया कि चलो, कहीं घूमने चलते हैं। * शाम का समय था। मौसम बड़ा प्यारा था। ऐसे में भला किसकी घूमने की तबीयत न होती! पर मम्मी पर जैसे इसका कोई असर ही नहीं था। वे रसोई के किसी काम में लगी थीं। देबू भैया अभी थोड़ी देर पहले ही स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेलने गए थे और मीनू दीदी हाथ में मोबाइल लिए, अपने सहेली से हँस-हँसकर बातें कर रही थीं। उनकी बातें खत्म होने में ही नहीं आती थीं। सान्या ने सोचा, ‘अरे, किसी को मेरी परवाह ही नहीं। कोई यह भी नहीं सोचता कि ऐसे बढ़िया मौसम में घर में बैठे-बैठे मैं कितनी बोर हो रही हूँ। कुछ और नहीं, तो कोई मुझसे दो-चार बातें ही कर ले। पर नहीं, कोई मेरे बारे में नहीं सोचता। कोई नहीं।’ ‘इससे तो अच्छा है, थोड़ा-सा घूम ही आऊँ। तबीयत बहलेगी। आसपास के पेड़-पौधे देखकर भी खुशी होगी।’ उसने अपने आपसे कहा और निकल पड़ी। अकेली। घर के बाहर कदम रखते ही सान्या को खुशी हुई। इसलिए कि मौसम बड़ा प्यारा-प्यारा था।
जोर की हवा चल रही थी और आसमान में बादल हिरनों के प्यारे-प्यारे चंचल बच्चों की तरह दौड़ रहे थे और कूद रहे थे। “वाह, क्या खूब! कितना अच्छा है कि मैं इस सुहाने मौसम में घूमने निकल आई।” सान्या ने अपने आप से कहा और आसपास के पेड़ों- पौधों और फूलों को देखती हुई तेजी से आगे बढ़ने लगी। सान्या घर से निकलकर अभी थोड़ी दूर ही गई थी कि मिला उसे एक बिल्ली का बच्चा बड़ा ही प्यारा, नटखट बिल्ली का बच्चा। हलका भूरा रंग, उस पर बड़ी ही सुंदर काली चित्तियाँ। बिल्ली के बच्चे ने सान्या से कहा, “सान्या, ओ सान्या, जरा सुनो मेरी बात!… मैं रीनू आंटी के घर जा रहा हूँ। तू भी चल न मेरे साथ।” “रीनू आंटी के घर! … भला किस लिए?” सान्या ने पूछा। “अरे, इतना भी नहीं जानती, बुद्ध? रीनू आंटी मुझे प्यार करती हैं न, इसलिए!” बिल्ली के बच्चे ने गोल-गोल आँखें घुमाते हुए कहा, जैसे सान्या पर तरस खा रहा हो। सान्या बोली, “ओहो, यह तो मैं भूल ही गई। चलो, ठीक है। रीनू आंटी के घर चलते हैं। वे तो मुझे भी बड़ा प्यार करती हैं।” और चलते-चलते थोड़ी ही देर में वे रीनू आंटी के घर जा पहुँचे। रीनू आंटी ने बिल्ली के बच्चे के साथ सान्या को देखा तो खुश हुई, बहुत खुश। खूब बातें कीं उन्होंने बिल्ली के बच्चे से, और सान्या से भी। फिर सान्या से पूछा, “अच्छा सान्या, सच-सच बताओ कि तुम क्या खाओगी? कौन सी चीज तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद है?” “रसगुल्ले…!” एकाएक सान्या के मुँह से निकला। फिर उसने थोड़ा सुधार करते हुए कहा, “स्पंजी रसगुल्ले।” रीनू आंटी ने झट सान्या के लिए स्पंजी रसगुल्ले मँगवा लिए। फिर बड़े प्यार से उसे खिलाए। सान्या को यह देखकर खुशी हुई कि रीनू आंटी ने बिल्ली के उस बच्चे को भी एक-दो नहीं, पूरे चार रसगुल्ले खाने को दिए। इस पर बिल्ली का बच्चा इतना खुश हुआ कि उछलने-कूदने और कलामुंडियाँ खाने लगा। उसकी आँखें मारे खुशी के बिजली के लट्टू जैसी जल रही थीं।
देखकर सान्या खूब हँसी, खूब हँसी। फिर बिल्ली का बच्चा बोला, “देखो, मैं नाच दिखाता हूँ।” “ओहो, देखूं तो भला कैसा नाचते हो तुम!” सान्या मुसकराई। और सचमुच ऐसा बढ़िया लयभरा नाच दिखाया उसने, जो सिर्फ एक बिल्ली का बच्चा ही दिखा सकता था। वह मजे में झूम-झूम और घूम-घूमकर नाच रहा था। कभी-कभी आगे की दोनों टाँगें उठाकर वह लचकने लगता। अगले ही पल फिर दुम हिलाता हुआ अपनी नई अदा दिखाता। रीनू आटी के घर पड़ोस की लड़कियाँ पढ़ने आती हैं। उन्होंने दरवाजे से ही उझककर देखा, अंदर क्या तमाशा हो रहा है? और जो कुछ उन्होंने देखा, उससे वे हँसते-हँसते लोटपोट हो गईं। उन्होंने भी शायद किसी बिल्ली के बच्चे को नाचते हुए पहली बार देखा था। फिर वह नाच भी तो इस अदा से रहा था कि वाह वाह, क्या कहने! उस दिन सान्या वापस लौट रही थी तो अकेले में ही बड़े जोरों से उसकी हँसी छूट गई। जितना – जितना वह अपनी हँसी रोकने की कोशिश करती, उतनी ही वह बढ़ती जाती। यह तो अच्छा था कि बादलों की वजह से कुछ-कुछ अँधेरा हो गया था, इसलिए लोगों ने उसकी हँसी पर ध्यान नहीं दिया, वरना तो…? पर घर आते ही सान्या मम्मी से जा लिपटी और हँसते-हँसते बोली, “मम्मी-मम्मी, बिल्ली का बच्चा…!” “हाँ-हाँ, क्या हुआ बिल्ली के बच्चे को?” मम्मी ने पूछा। और बताते-बताते सान्या इतना हँसी, इतना हँसी कि यह छोटा-सा किस्सा सुनाने में उसे कोई आधा घंटा लग गया। पर जब बिल्ली के नाचने का पूरा किस्सा मम्मी और मीनू दीदी ने सुना, तो हँसते-हँसते उनका भी बुरा हाल था। मीनू दीदी हँसते-हँसते बोलीं, “तू रोज अकेले घूमने जाती है, तो ऐसे-ऐसे मजेदार किस्से ढूँढ़कर लाती है कि हँसते-हँसते पेट में दर्द हो जाए। कल से मैं भी तेरे साथ चलूँगी। हम खूब किस्से इकट्ठे करेंगे और फिर उनकी एक किताब बनाएँगे।” “हाँ मीनू दीदी, हाँ!… फिर आप उस पर चित्रकारी कर देंगी, तो सच्ची, कितना मजा आएगा!” “ठीक है, मेरी प्यारी बेटी! कल से तुम दोनों बहनें मिलकर घूमने जाना।” कहकर मम्मी ने प्यार से सान्या के गाल थपथपा दिए। और सान्या सोच रही थी कि कल वह मीनू दीदी के साथ भीखू बाबा की बगिया में जाएगी। वहाँ फूल ही फूल हैं, और बहुत सारे झूले भी। फिर तो वहाँ कितना अच्छा लगेगा।
